जौनपुर में टक्कर बीजेपी और बसपा में सीधी-सीधी है। वहां सपा ही लड़ाई में नहीं है, तो फिर कांग्रेस की क्या बिसात? रवि किशन तो बस ऐसे ही चुनाव को रोचक बनाने के लिए उतर गए हैं। वैसे वे खुद भी इसे समझ रहे हैं कि उन्हें जीतना नहीं है। इसीलिए वे अपना इलाका छोड़ कर वहां प्रचार कर रहे हैं, जहां कांग्रेस उम्मीदवार को कोई फायदा हो सकता हो। उनका केंद्रीय चुनाव कार्यालय पोलिटेक्निक चौराहे पर है (जिसे भोजपुरी लोगों ने पाटी चौराहा कर दिया है)। उनके कार्यालय पर चंद लोग मिले और यह सूचना मिली कि वे तो बाहर गए हुए हैं।किसी ने कहा रायपुर तो किसी ने कुछ और। पूछा कि क्या और सिने सितारे यहां प्रचार के लिए आएंगे तो एक कार्यकर्ता बोला सलमान और आमिर आ रहे हैं (चल झूठे...)।
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भाजपा उम्मीदवार कृष्ण प्रताप सिंह के पिता पुराने जनसंघी रहे। चार बार विधायक बने और राज्यमंत्री भी। अब उनका बेटा चुनाव सांसद का लड़ रहा है। ये सियासी परिवार है और सियासत में रमा-बसा है। बीएसपी के सुभाष पांडे मायावती सरकार में केबिनेट मिनिस्टर थे। रवि किशन के बाप-दादा का सियासत से कोई लेना-देना नहीं रहा। इतना जरूर है कि रविकिशन हैं जौनपुर के ही। केराकत तहसील में उनके गांव का नाम है बसूई-बराई। फिलहाल वे वन विहार रोड पर किराए का मकान ले कर रह रहे हैं।
अरे हां, वो बसपा के धनंजयसिंह यहीं के सांसद हैं, जिनकी पत्नी ने नौकरानी की हत्या...। वे दिल्ली की तिहाड़ जेल से छूट चुके हैं और चुनाव लड़ने के लिए छटपटा रहे हैं। सुनते हैं पहले मायावती से मिलने के लिए समय मांगा। मायावती ने नहीं दिया तो राजनाथ के पास चले गए। वहां भी उन्हें लटका के तो रखा गया था। अगर वे भी निर्दलीय खड़े हो जाते हैं, तो जौनपुर का मुकाबला रविकिशन के लिए और खतरनाक हो जाएगा। अभी वे तीसरे चौथे पर आने की उम्मीद लगा रहे होंगे। धनंजय सिंह भी आ गए तो पांचवे पर जाना पड़ेगा। रवि किशन भी बामन हैं और यहां पौने तीन लाख बामन वोट हैं। मगर बसपा के सुभाष पांडे भी तो बामन ही हैं, उससे क्या फर्क पड़ता है? रवि किशन जौनपुर से जीतने नहीं जा रहे। वे इस जीत हार के खेल में हैं ही नहीं।