5 जून 2021 को विश्व पर्यावरण दिवस है। भारतीय धर्म में प्रकृति के सभी तत्वों की पूजा और प्रार्थना का प्रचलन और महत्व है, क्योंकि भारतीय धर्म मानता हैं कि प्रकृति ही ईश्वर की पहली प्रतिनिधि है। प्रकृति के सारे तत्व ईश्वर के होने की सूचना देते हैं। इसीलिए प्रकृति को देवता, भगवान और पितृ माना गया है। वेदों में प्रकृति को समर्पित है देवयज्ञ और वैश्वदेवयज्ञ। आओ जानते हैं कि ये क्या है।
देवयज्ञ : विशेष तरीके से हवन करने को 'देवयज्ञ' कहा जाता है जिससे ऑक्सिजन का लेवल बढ़ता है और शुद्धता और सकारात्मकता बढ़ती है। रोग और शोक मिटते हैं। हवन करने के लिए किसी वृक्ष को काटा नहीं जाता ऐसा करने वाले धर्म विरुद्ध आचरण करते हैं। जंगल से समिधाएं बिन कर लाई जाती है अर्थात जो पत्ते, टहनियाँ या लकड़िया वृक्ष से स्वत: ही धरती पर गिर पड़े हैं उन्हें ही हवन के लिए चयन किया जाता है।
वैश्वदेवयज्ञ : वैश्वदेवयज्ञ को भूत यज्ञ भी कहते हैं। पंच महाभूत से ही मानव शरीर है। सभी प्राणियों तथा वृक्षों के प्रति करुणा और कर्त्तव्य समझना उन्हें अन्न-जल देना ही भूतयज्ञ या वैश्वदेव यज्ञ कहलाता है। अर्थात जो कुछ भी भोजन कक्ष में भोजनार्थ सिद्ध हो उसका कुछ अंश उसी अग्नि में होम करें जिससे भोजन पकाया गया है। फिर कुछ अंश गाय, कुत्ते और कौवे को दें।
शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति एक पीपल, एक नीम, दस इमली, तीन कैथ, तीन बेल, तीन आंवला और पांच आम के वृक्ष लगाता है, वह पुण्यात्मा होता है और कभी नरक के दर्शन नहीं करता। इसी तरह धर्म शास्त्रों में सभी तरह से वृक्ष सहित प्रकृति के सभी तत्वों के महत्व की विवेचना की गई है।