बेल्लुर। रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन के सैकड़ों संन्यासियों ने कभी भी मतदान नहीं किया, हालांकि उनमें से लगभग सभी के पास मतदाता पहचान पत्र हैं।
स्वामी विवेकानंद द्वारा वर्ष 1897 में स्थापित इस मठ के एक वरिष्ठ संन्यासी ने बताया क इस बारे में कोई आधिकारिक निर्देश नहीं है लेकिन हमने कभी मतदान नहीं किया क्योंकि हम न तो राजनीति में हिस्सा लेते हैं और न ही सार्वजनिक रूप से अपनी राजनीतिक राय जाहिर करते हैं।
इस संन्यासी ने बताया िक स्वामी जी ने हमें निर्देश दिया है कि हमें आध्यात्मिक गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और समाज के उत्थान के लिए मानवीय गतिविधियों को अंजाम देना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी अपने प्रारंभिक जीवन में साधु बनना चाहते थे। 1967 की कोलकाता यात्रा के दौरान वे बेलूर मठ गए, जहां उनकी भेंट रामकृष्ण मिशन के तत्कालीन अध्यक्ष स्वामी माधवानंद से हुई। वहां उन्होंने अपनी जिंदगी के महत्वपूर्ण दिन गुजारे थे। पिछले दिनों जब वह कोलकाता गए थे तो कुछ देर वह बेलूर मठ में भी रूके थे।
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उन्होंने बताया कि मतदान का मतलब किसी खास राजनीतिक दल या प्रत्याशी का पक्ष लेना है जो उन्हें आध्यात्म के रास्ते से अलग करेगा।
कोलकाता से कुछ किमी दूर बेलुरमठ में रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन का मुख्यालय है जहां करीब 1500 ब्रह्मचारी और संन्यासी वेदान्त दर्शन पर आधारित जीवन जी रहे हैं। मठ और मिशन के भारत तथा विदेश में 178 शाखा केंद्र हैं। दिलचस्प बात यह है कि 95 फीसदी संन्यासियों के पास मतदाता पहचान पत्र हैं।
एक संन्यासी ने बताया कि पहचान के लिए और खास कर यात्रा के लिए हममें से लगभग 95 फीसदी संन्यासियों को मतदाता पहचान पत्र का उपयोग करना पड़ता है। लेकिन मतदान के लिए हम इसका उपयोग नहीं करते।
मिशन ने स्वतंत्रता संग्राम का समर्थन किया था और कुछ संन्यासियों के स्वतंत्रता सेनानियों के साथ करीबी रिश्ते थे। बाद में कई क्रांतिकारी रामकृष्ण मठ से जुड़ गए थे। संन्यासी ने बताया कि व्यक्ति के तौर पर हमारी राजनीतिक राय भले ही हो लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम सार्वजनिक रूप से इसकी चर्चा करें। (भाषा)