क्या है मैरिटल रेप और क्‍या कहता है भारतीय कानून?

गुरुवार, 12 मई 2022 (18:29 IST)
मैरिटल रेप यानी वैवाहिक बलात्‍कार इस वक्‍त चर्चा का विषय है। इसका सीधा सा अर्थ होता है पत्‍नी की सहमति के बगैर उसके साथ जबरदस्‍ती संबंध स्‍थापित करना।

इस मुद्दे को लेकर कुछ संगठनों ने याचिका दायर की थी, जिसके बाद दिल्‍ली हाईकोर्ट ने मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने के मामले में बुधवार को खंडित निर्णय सुनाया। खंडित यानी दो जजों की दो अलग अलग राय। अदालत के एक न्यायाधीश ने इस प्रावधान को समाप्त करने का समर्थन किया, जबकि दूसरे न्यायाधीश ने कहा कि यह असंवैधानिक नहीं है।

खंडपीठ की अगुवाई कर रहे न्यायमूर्ति राजीव शकधर ने वैवाहिक बलात्कार के अपवाद को समाप्त करने का समर्थन किया, जबकि न्यायमूर्ति सी. हरिशंकर ने कहा कि भारतीय दंड संहिता के तहत प्रदत्त यह अपवाद असंवैधानिक नहीं हैं और संबंधित अंतर सरलता से समझ में आने वाला है।

आइए समझते हैं क्‍या है मैरिटल रेप और इसे लेकर क्‍या कहता है देश का कानून।

क्‍या है मैरिटल रेप?
बिना पत्नी की इजाजत के पति द्वारा जबरन सेक्स संबंध बनाने को मैरिटल रेप कहा जाता है। बिना सहमति के संबंध बनाने की वजह से ही इसे मैरिटल रेप की श्रेणी में रखा जाता है। मैरिटल रेप को पत्नी के खिलाफ एक तरह की घरेलू हिंसा और यौन उत्पीड़न माना जाता है।

भारत में पिछले कुछ सालों के दौरान मैरिटल रेप पर कानून बनाने की मांग तेज हुई है। दिल्ली हाईकोर्ट 2015 से ही इस मामले पर कई याचिकाओं की सुनवाई कर रहा है। हालांकि केंद्र सरकार का कहना है कि इस मुद्दे पर कोई कानून बनाने से पहले एक व्यापक विचार-विमर्श की जरूरत है, क्योंकि ये समाज पर गहरा प्रभाव डालेगा।

मैरिटल रेप: दो जज, दोनों की राय जुदा
मैरिटल रेप को लेकर 11 मई को दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। फैसला सुनाते समय हाईकोर्ट के दोनों जजों ने इस पर अलग-अलग राय जाहिर की। जस्टिस शकधर ने कहा- IPC की धारा 375, संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। लिहाजा, पत्नी से जबरन संबंध बनाने पर पति को सजा दी जानी चाहिए। वहीं जस्टिस सी हरिशंकर ने कहा- मैरिटल रेप को किसी कानून का उल्लंघन नहीं माना जा सकता। बेंच ने याचिका लगाने वालों से कहा कि वे सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकते हैं।

मैरिटल रेप और भारतीय कानून?
भारतीय कानून में मैरिटल रेप को अपराध नहीं माना गया है। इंडियन पीनल कोड (IPC) की धारा 375 के (अपवाद-2) के मुताबिक मैरिटल रेप को अपराध नहीं माना गया है। इस अपवाद के अनुसार यदि कोई पति अपनी पत्नी से सेक्स संबंध बनाता है और अगर पत्नी की उम्र 15 साल से कम नहीं है, तो इसे रेप नहीं माना जाएगा।

भारत में अगर पति उसकी पत्नी की सहमति या बिना सहमति के सेक्स संबंध बनाता है और पत्नी की उम्र 15 साल से कम नहीं है, तो उसे रेप नहीं माना जाता है। मतलब यह भी है कि पति अगर जबरन सेक्स करता है तो भी वह अपराध और रेप की श्रेणी में नहीं आएगा।

कार्यकर्ताओं ने बताया निराशाजनक
दूसरी ओर हाई को इस फैसले को कुछ महिला कार्यकर्ताओं ने 'निराशाजनक' बताते हुए उम्मीद जताई कि उच्चतम न्यायालय इस मामले में 'अधिक समझदारी' दिखाएगा। महिला कार्यकर्ताओं ने यह भी कहा कि मौजूदा प्रावधान बलात्कार पीड़ितों की एक श्रेणी के खिलाफ भेदभावकारी हैं। अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला संघ की सदस्य कविता कृष्णन ने कहा कि उच्च न्यायालय का फैसला निराशाजनक और परेशान करने वाला है। कानूनी मुद्दा काफी स्पष्ट है और यह बलात्कार पीड़ितों की एक श्रेणी - पत्नियों के खिलाफ भेदभावपूर्ण है। मुझे उम्मीद है कि उच्चतम न्यायालय इस शर्मनाक कानून को हटाने के लिए जरूरी साहस और स्पष्टता दिखाएगा।

इन देशों में मैरिटल रेप है अपराध
  1. 1922 में सोवियत यूनियन मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने वाला पहला देश था।
  2. सोवियत संघ के बाद 1932 में पोलैंड ने मैरिटल रेप को अपराध घोषित किया था।
  3. 1960-1970 के दशक तक अधिकतर पश्चिमी देश मैरिटल रेप को अपराध घोषित कर चुके थे।
  4. ब्रिटेन ने 1991 और अमेरिका ने 1993 में मैरिटल रेप को अपराध घोषित किया।
  5. यूएन की रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 तक दुनिया के 150 देश मैरिटल रेप को अपराध घोषित कर चुके थे।
  6. भारत, पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश, अफगानिस्तान समेत केवल 34 देशों में मैरिटल रेप अपराध नहीं है।

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