देश-विदेश में पिछले दो दशकों में फिजियोथैरेपिस्ट की बढ़ती माँग के कारण फिजियोथैरेपी के अंडर ग्रेजुएट्स कार्यक्रम के प्रति युवाओं का आकर्षण भी लगातार बढ़ता दिखाई दे रहा है। इस क्षेत्र के विशेषज्ञों का मानना है कि यदि छात्र कला और वाणिज्य की परम्परागत डिग्रियों के बजाय फिजियोथैरेपरी की डिग्री लें तो उनके लिए रोजगार के अवसर ज्यादा बढ़ जाएँगे।
यही कारण है कि छात्र इस क्षेत्र को अपनाने में पहले से ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहे हैं। यदि वे कुछ वर्षों तक इस क्षेत्र में कार्य करते हुए सुविज्ञता हासिल कर लेते हैंतो वे अच्छा नाम और दाम कमाने वाले स्पेशलिस्ट बन जाते हैं।
अब यह धारणा धीरे-धीरे बलवती होती जा रही है कि फिजियोथैरेपी में बेहतर वेतन वाले रोजगार के अवसर बढ़ते जा रहे हैं और इस संभावनाओं को देखते हुए कई संस्थान अपने यहाँ फिजियोथैरेपी विभाग स्थापित कर इस नए क्षेत्र की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए योग्य और प्रशिक्षित फिजियोथैरेपिस्ट की फौज तैयार करने में संलग्न हैं। इस बारे में एक संस्थान के फिजियोथैरेपी विभाग के प्रमुख का कहना है कि योग्य और प्रशिक्षित फिजियोथैरेपिस्ट के लिए विदेशों में भी रोजगार के शानदार अवसर उपलब्ध हैं।
देश-विदेश में पिछले दो दशकों में फिजियोथैरेपिस्ट की बढ़ती माँग के कारण फिजियोथैरेपी के अंडर ग्रेजुएट्स कार्यक्रम के प्रति युवाओं का आकर्षण भी लगातार बढ़ता दिखाई दे रहा है। इस क्षेत्र के विशेषज्ञों का मानना है कि यदि छात्र फिजियोथैरेपरी की डिग्री लें।
यह इस बात से प्रमाणित हो जाता है कि उनके संस्थान से पास होने वाले 30 में से 10 छात्र विदेशों में अच्छे वेतन पर काम कर रहे हैं। उनके यहाँ संचालित पाठ्यक्रम को हेल्थ प्रोफेशंस काउंसिल ऑव द यूनाइटेड किंगडम सहित विभिन्न अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों ने अनुमोदित किया है। इसके अलावा लगभग सभी हॉस्पिटलों के आर्थोपेडिक विभाग में फिजियोथैरेपी सेक्शन एक तरह से अनिवार्य बन गया है।
एक सफल फिजियोथैरेपिस्ट ने बताया है कि हार्ट्स, नर्व, मसल्स तथा हड्डियों से सबंधित विकारों के साइड इफेक्ट से ग्रस्त रोगियों को उनकी फिटनेस फिर से लौटाने के लिए कुछ विशेष शारीरिक व्यायाम का प्रशिक्षण देना आवश्यक होता है। ऐसे मामलों मे प्रशिक्षित फिजियोथैरेपिस्ट की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है।
शायद ही ऐसा हॉस्पिटल होगा, जहाँ फिजियोथैरेपिस्ट की कोई रिक्ति होगी, बावजूद इसके निजी क्षेत्रों में फिजियोथैरेपिस्ट के प्रति आकर्षण बढ़ता जा रहा है तथा अधिक से अधिक चिकित्सक अपने रोगियों को निजी फिजियोथैरेपिस्ट की शरण में जाने की सलाह दे रहे हैं। इन दिनों उपचार का तरीका न केवल उपचारात्मक होता जा रहा है बल्कि निवारण के प्रति भी ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। लोगों को पहले ही ऐसे व्यायाम बताए जा रहे हैं ताकि वे संभावित रोगों की चपेट में आने से बच सकें।
इस काम में फिजियोथैरेपिस्ट महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। स्पोर्ट्स मेडिसिन में भी फिजियोथैरेपी की भूमिका महत्वपूर्ण बन गई है। इन दिनों किसी भी खेल आयोजन के दौरान मैदान में फिजियोथैरेपिस्ट की उपस्थिति उतनी ही आवश्यक मानी जा रही है जितनी कि कोच की आवश्यकता जरूरी होती है। कुल्हों तथा कोहनियों के रिप्लेसमेंट में भी फिजियोथैरेपिस्ट की भूमिका अपरिहार्य हो गई है।
भारत के अलावा उत्तरी अमेरिका तथा योरप मे प्रशिक्षित के अभाव से भारत से फिजियोथैरेपी का कोर्स करने वालों की चाँदी हो गई है। वे स्वास्थ्य के प्रति जागरूक विदेशियों के हाथ-पैर सीधे कर डॉलर कूट रहे हैं। वहाँ का स्पोर्ट्स कल्चर हमसे एकदम अलग है।
यही कारण है कि छोटा से छोटा स्पोर्ट्स क्लब अपने यहाँ ज्यादा से ज्यादा पैसा खर्च फिजियोथैरेपिस्ट की सेवाएँ लेने में आगे है और इससे फिजियोथैरेपिस्ट को अपना देश ही नहीं, विदेशों में भी अपना करियर जगमगाता दिखाई दे रहा है।