गणेश यंत्र को शुभ मुहूर्त में शास्त्रोक्त विधान से ताम्रपत्र पर निर्माण करा लें। यंत्र को खुदवाना निषेध है। यंत्र साथ कुम्हार के चाक की मृण्मय गणेश प्रतिमा, जो कि उसी दिन बनाई गई हो, स्थापित करें। यंत्र साधना को 4 भागों में बांटा गया है- (1) दारिद्रय- नाश, व्यापारोन्नति, आर्थिक लाभ, (2) संतान प्राप्ति, (3) विद्या, ज्ञान, बुद्धि की प्राप्ति, (4) सर्वकल्याण मनोकामना पूर्ति, चारों कार्यों की सिद्धि के लिए एक ही मंत्र है-
ॐ गं गणपतये नम:, किंतु जप संख्या और विधि भिन्न है। प्रथम कार्य की सिद्धि के लिए सायंकाल, दूसरे कार्य के लिए मध्याह्नकाल, तीसरे-चौथे कार्य के लिए प्रात:काल के समय कंबल के आसन पर पीत वस्त्र धारण करके पूर्व या पश्चिम दिशा की तरफ मुख करके यंत्र के सम्मुख बैठें। रुद्राक्ष की माला से प्रतिदिन 31 माला का जाप यंत्र एवं प्रतिमा का पंचोपचार पीतद्रव्यों से पूजन करके 31 दिन तक करना चाहिए। बाद में दशांश हवन, तर्पण, मार्जन करके 5 बटुक ब्राह्मण भोजन कराएं। यह कार्य अनुष्ठान पद्धति से होना चाहिए।