Tulsi Vivah vidhi: देव उठनी एकादशी पर तुलसी विवाह की संपूर्ण विधि

WD Feature Desk

बुधवार, 6 नवंबर 2024 (16:57 IST)
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Tulsi Vivah Dev uthani ekadashi : प्रतिवर्ष कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की ग्यारस पर देव उठनी एकादशी पर्व मनाया जाता है। 4 माह पश्चात इस दिन देव जागते हैं। वर्ष 2024 में देवउठनी या देवोत्थान एकादशी 12 नवंबर, दिन मंगलवार को मनाई जा रही है। इस दिन तुलसी पूजन का विशेष महत्व है। साथ ही इसी दिन तुलसी जी का शालीग्राम के साथ विवाह होता है। 
 
इस बार देव उठनी एकादशी का पर्व चार शुभ योग में मनाया जा रहा है, इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग, रवि योग, हर्षण योग, शिववास योग बन रहे हैं। अत: इन्हीं योगों में तुलसी विवाह भी संपन्न होगा तथा देव जागने के पश्चात वैवाहिक मांगलिक कार्यों की शुरुआत भी हो जाएगी। 
 
Highlights 
आइए यहां जानते हैं तुलसी और शालिग्राम के विवाह की विधि के बारे में... 

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तुलसी विवाह की विधि यहां जानें : Tulsi Vivah Ekadashi Vidhi
 
• देव उठनी एकादशी या तुलसी विवाह के दिन जिन्हें कन्यादान करना होता है वे व्रत रखते हैं और शालिग्राम की ओर से पुरुष वर्ग एकत्रित होते हैं। 
• शाम के समय सारा परिवार इसी तरह तैयार हो जैसे विवाह समारोह के लिए होते हैं।
• अर्थात् वर पक्ष और वधू पक्ष वाले अलग-अलग होकर एक ही जगह विवाह विधि संपन्न करते हैं।
• कई घरों में गोधूलि बेला पर विवाह होता है या यदि उस दिन अभिजीत मुहूर्त हो तो उसमें भी विवाह कर सकते हैं।
• जिन घरों में तुलसी विवाह होता है वे स्नानादि से निवृत्त होकर तैयार होते हैं और विवाह एवं पूजा की तैयारी करते हैं। 
• इसके बाद आंगन में चौक सजाते हैं और चौकी स्थापित करते हैं। 
• आंगन नहीं हो तो मंदिर या छत पर भी तुलसी विवाह करा सकते हैं।
• तुलसी का पौधा एक पटिए पर आंगन, छत या पूजा घर में बिलकुल बीच में रखें। 
• तुलसी के गमले के ऊपर गन्ने का मंडप सजाएं।
• इसके साथ ही अष्टदल कमल बनाकर चौकी पर शालिग्राम को स्थापित करके उनका श्रृंगार करते हैं।
• अष्टदल कमल के उपर कलश स्थापित करने के बाद कलश में जल भरें, कलश पर सातिया/स्वस्तिक बनाएं।
• कलश पर आम के 5 पत्ते वृत्ताकार रखें और नारियल लपेटकर आम के पत्तों के ऊपर रख दें।
• तुलसी देवी पर समस्त सुहाग सामग्री के साथ लाल चुनरी चढ़ाएं। 
• गमले में शालिग्राम जी रखें।
• अब लाल या पीले वस्त्र धारण करके तुलसी के गमले को गेरू से सजाएं और इससे शालिग्राम की चौकी के दाएं ओर रख दें।
• गमले और चौकी के आसपास रंगोली या मांडना बनाएं, घी का दीपक जलाएं।
• इसके बाद गंगा जल में फूल डुबाकर ‘ॐ श्री तुलस्यै नमः' मंत्र का जाप करते हुए माता तुलसी और शालिग्राम पर गंगा जल का छिड़काव करें।
• अब माता तुलसी को रोली और शालिग्राम को चंदन का तिलक लगाएं।
• अब तुलसी और शालिग्राम के आसपास गन्ने से मंडप बनाएं। 
• मंडप पर उस पर लाल चुनरी ओढ़ा दें।
• अब तुलसी माता को सुहाग का प्रतीक साड़ी से लपेट दें और उनका वधू (दुल्हन) की तरह श्रृंगार करें।
• शालिग्राम जी पर चावल नहीं चढ़ाते हैं। उन पर तिल चढ़ाई जा सकती है। 
• तुलसी और शालिग्राम जी पर दूध में भीगी हल्दी लगाएं।
• शालिग्राम जी को पंचामृत से स्नान कराने के बाद उन्हें पीला वस्त्र पहनाएं।
• अब तुलसी माता, शालिग्राम और मंडप को दूध में भिगोकर हल्दी का लेप लगाएं।
• अब पूजन की सभी सामग्री अर्पित करें जैसे फूल, फल इत्यादि।
• अब कोई पुरुष शालिग्राम को चौकी सहित गोद में उठाकर तुलसी की 7 बार परिक्रमा कराएं।
• इसके बाद तुलसी और शालिग्राम को खीर और पूड़ी का भोग लगाएं।
• विवाह के दौरान मंगल गीत गाएं। 
• तुलसी जी का विवाह विशेष मंत्रोच्चारण के साथ करना चाहिए।
• इसके बाद दोनों की आरती करें।
• और इस विवाह संपन्न होने की घोषणा करने के बाद प्रसाद बांटें।
• कर्पूर से आरती करें और यह मंत्र- 'नमो नमो तुलजा महारानी, नमो नमो हरि की पटरानी' बोलें।
• तुलसी और शालिग्राम को खीर और पूड़ी का भोग लगाएं। 
• फिर 11 बार तुलसी जी की परिक्रमा करें। 
• प्रसाद को मुख्य आहार के साथ ग्रहण करें और प्रसाद का वितरण जरूर करें।
• प्रसाद बांटने के बाद सभी सदस्य एकत्रित होकर भोजन करते हैं।

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