भारतीय संस्कृति, धर्म, दर्शन, अध्यात्म और ज्योतिष की नजर में पर्यावरण

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भारतीय संस्कृति, धर्म, दर्शन, अध्यात्म और ज्योतिष में पर्यावरण या प्रकृति का बहुत महत्व है। प्रकृति के बगैर दर्शन और ज्योतिष की कल्पना नहीं की जा सकती है। आओ जानते हैं इस संबंध में 10 खास बातें।
ज्योतिष और पर्यावरण : 
1. ज्योतिष के अनुसार प्रत्येक पेड़, पौधा और वस्तु किसी ना किसी ग्रह, नक्षत्र और राशियों से जुड़े हुए हैं। यह सभी हमारे जीवन को संचालित करते हैं। ज्योतिष मानता है कि हम प्रकृति के प्रभाव से मुक्ति नहीं हो सकते क्योंकि हम प्रकृति का हिस्सा ही हैं।
 
2. यदि हम उक्त ग्रहों के अनुसार नगर, ग्राम और घर के आसपास वैसे ही वृक्ष लगाएं तो इससे एक ओर जहां पर्यावरण में सुधार होगा वहीं ग्रह नक्षत्रों का बुरा प्रभाव भी नहीं रहता है। 
 
3. ज्योतिष मानता है कि शमी को जल चढ़ाने से शनि की बाधा, पीपल को जल चढ़ाने से बृहस्पति की बाधा, नीम को जल चढ़ाने से मंगल की बाधा, मंदार, तेजफल या सूर्यमुखी को जल चढ़ाने या सूर्य को अर्ध्य देने से सूर्य की बाधा, पोस्त, पलाश या दूध वाले पेड़ पोधों को सिंचित करने से चंद्र की बाधा, केला और चौड़े पत्ते वाले पेड़ को जल देने से बुध की बाधा, मनी प्लांट, कपास, गुलर, लताएं या फलदार वृक्ष की सेवा करने से शुक्र की बाधा, नारियल पेड़ में जल देने से राहु की बाधा और इमली के पेड़ में जल देने से केतु की बाधा दूर होती है।
 
4. इसी तरह ज्योतिष अनुसार पशु, पक्षी और कई तरह की वस्तुएं भी किसी न किसी ग्रह नक्षत्रों का प्रतिनिधित्व करती हैं। जैसे हाथी और जंगली चूहा राहु का, कुत्ता, गधा, सूअर और छिपकली केतु का, भैंस या भैंसा शनि का, बंदर या कपिला गाय सूर्य का, घोड़ा चंद्र का, शेर, ऊंट और हिरण मंगल का, बकरा, बकरी और चमगादढ़ बुध का, बब्बर शेर गुरु का और अश्व, गाय और बैल शुक्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। 
 
5. उसी तरह रत्न भी हैं। मूंगा मंगल के लिए, हीरा शुक्र के लिए, माणिक सूर्य के लिए, पन्ना बुध के लिए, मोती चंद्र के लिए, पुखराज गुरु के लिए, नीलम शनि के लिए, गोमेद राहु के लिए और लहसुनिया केतु के लिए। इन सब के कई उपरत्न भी होते हैं जो सभी प्रकृति द्वारा ही प्राप्त होते हैं। 
 
6. इसी तरह 27 नक्षत्रों और 12 राशियों के भी अपने अपने वृक्ष एवं पशु पक्षी हैं। ज्योतिष मानता हैं कि इस धरती पर जो भी चीजें निर्मित हो रही है वह किसी न किसी ग्रह या नक्षत्र के प्रभाव से ही निर्मित हो रही है। 
 
7. हमारी धरती को सबसे ज्यादा चंद्र और सूर्य प्रभावित करते हैं। इसके बाद बृहस्पति, मंगल और शुक्र। इसके बाद शनि आदि ग्रहों से ही धरती का पर्यावरण संचालित होता है।
 
8. सुप्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर के अनुसार जिस साल शमीवृक्ष ज्यादा फूलता-फलता है उस साल सूखे की स्थिति का निर्माण होता है। विजयादशमी के दिन इसकी पूजा करने का एक तात्पर्य यह भी है कि यह वृक्ष आने वाली कृषि विपत्ती का पहले से संकेत दे देता है जिससे किसान पहले से भी ज्यादा पुरुषार्थ करके आनेवाली विपत्ती से निजात पा सकता है। इसी तरह ऐसे कई पौधे, पशु या पक्षी है जो भविष्य में होने वाली घटना की पूर्व सूचना देते हैं।
 
9. ज्योतिष या वास्तु के अनुसार ही पौधा रोपण का उचित समय या मुहूर्त बताया जाता है जिसके चलते पौधों का उचित तरीके से विकास होता है। पौधारोपण हेतु उत्तरा, स्वाति, हस्त, रोहिणी और मूल नक्षत्र अत्यंत शुभ होते हैं। इनमें रोपे गए पौधों का रोपण निष्फल नहीं होता है।
 
10. ज्योतिष यह भी बताने में सक्षम है कि भविष्य में कब कब ग्रहण होगा और कब कब भूकंप आएगा। वर्षा कैसी होगी और कब सूख पड़ने की संभावना रहेगी। 
 
भारतीय अध्यात्म और पर्यावरण : 
1. भारतीय धर्म अनुसार वृक्ष आपकी अध्यात्मिक विकास में सहायक होते हैं। उनकी ऊर्जा के साथ आपकी ऊर्जा जुड़कर आपकी साधना की सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं।
 
2. श्रीमद्भागवत् में वर्णित है कि द्वापरयुग में परमधाम जाने से पूर्व योगेश्वर श्रीकृष्ण दिव्य पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान में लीन हुए। भगवान महावीर और बुद्ध ने भी एक वृक्ष के नीचे बैठकर ही ध्यान किया था और उन्हें वृक्ष के नीचे बैठक ही ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। हमारे हजारों ऋषि और मुनियों ने भी किसी ना किसी वृक्ष के नीचे बैठकर ही ज्ञान प्राप्त किया था।
 
3. हिन्दू धर्मानुसार वृक्ष में भी आत्मा होती है। वृक्ष संवेदनशील होते हैं और उनके शक्तिशाली भावों के माध्यम से आपका जीवन बदल सकता है। प्रत्येक वृक्ष का गहराई से विश्लेषण करके हमारे ऋषियों ने यह जाना की पीपल और वट वृक्ष सभी वृक्षों में कुछ खास और अलग है। इनके धरती पर होने से ही धरती के पर्यावरण की रक्षा होती है। यही सब जानकर ही उन्होंने उक्त वृक्षों के संवरक्षण और इससे मनुष्य के द्वारा लाभ प्राप्ति के हेतु कुछ विधान बनाए गए उन्ही में से दो है पूजा और परिक्रमा।
 
4. धर्मानुसार पांच तरह के यज्ञ होते हैं जिनमें से दो यज्ञ- देवयज्ञ और वैश्वदेवयज्ञ प्रकृति को समर्पित है। देवयज्ञ से जलवायु और पर्यावरण में सुधार होता है तो वैश्वदेवयज्ञ प्रकृति और प्राणियों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का तरीका है।
 
5. स्कन्द पुराण में वर्णित पीपल के वृक्ष में सभी देवताओं का वास है। गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं, 'हे पार्थ वृक्षों में मैं पीपल हूं।'
 
।।मूलतः ब्रह्म रूपाय मध्यतो विष्णु रुपिणः। अग्रतः शिव रुपाय अश्वत्त्थाय नमो नमः।।
भावार्थ-अर्थात इसके मूल में ब्रह्म, मध्य में विष्णु तथा अग्रभाग में शिव का वास होता है। इसी कारण 'अश्वत्त्थ'नामधारी वृक्ष को नमन किया जाता है।-पुराण
 
6. शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति एक पीपल, एक नीम, दस इमली, तीन कैथ, तीन बेल, तीन आंवला और पांच आम के वृक्ष लगाता है, वह पुण्यात्मा होता है और कभी नरक के दर्शन नहीं करता। इसी तरह धर्म शास्त्रों में सभी तरह से वृक्ष सहित प्रकृति के सभी तत्वों के महत्व की विवेचना की गई है।
 
7. हिन्दू, जैन और बौद्ध धर्म के प्रत्येक देवी और देवता से एक वृक्ष, एक पशु या एक पक्षी जुड़ा हुआ है। यहां तक की ग्रह और नक्षत्र भी जुड़े हुए हैं।
 
8. अश्वत्थोपनयन व्रत के संदर्भ में महर्षि शौनक कहते हैं कि मंगल मुहूर्त में पीपल वृक्ष की नित्य तीन बार परिक्रमा करने और जल चढ़ाने पर दरिद्रता, दु:ख और दुर्भाग्य का विनाश होता है। पीपल के दर्शन-पूजन से दीर्घायु तथा समृद्धि प्राप्त होती है। अश्वत्थ व्रत अनुष्ठान से कन्या अखण्ड सौभाग्य पाती है। अथर्ववेद के उपवेद आयुर्वेद में पीपल के औषधीय गुणों का अनेक असाध्य रोगों में उपयोग वर्णित है। औषधीय गुणों के कारण पीपल के वृक्ष को 'कल्पवृक्ष' की संज्ञा दी गई है।
 
9. बरगद को वटवृक्ष कहा जाता है। हिंदू धर्म में वट सावत्री नामक एक त्योहार पूरी तरह से वट को ही समर्पित है। हिंदू धर्मानुसार चार वटवृक्षों का महत्व अधिक है। अक्षयवट, पंचवट, वंशीवट, गयावट और सिद्धवट के बारे में कहा जाता है कि इनकी प्राचीनता के बारे में कोई नहीं जानता। संसार में उक्त चार वटों को पवित्र वट की श्रेणी में रखा गया है। प्रयाग में अक्षयवट, नासिक में पंचवट, वृंदावन में वंशीवट, गया में गयावट और उज्जैन में पवित्र सिद्धवट है।
 
10. हिंदू धर्म में जब भी कोई मांगलिक कार्य होते हैं तो घर या पूजा स्थल के द्वार व दीवारों पर आम के पत्तों की लड़ लगाकर मांगलिक उत्सव के माहौल को धार्मिक और वातावरण को शुद्ध किया जाता है। अक्सर धार्मिक पांडाल और मंडपों में सजावट के लिए आम के पत्तों का इस्तेमाल किया जाता है। 

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