उत्तर : देखिए दुनिया के सभी इंसानों, चाहे वे किसी भी देश के निवासी एवं किसी भी धर्म के अनुयायी हों, का विकास बंदर प्रजाती के प्राणियों से हुआ है। अब बदरों की स्वाभाविक प्रवृत्ति लगातार एक डाल से दूसरी डाल पर उछल कूद करते रहने की होती है। उनका मन स्थिर नहीं होता है। बंदरों को एक साथ मिलकर किसी खतरे का मुकाबला करते हुए नहीं पाया जाता। वे तो खतरा सामने आते ही भाग खड़े होते है। मानव के रूप में विकसित व शिक्षित होने के बाद वे साथ रहकर विपरीत परिस्थितियों से लड़ना तो सीख गए फिर भी पूर्वजों से प्राप्त मौलिक गुण कहीं ना कहीं अपना असर दिखा ही देते हैं। अत: मानवों को मेंढकों की तरह एक तराजू में तोलने की कोशिश व्यर्थ ही सिद्ध होने वाली है।