मथुरा शहर से मीलों अंदर गांव तरौली, जहां हेमामालिनी की सभा होने वाली है। सभा है सवा बजे और अपनेराम पहुंच गए हैं पौने बारह को। हेमा का रोड शो अभी किसी दूसरे गांव में चल रहा है। एक कार्यकर्ता अपनी मोटरसाइकिल पर उस गांव पहुंचाने को राजी हो गया है, जहां हेमा मालिनी की सभा इससे पहले है। गांव का रास्ता दूर-दूर तक खेत। मोटरसाइकिल को देखते ही कुछ बच्चे पूछते हैं, हेमा मालिनी को देखने जा रहे हैं? ज़ाहिर है गांवों में हेमा मालिनी की धूम मची हुई है।
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काफिला पहुंचता है गांव सेई सेगा, जहां से हेमा मालिनी निकल चुकी हैं, पर उनके काफिले की कुछ गाड़ियां अभी भी धूल उड़ाती दिख रही हैं। मोटरसाइकिल सवार आखिरकार दूसरे गांव तक पीछा करता है और हेमा के काफिले से मिला देता है। ये गांव है दलौता। काफिले में करीब बीस गाड़ियां हैं, जिनमें एक गाड़ी पुलिस और एक मीडिया की भी है।
हेमा मालिनी सवार हैं मैरून कलर की एक ऐसी गाड़ी में, जिसकी छत इतनी खुल जाती है कि उससे हेमा धड़ बाहर निकाल कर भाषण दे सकें, बात कर सकें। खेतों में कटाई हो रही है। कटे हुए अनाज को बखार में रखना भी है। काम भारी है। मगर हेमा को देखने लोग खेत छोड़-छोड़कर दौड़े चले आ रहे हैं। हेमा गाड़ी से 'उभर' कर भाषण देती हैं। लोगों से व्यक्तिगत ताल्लुक भी बनाती हैं। एक बुजुर्ग को पास बुलाकर नाम पूछती हैं, उसके सिर पर इस अदा से हाथ फेरती हैं, मानों वे यहां की राजमाता या कोई ऐसी साध्वी हैं, जो किसी भी बुर्जुग को आशीष दे सकती हैं। फिर वे बुजुर्ग के नाम की जय बुलवाती हैं।
छोटी-छोटी गलियां हैं, संकरी सड़क है और लगभग हर सड़क के किनारे बीसियों लोग खड़े हैं। हेमा मालिनी की एक झलक देखने। मोदी की लहर में हेमा का ग्लैमर मिल गया है। बच्चा-बच्चा मोदी के नाम के नारे लगा रहा है, हेमा मालिनी जिंदाबाद कर रहा है। करीब बीस गांव अपनेराम हेमा के काफिले के साथ रहे। हर जगह यही उत्साह। ये शहदपुर गांव है...यहां बच्चे सबसे ज्यादा उत्साह में हैं। हैरत है कि इन्हें सारे नारे पता हैं - मोदी लाओ देश बचाओ से लेकर सभी...।
दूसरे उम्मीदवारों के साथ यह दिक्कत पेश आ रही है कि जब वे गांव के वोटर से मिलने जाते हैं, तो मालूम पड़ता है कि खेत गए बाबा और बाजार गई मां। खेतों में इन दिनों काम बहुत है और अगर हेमा मालिनी न हों, तो कोई भी किसान ना तो अपना खेत खुद छोड़ेगा और ना किसी मजदूर को छोड़ने देगा।
तरौली गांव में सभा है। अपनेराम अब हेमा के काफिले के साथ वहीं आ चुके हैं, जहां से चले थे। अब सभा स्थल पर खूब भीड़ जमा है। अगली पांत में बच्चे बैठे हैं और औरतें एक तरफ झुंड बना कर खड़ी हैं। मंच ओवरलोड है और अगर गिर नहीं रहा तो महज इत्तफाक है। एक नेता मंच से नारे लगवा रहा है। नारे मौलिक हैं - हेमा नहीं ये मालिन है, ये तो ब्रज की ग्वालिन है...मुहर लगाओ जोरो सें, देश बचाओ चोरों से।
निर्मल को निर्मम और यमुना को गंगा बोल गईं हेमा... पढ़ें अगले पेज पर...
गांव के नेता ने हेमा मालिनी को एक कागज पकड़ाया है। यानी इन नेताओं के नाम हेमा मालिनी को मंच से लेने हैं। हिंदी पढ़ने में शायद हेमा मालिनी कच्ची हैं। निर्मल पांडे को निर्मम पांडे पढ़ जाती हैं। उधर निर्मल पांडे का चेहरा निर्मल नहीं है, बल्कि मलिन हो चुका है। मगर दूसरों के नामों का भी यही हाल है।
भाषण में हेमा गड़बड़ा जाती हैं। वे मथुरा में आकर कहती हैं कि गंगा की हालत खराब है। पीछे से आवाज़ आती है यमुना, तो हेमा अगले वाक्य में गंगा को यमुना कह देती हैं। ये भी बताती हैं कि मेरा पूरा नाम हेमा मालिनी है और मैं भाजपा से खड़ी हूं, मेरा निशान कमल है। ऐसा कहने का कारण यह है कि विरोधियों ने जानबूझकर दो हेमा और खड़ी करवा दी हैं। वे नरेंद्र मोदी का नाम लेती हैं।
कहती हैं कि भाजपा किसी एक जात या धरम की पार्टी नहीं है। महिलाओं को वे ब्रज की गोपियां और पुरुषों को ग्वाल कहती हैं। ब्रज की संस्कृति की बात करती हैं। हेमा के उच्चारण में अभी भी दक्षिण की छाप है। वे खूब सजी-धजी हैं, मगर उम्र छिपती नहीं। हेमा का भाषण खत्म हो गया है, मगर लोग अभी भी रुके हुए हैं। वे हेमा को देख रहे हैं। आखिरकार हेमा मंच से उतरती हैं और भीड़ अपने रास्ते लगती है।