पर्यावरण को स्वस्थ व स्वच्छ बनाने, प्रकृति के प्रबंधन के घटक जल, वायु, वसुधा व नभ के आदान-प्रदान में सहायक बन उसके संरक्षण में नारी की भूमिका अहम हो सकती है क्योंकि वह स्वयं संवेदनशील, समझदार, दूरदर्शी व स्नेह प्रेम की मूर्ति होती है। मां, बहन, बेटी या पत्नी के रूप में वह अपने बच्चों, भाइयों, पिताओं या पतियों की सबसे बड़ी हितचिंतक होती है साथ ही वह इस प्रकृति मां के अति दोहन व शोषण की पीड़ा को भी अच्छे से समझ सकती है। इसलिए वह हर रूप में हर व्यक्ति को पर्यावरण व प्रकृति संरक्षण के संस्कार बड़ी आसानी से दे सकती है।