रेयर अर्थ एलिमेंट्स (Rare Earth Elements, REE) ऐसे खनिज हैं जो आधुनिक तकनीक और उद्योगों के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। स्मार्टफोन, इलेक्ट्रिक कार, हाई-टेक हथियार, सौर पैनल, और विंड टर्बाइन जैसे उत्पादों में इनका उपयोग होता है। लेकिन इन खनिजों की वैश्विक आपूर्ति पर चीन का लगभग एकछत्र राज है। वह दुनिया के 70% रेयर अर्थ एलिमेंट्स का खनन और 90% से अधिक की रिफाइनिंग करता है। आखिर ऐसा क्यों है?
रेयर अर्थ एलिमेंट्स क्या हैं और क्यों महत्वपूर्ण हैं?
रेयर अर्थ एलिमेंट्स 17 खनिजों का एक समूह है, जैसे लैंथेनम, सेरियम, नियोडिमियम, और यट्रियम। ये खनिज भले ही नाम से "दुर्लभ" कहलाते हों, लेकिन ये धरती पर कई जगह पाए जाते हैं। फिर भी, इन्हें निकालना और शुद्ध करना (रिफाइनिंग) बेहद जटिल और महंगा है। ये खनिज हाई-टेक उत्पादों में महत्वपूर्ण हैं क्योंकि:
चुंबक (मैग्नेट्स): नियोडिमियम जैसे तत्वों से बने सुपर मैग्नेट इलेक्ट्रिक कारों, विंड टर्बाइनों, और हार्ड डिस्क में इस्तेमाल होते हैं। इलेक्ट्रॉनिक्स: स्मार्टफोन, टीवी, और कंप्यूटर में इनका उपयोग होता है। रक्षा उपकरण: मिसाइल, रडार, और लेजर तकनीक में ये जरूरी हैं। स्वच्छ ऊर्जा: सौर पैनल और बैटरी में इनका योगदान है।
इनकी मांग तेजी से बढ़ रही है, खासकर इलेक्ट्रिक वाहनों और स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में वैश्विक बदलाव के कारण। लेकिन इस मांग को पूरा करने में चीन का दबदबा क्यों है? आइए, इसके कारणों को समझें।
आखिर चीन का दबदबा कैसे बना?
चीन का रेयर अर्थ एलिमेंट्स पर एकाधिकार अचानक नहीं बना। इसके पीछे चार दशकों की रणनीति, नीतियां, और कुछ अनोखे कारक हैं।
1. रणनीतिक दृष्टिकोण: 1990 के दशक से चीन ने रेयर अर्थ एलिमेंट्स को रणनीतिक संसाधन के रूप में देखा। डेंग शियाओपिंग ने कहा था, "मध्य पूर्व में तेल है, लेकिन चीन में रेयर अर्थ है।" इस सोच के तहत चीन ने अपने खनन और रिफाइनिंग क्षमताओं को बढ़ाने पर ध्यान दिया। उसने सस्ते श्रम और ढीले पर्यावरण नियमों का फायदा उठाया, जिससे वह कम लागत में बड़े पैमाने पर उत्पादन कर सका।
2. सस्ता उत्पादन और ढीले पर्यावरण नियम: रेयर अर्थ एलिमेंट्स को निकालना और शुद्ध करना पर्यावरण के लिए हानिकारक है, क्योंकि इसमें जहरीले रसायनों का उपयोग होता है। पश्चिमी देशों में सख्त पर्यावरण नियमों के कारण यह प्रक्रिया महंगी हो जाती है। लेकिन चीन में कम सख्त नियमों ने उसे सस्ते में उत्पादन करने की छूट दी। नतीजा यह हुआ कि 1980 के दशक तक अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने अपनी खदानें बंद कर दीं, और चीन वैश्विक बाजार में छा गया।
3. बड़े पैमाने पर निवेश: चीन ने रेयर अर्थ खनन और रिफाइनिंग में भारी निवेश किया। उसने न केवल खदानों को विकसित किया, बल्कि रिफाइनिंग तकनीकों में भी सुधार किया। आज वह 90% वैश्विक रिफाइनिंग करता है, यानी भले ही कोई दूसरा देश खनिज निकाले, उसे शुद्ध करने के लिए चीन पर निर्भर रहना पड़ता है।
4. वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर नियंत्रण: चीन ने रेयर अर्थ की आपूर्ति श्रृंखला को अपने नियंत्रण में लिया। वह न केवल खनिज निकालता है, बल्कि मैग्नेट और अन्य उत्पाद भी बनाता है। उदाहरण के लिए, इलेक्ट्रिक कारों और हथियारों में इस्तेमाल होने वाले रेयर अर्थ मैग्नेट्स की 90% आपूर्ति चीन से होती है।
5. भू-राजनीतिक हथियार: चीन ने रेयर अर्थ को भू-राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। 2010 में, जापान के साथ विवाद के दौरान उसने रेयर अर्थ का निर्यात रोक दिया, जिससे जापान की तकनीकी उद्योगों को भारी नुकसान हुआ। हाल ही में, अप्रैल 2025 में, चीन ने सात मध्यम और भारी रेयर अर्थ मैटेरियल्स के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया, जिसने अमेरिका, जापान, और यूरोप की टेक इंडस्ट्री को संकट में डाल दिया।
दूसरे देश पीछे क्यों रह गए?
रेयर अर्थ एलिमेंट्स के भंडार कई देशों में हैं, जैसे भारत, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, और वियतनाम। फिर भी, कोई भी चीन की बराबरी क्यों नहीं कर पाया? इसके कुछ प्रमुख कारण हैं:
उच्च लागत: रेयर अर्थ की खनन और रिफाइनिंग प्रक्रिया महंगी है। पश्चिमी देशों में सख्त पर्यावरण नियम और उच्च श्रम लागत इसे और महंगा बनाते हैं।
तकनीकी कमी: रिफाइनिंग के लिए उन्नत तकनीक चाहिए, जो ज्यादातर चीन के पास है। अमेरिका और भारत जैसे देशों में ऐसी सुविधाएं सीमित हैं।
पर्यावरणीय और सामाजिक विरोध: भारत जैसे देशों में स्थानीय लोग और पर्यावरण कार्यकर्ता खनन के खिलाफ विरोध करते हैं, क्योंकि यह पर्यावरण और स्थानीय समुदायों को नुकसान पहुंचाता है।
चीन की सस्ती आपूर्ति: चीन की सस्ती कीमतों के कारण कई देशों ने अपनी खदानें बंद कर दीं और आयात पर निर्भर हो गए। उदाहरण के लिए, अमेरिका की एकमात्र रेयर अर्थ खदान, माउंटेन पास, अपनी जरूरत का 70% हिस्सा चीन से मंगवाती है।
भारत की स्थिति और चुनौतियां: भारत में रेयर अर्थ एलिमेंट्स के बड़े भंडार हैं, खासकर केरल, तमिलनाडु, और ओडिशा के तटीय इलाकों में। लेकिन भारत अपनी जरूरत का 99% रेयर अर्थ मैग्नेट और बैटरी चीन से मंगवाता है। इसके पीछे कई कारण हैं:
रिफाइनिंग की कमी: भारत में खनन तो होता है, लेकिन रिफाइनिंग सुविधाएं सीमित हैं। ज्यादातर कच्चा माल चीन भेजा जाता है।
निजी क्षेत्र की कम भागीदारी: भारतीय कंपनियां इस क्षेत्र में कम सक्रिय हैं, क्योंकि यह जोखिम भरा और महंगा है।
पर्यावरणीय चिंताएं: खनन से पर्यावरण को नुकसान और स्थानीय विरोध के कारण कई परियोजनाएं रुकी हुई हैं।
हालांकि, भारत सरकार ने अब इस दिशा में कदम उठाए हैं। 2024-25 के आर्थिक सर्वेक्षण में रेयर अर्थ पर चीन की निर्भरता को खतरे के रूप में चिह्नित किया गया है। National Critical Mineral Mission (NCMM) शुरू किया गया है, और निजी कंपनियों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। लेकिन इन प्रयासों के परिणाम आने में समय लगेगा।
भू-राजनीतिक युद्ध का हथियार: चीन का रेयर अर्थ पर नियंत्रण अब केवल आर्थिक नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक हथियार बन चुका है। वह इसका उपयोग अपने प्रतिद्वंद्वियों, जैसे अमेरिका, जापान, और यूरोप, को दबाव में लाने के लिए करता है। हाल के प्रतिबंधों ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को बाधित किया है, जिससे ऑटोमोबाइल, रक्षा, और स्वच्छ ऊर्जा उद्योगों पर संकट मंडरा रहा है।
उदाहरण के लिए, अप्रैल 2025 में चीन ने रेयर अर्थ मैग्नेट्स के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया, जिसने भारत की ऑटो इंडस्ट्री को भी प्रभावित किया। इससे मारुति और बजाज जैसी कंपनियों को मोटर असेंबली आयात करने में लागत बढ़ रही है। चीन को चुनौती दे रहे हैं कई देश अब चीन की निर्भरता कम करने की कोशिश कर रहे हैं:
अमेरिका: टेक्सास में एक रिफाइनिंग प्लांट को 300 मिलियन डॉलर का निवेश दिया गया है, जिसका लक्ष्य 2027 तक 25% वैश्विक रेयर अर्थ ऑक्साइड की आपूर्ति करना है। लेकिन यह अभी भी पर्याप्त नहीं है।
जापान: 2010 के प्रतिबंध के बाद जापान ने अपनी निर्भरता 60% तक कम की, लेकिन इसमें सालों लग गए।
भारत: सरकार वैकल्पिक स्रोतों और स्थानीय रिफाइनिंग पर काम कर रही है। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने स्विट्जरलैंड में इस मुद्दे पर बातचीत की। रेयर अर्थ एलिमेंट्स पर चीन का एकछत्र राज उसकी रणनीति, सस्ते उत्पादन, और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर नियंत्रण का परिणाम है। लेकिन यह दबदबा अब वैश्विक अर्थव्यवस्था और भू-राजनीति के लिए खतरा बन गया है। भारत के लिए यह एक चेतावनी है कि उसे आत्मनिर्भरता की दिशा में तेजी से कदम उठाने होंगे। स्थानीय खनन और रिफाइनिंग को बढ़ावा देना, निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करना, और पर्यावरण के अनुकूल तकनीकों में निवेश करना जरूरी है। Edited By: Navin Rangiyal