भारत में स्वयंभू बाबाओं की बाढ़ सी आ गई है। कोई भी सोशल मीडिया खोल लो और कहीं भी नजर दौड़ाओ हर तरफ कोई न कोई बाबा ज्ञान देते या कथा बांचते नजर आ ही जाता है। इन दिनों सोशल मीडिया में एक 10 साल का स्वयंभू बाल संत अभिवन अरोड़ा को जमकर देखा जा रहा है। हाल ही में स्वामी रामभद्राचार्य महाराज की फटकार के बाद अभिवन अरोड़ा को सोशल मीडिया में जमकर ट्रोल किया गया। इस पर काफी विवाद और बहस भी हुई।
हालांकि अभिवन अरोड़ा कुल मिलाकर एक रीलबाज है, उनका ध्यान नाचते और गाने में ज्यादा होता है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इन दिनों भारत में 1.4 बिलियन लोगों को बेवकूफ बनाना इतना आसान है? बता दें कि बाबाओं की दुनिया में अभिवन अरोड़ा एक नया खिलाड़ी है। लेकिन भारत में बाल संत का इतिहास खासा पुराना रहा है। जानते हैं भारत में ऐसे बाबाओं के बारे में जिन्होंने अपने बालपन से साधना और धर्म-कर्म की शुरुआत कर दी थी।
5 साल के भक्त ध्रुव की तपस्या : मथुरा से करीब 10 किलोमीटर दूर नेशनल हाइवे दो से होते हुए महोली गांव पहुंचते ही ध्रुव टीला दिखेगा। यह टीला बहुत ही प्राचीन समय का बना है। यहां छोटे भक्त ध्रुव ने छह माह की कठोर तपस्या से भगवान को प्रसन्न किया था। कहा जाता है कि भगवान ने बालक ध्रुव को दर्शन दिए। जिस जगह प्रभु प्रकट हुए, उस स्थान को ध्रुव टीला के नाम से जाना जाता है। ध्रुव इस किले पर 5 वर्ष की अवस्था में आए थे। इसी टीले पर आकर उन्होंने तपस्या की। बताया यह जाता है कि नारद मुनि के कहने पर ध्रुव जी महाराज यहां आए थे। उन्होंने ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप किया। ध्रुव जी 5 साल की अवस्था में ही यहां बैठकर तपस्या करने लग गए थे। छह माह तक भगवान विष्णु की घोर तपस्या की उसके बाद उन्हें भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर उनको दर्शन दे दिए। इस टीले के चारों तरफ घना जंगल है।
संत ज्ञानेश्वर : भारत में संत ज्ञानेश्वर महान संत हुए है। संत ज्ञानेश्वर ने 16 साल की आयु में ही अनेक चमत्कार किए। भैंसे के मुख से वेदमंत्रों का उच्चारण, अपनी पीठ पर रोटियां सेकना, निर्जीव दिवार को चलाना, मृत आदमी को जिंदा कर देना। हालांकि सिर्फ चमत्कारों से ही उनकी महानता साबित नहीं होती है। संत ज्ञानेश्वर का सबसे बड़ा चमत्कार है, भगवद्गीता का विवेचन करने वाले ज्ञानेश्वरी ग्रंथ की रचना, वो भी सिर्फ 14 से 15 साल की उम्र में। संत ज्ञानेश्वर का जन्म 1275 में हुआ था। वह काल हिंदू धर्म के लिए बड़ा कठिन था। मुसलमान आक्रांताओं ने आधे से ज्यादा हिंदूस्तान पर कब्जा कर लिया था। बौद्ध और जैनों ने अलग पंथ बना लिया था। हिंदू धर्म में शांकर और वैष्णव, द्वैत और अद्वैत आदि विचारधाराओं मे आपसमें वाद विवाद चलता था। महाराष्ट्र में महानुभाव पंथ ने अपने को स्थापित कर लिया था। समाज मे जारण मारण, जादू टोना, तंत्र मंत्र का प्रभाव बढ़ा हुआ था। ऐसे में सामान्य मनुष्य धर्म के बारे मे भ्रमित था। धर्म का ज्ञान संस्कृत भाषा में बंदिस्त था, जिसे सिर्फ ब्राह्मण वर्ग ही पढ सकता था। ब्राह्मण कर्मकांड में उलझे हुए थे। वह अपने हिसाब से शास्रों का अर्थ निकालकर समाज पर थोपते थे।
कथा वाचक माधव दास : वृंदावन के 10 वर्षीय बाल कथा वाचक माधव दास ने न केवल देशभर में बल्कि विदेशों में भी अपनी पहचान बनाई है। इस अद्भुत बाल संत में इतनी अद्वितीय क्षमता है कि वह बिना रुके एक के बाद एक श्लोक सुनाने में माहिर है। ढाई साल की उम्र से ही इस बालक ने आध्यात्मिक पथ पर कदम रखा और इसके पिता भी इस्कॉन मंदिर के भक्त हैं। अपनी तेज मेमोरी के कारण इस बाल संत ने 21 ग्रंथों के लगभग 3100 श्लोक कंठस्थ कर लिए हैं। लोग उसकी अद्वितीय प्रतिभा से इतने प्रभावित हैं कि उसे सुनने के बाद इसके दीवाने होकर भक्त बन जाते हैं।
कौन हैं भक्त भागवत : 4 साल के नन्हें भक्त भागवत दास का हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले के घुमारवीं शहर से नाता है। यहां इनका ननिहाल है। भागवत की मां की शादी वृंदावन के गोवर्धन में श्री आदि से हुई है। भक्त भागवत के पिता श्री आदि भी सम्पूर्ण रूप से भगवद् गीता का प्रचार करते हैं। यही संस्कार इन्होंने बचपन से नन्हें भक्त भागवत में भी डाले है। बीते दिनों इंडियन आइडल के मंच पर भागवत दास को आमंत्रित किया गया था। यहां पर उनके ज्ञान के भंडार को देखकर सभी हैरान हो गए।
बाबा बालकदास : बाबा बालकनाथ सतनाम धर्म के संस्थापक गुरु घासीदास जी के दूसरे बेटे थे। गुरु बालकदास जी का जन्म 18 अगस्त सन् 1805 ईं. में दक्षिण एशिया मे भारत के मध्यप्रांत के छत्तीसगढ मे स्थित सोनाखान रियासत के गिरौद गांव मे गुरु घासीदास जी और सफूरा माता के पुत्र के रूप मे हुआ। वे महान क्रांतिकारी और समाज सुधारक थे। उन्होंने मानवाधिकार के लिए सतनामी आंदोलन की शुरुआत की थी। बचपन से ही वे आध्यात्म में लीन रहते थे। जूनागढ़ की गिरनार पहाड़ी पर उनका सामना स्वामी दत्तात्रेय से हुआ था। स्वामी दत्तात्रेय से उन्होंने सिद्ध की बुनियादी शिक्षा ली और सिद्ध बने।
कौन है अभिनव अरोड़ा : मात्र 10 साल की उम्र 10 साल के अभिनव अरोड़ा दिल्ली के रहने वाले हैं। उनके पिता का नाम तरुण राज अरोड़ा है। तरुण राज अरोड़ा एक बिजनेसमैन और टेडएक्स स्पीकर हैं। अभिनव का दावा है कि मात्र तीन साल की उम्र में ही उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति हो गई थी। वह खुद को भगवान श्रीकृष्ण का बड़ा भाई बताते हैं। कई पॉडकास्ट्स में उन्होंने दावा किया कि वह भगवान कृष्ण को अपने छोटे भाई के रूप में पूजते हैं। अभिनव के कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हैं जो अलग-अलग हिंदू त्योहारों के मौके पर बनाए गए हैं। कभी अभिनव भगवान गणेश का विजर्सन करते हुए अत्यंत भावुक होकर आंसू बहा रहे हैं तो कभी कृष्ण की जन्मभूमि में नृत्य कर रहे हैं।
अभिनव अरोड़ा की फॉलोविंग : सोशल मीडिया पर अभिनव अरोड़ा की काफी फैन फॉलोविंग है। यूट्यूब पर उनका अभिनव अरोड़ा ऑफिशियल नाम से चैनल है, जिस पर 1.47 लाख फॉलोवर्स हैं। वहीं, इंस्टाग्राम पर अभिनव को 9.5 लाख लोग फॉलो करते हैं। फेसबुक पर भी उनके 2 लाख 29 हजार फॉलोवर्स हैं।
क्या है भारत की संत परंपरा : भारत की संत परंपरा तो इतनी समृद्ध रही कि उन्हें मान-अपमान तक से भी कोई फर्क नहीं पड़ता था, जबकि आज के दौर के तथाकथित संत तो नेताओं और मंत्रियों के दरबारों में हाजिरी देने के लिए उतावले रहते हैं और वहां पहुंचकर खुद को गौरवान्वित भी महसूस करते हैं। संत कवि कुंभनदास को एक बार अकबर बादशाह के बुलाने पर इन्हें फतेहपुर सीकरी जाना पड़ा, वहां उनका काफी सम्मान भी हुआ। लेकिन, इसका उन्हें हमेशा दुख ही रहा। उन्होंने एक पद में अपनी व्यथा का कुछ तरह उल्लेख किया है- संतन को कहा सीकरी सों काम,
आवत जात पनहियां टूटी, बिसरि गयो हरि नाम।
जिनको मुख देखे दुख उपजत, तिनको करिबे परी सलाम,
कुभंनदास लाल गिरिधर बिनु और सबै बेकाम।
क्यों बाबाओं के बढ़ रहे अनुयायी : बता दें कि भारत के इतिहास में कई पहुंचे हुए सच्चे धर्म गुरु और संत हुए हैं, जिनके मार्गदर्शन में लोगों का आध्यात्मिक कल्याण हुआ, जिनकी ख्याती आज भी है। लेकिन इन दिनों सोशल मीडिया में कई ऐसे तथाकतिथ बाबाओं का उदय हुआ है जो बडी संख्या में लोगों को गुमराह कर रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि भारत में 1.4 बिलियन लोगों को बेवकूफ बनाना आखिर इतना आसान क्यों है?
Edited By : Navin Rangiyal