गणपति गजानंद का स्वरूप ही अपने आप में अनोखा है। गजशीश और मानव शरीर से संयोजित भगवान श्री विनायक अनेक नामों से तो मशहूर हैं ही, साथ में उनका संपूर्ण शरीर ही इस ब्रम्हांड पर मैनेजमेंट का एक ऐसा जीता-जागता उदाहरण है जिसे समझ लेने के बाद दुनिया की किसी भी पाठशाला की किसी भी डिग्री का आवश्यकता ही महसूस नहीं होती।
प्रथम पूज्य श्री गणेश ही एकमात्र ऐसे देव हैं जिनकी आकृति विशालकाय होते हुए भी इतना लचीलापन लिए हुए है कि हर चित्रकार को अपने-अपने नजरिए से उन्हें चित्रित करने का अवसर प्रदान करती है। भगवान गणेश के चित्रों, रेखांकनों और आकृतियों को लेकर जितना भी प्रयोग किया गया है, वह हमेशा ही कम लगता है और प्रयोग की संभावना हमेशा ही बरकरार रहती है। किसी भी एंगल से देखा जाए, भगवान गणेश सिर्फ गणेश ही नजर आते हैं।
हर शुभ काम में सर्वप्रथम पूजनीय, विघ्नहर्ता, भगवान गणपति को लेकर धार्मिक और पौराणिक ग्रंथों में अनेक कथाएं तो हैं ही, साथ में अनेक लोककथाएं भी उनके जन्म और स्वरूप को लेकर चर्चित हैं। शिव-पार्वतीनंदन की जितनी भी भाव-भंगिमाएं हैं शायद ही उतनी किसी और देवी-देवता की होगी। रिद्धि-सिद्धि के दाता और बुद्धि के देवता स्वयं अपने आप में ज्ञान हैं, विज्ञान हैं, प्रबंधक हैं।
'नॉलेज साइंस और मैनेजमेंट' का अद्भूत संयोग भगवान श्री गणेश की विशाल काया में समाया है। मैनेजमेंट का कोई ऐसा सिद्धांत नहीं है, जो गणनायक, शिवनंदन में न समाया हो। महाप्रबंधन की वे ऐसी किताब हैं जिसके बगैर कोई भी सिद्धांत, शास्त्र अधूरा है। गणेश, गणपति, गजानंद की अनोखी काया में क्या-क्या समाहित है, क्या सिद्धांत है, क्या प्रतीक है और क्यों हैं, आइए देखे उस महाप्रबंधक को एक नए ही नजरिए से-
गजशीश- भगवान का शीश हाथी का है। हाथी मूलत: शांत प्रवृत्ति का होता है, परंतु चतुर। अपने दिमाग में योजनाओं व विचारों को समाहित कर उन्हें क्रियान्वित करने में सक्रियता के साथ उन पर मनन करना और उस पर तत्परता से निर्णय लेकर क्रियान्वित करना उसकी शैली होती है। गणपतिजी का गजशीश भी यही प्रतीकता लिए है। सब कुछ समग्रता के साथ सोचें, उस पर मनन करें और फिर क्रियान्वित करें। उसी मूल के कारण हर कार्य में भगवान श्री गणेश को प्रथम पूजा जाता है। सकारात्मक सोच का इससे बड़ा उदाहरण हो ही नहीं सकता।
सूपकर्ण- गणपतिजी के कान विशालकाय सूपड़े जैसे होते हैं। बड़े होने के कारण वे हर छोटी-बड़ी बात को सुनने का प्रतीक हैं। जब आप दूसरे को सुनेंगे नहीं, उसके विचारों को जानेंगे नहीं, तब तक आप सफल प्रबंधक हो ही नहीं सकते। दो सूपकर्ण का मतलब है कि जरा-सा पत्ता भी कहीं खड़के तो उसकी आवाज आपके कानों में आए। संस्थान में कहां क्या हो रहा है, ये एक प्रबंधक को मालूम होना चाहिए किंतु इसका मतलब यह नहीं कि आप कान के कच्चे हों। सूप का एक गुण यह भी होता है कि वह सार-सार ले लेता है और कचरा बाहर कर देता है। सार को ग्रहण करने और थोथा को उड़ा देने की नीति को अपनाकर व्यर्थ और अनुपयोगी बातों को छोड़कर काम की बातों को ग्रहण करना ही गणपति के कानों का प्रतीक है।
छोटी आंखें- भगवान विघ्नहर्ता की छोटी-छोटी आंखें सूक्ष्मदर्शिता का प्रतीक हैं। लक्ष्यपरक दृष्टि से अपने लक्ष्य पर नजर रखी जानी चाहिए, जैसे चील आकाश में उड़ने के बावजूद अपने शिकार पर नजर गड़ाए रखती है और तुरंत झपट्टा मार लेती है। सफल मैनेजमेंट का सिद्धांत भी यही कहता है कि उद्देश्य पर नजर रखें तभी सफलता का स्वाद चखने को मिल सकता है। सूक्ष्म दृष्टि का आशय यह भी है कि आप अपने संस्थान के उन छोटे-छोटे कार्यों पर, कर्मचारियों पर भी नजर रखें, जो आपकी कार्ययोजना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनकी अनदेखी करना मैनेजमेंट को क्षति भी दे सकती है या फिर आपकी कार्ययोजना को महंगी कर सकती है।
मुंह- गणपति के श्रीमुख से सदा सुवाणी ही फूटती है। वे सकरात्मकता के प्रतीक हैं। जब भी वे मुंह खोलते हैं लोक कल्याण के लिए। अत: उनके श्रीमुख का आशय सकारात्मकता से है। संस्थान में यदि आप सकारात्मक रहेंगे तो भगवान श्री गणेश की भांति लोकप्रिय तो रहेंगे ही, साथ एक सफल प्रबंधन भी कर सकने में समर्थ होंगे। एक अच्छा और सफल प्रबंधक वह होता है, जो भली-भांति अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है।
सूंड- सूंड यानी सूंघने की क्षमता। ग्रहण शक्ति। हर जगह सजगता। हर अच्छी और बुरी चीज को पहचानना। आपकी सफलता काफी हद तक इस बात पर ही निर्भर रहती है कि आपकी ग्रहण शक्ति और पहचानने की क्षमता अच्छी हो। अवसरों की गंध आपकी नाक तक पहुंचे। गणपति की सूंड यही सिखाती है।
एकदंत- गणपतिजी की नाक के पास उगा एक दांत, जिसके कारण वे एकदंत कहे जाते हैं, वह इस बात का द्योतक है कि मंजिल पर नजर ही एकमात्र लक्ष्य। नाक की सीध में लक्ष्य पर निगाह। टारगेट ओरिएंटेड। एकसूत्रीय कार्यक्रम।
लंबोदर- लंबोदर यानी बड़ा-सा पेट। मैनेजर या प्रबंधक का खास गुण। कहा जाता है कि लंबोदर के उदर में ब्रम्हांड समाया रहता है। यहां आशय है कि अच्छा-बुरा सब हजम अर्थात महाप्रबंधक की भांति असफलता या सफलता सब हजम। जरा-सी असफलता पर विचलित हो अपने लक्ष्य से विमुख न हो जाए। उसे सहन करें और अपने लक्ष्य की ओर सतत अग्रसर होते जाएं।
रक्तबदन- भगवान गणेश रक्तवर्णी हैं। रक्त का रंग लाल और ऊर्जा का प्रतीक होता है। हमेशा ऊर्जावान रहें। सक्रियता बनाए रखें। निष्क्रियता से परे रहें। लक्ष्य पाना है तो सक्रियता से तो वह भी सकारात्मक अपनाना ही होगी।
चार हाथ- गणपति के चार हाथ माने जाते हैं। वे सृजनकर्ता का अवतार हैं। उनके चारों हाथ चार दिशाओं के सूचक हैं यानी सफलता प्राप्त करनी है तो चहुंओर या चहुंमुखी प्रयास करना चाहिए। चारों हाथों में से एक में पाश, दूसरे में अंकुश, तीसरे में मोदक और चौथा हाथ अभय की मुद्रा में होता है। सफल प्रबंधन के लिए ये चारों ही सूचक हैं। नियमों का पाश हो, अनियमितताओं पर अंकुश भी हो, श्रेष्ठकर्ता को पुरस्कारस्वरूप मीठा प्रसाद मोदक और कर्मचारियों को कार्य करने की आजादी यानी अभय का अवसर भी। यही श्रीगणेश का प्रबंधन है।
चन्द्रशीश- गणपतिजी के भाल पर द्वीतिया का चन्द्रमा आरूढ़ रहता है। द्वीतिया का चन्द्रमा शांतता का प्रतीक माना माना जाता है। सफलता प्रसिद्धि के बावजूद चित्त को शांत रखना ही द्वीतिया का चन्द्रमा दर्शता है। गणपतिजी का सिद्धांत यही कहता है कि सफलता पर गुरूर या घमंड नहीं करना चाहिए। हर परिस्थिति में अपने दिमाग को शांत रखकर भविष्य के बारे में योजना बनाते रहें। 'ठंडा-ठंडा, कूल-कूल' का यह सिद्धांत भी प्रबंधन का वाक्य है।
मूषक वाहन- मूषक को चंचलता और अहं का प्रतीक माना जाता है। अपनी चंचलता और अहंकार को अपने पैरों तले दबाकर रखें। यही गणपतिजी का संदेश है। ऐसा भी कहा जा सकता है कि प्रकृति के इस छोटे से प्राणी से भी स्नेह करें। प्रबंधन में सही गुण आपके लिए है कि संस्थान की सफलता के लिए संस्थान के हर छोटे-छोटे कर्मचारियों को भी साथ लेकर चलना जरूरी होता है। सहभागिता और सामूहिक उत्तरदायित्व का भी बोध कराता है यह मूषक वाहन।
जमीन पर पैर- गणपतिजी का एक पैर जमीन से छूता रहता है। इसका तात्पर्य यह है कि सदा अपनी जमीन से जुड़े रहो। प्रबंधक को चाहिए कि वे हवाई योजनाएं न बनाएं, जमीनी हकीकत से भी भली-भांति परिचित रहें। सफलता जमीन से शुरू होकर आसमान छूती है यह हमेशा दिमाग में होना चाहिए।
गणपतिजी के प्रतीकों से यूं तो एक नहीं, अनेक अर्थ और अभिप्राय निकाले जा सकते हैं। वे सृजन की शुरुआत हैं। हर रूप में वे गणेश हैं जिसका सीधा-सा अभिप्राय है गण और ईश। उन्हें बुद्धि का देवता कहा जाता है। मिथक, कहानियां अनेक हैं मगर हकीकत एक हैं श्री गणेश। आदिकर्ता, मंगलकारी श्रीगणेश में वास्तव में कुछ सिद्धांत प्रतिपादित हैं। सफलता पाने के लिए हम यूं ही याद नहीं करते गणपति बप्पा को।
इतिहास गवाह है कि लोकमान्य तिलक ने आजादी की आग फूंकने के लिए गणेशजी का सहारा लिया था और वही गणेशोत्सव हम आज भी मना रहे हैं।