लोकसभा चुनावों में राजस्थान से कांटे की टक्कर वाली चंद सीटों में से बाड़मेर लोकसभा क्षेत्र में मेजर जसवंतसिंह जसोल और कर्नल सोनाराम चौधरी चुनावी अखाड़े में आमने-सामने हैं। दोनों ने चुनाव लड़ने के लिए ही अपने दलों के साथ बरसों पुराना रिश्ता तोड़ दिया था।
FILE
जसवंतसिंह ने चुनाव लड़ने की खातिर भाजपा को त्याग कर निर्दलीय हो गए हैं, वहीं सोनाराम ने कांग्रेस से बरसों पुराना रिश्ता तोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया है। वैसे भी इन चुनावों में दलबदल का खेल अपने चरम पर है। कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याक्षी हरीश चौधरी जो वर्तमान सांसद भी हैं, राजनीति के इन दोनों वजनी पहलवानों के बीच में फंस गए हैं।
यह सीट राज्य में जहां मुख्यमंत्री के लिए नाक का बाल बनी हुई है, वहीं भाजपा में राष्ट्रीय स्तर पुरानी पीढ़ी को दरकिनार करने वाले अभियान में रोड़े का काम कर रही है। चुनावों के बाद यदि भाजपा नीत एनडीए सरकार बनती है तो उसकी योजना के खाके में जसवंतसिंह शायद मुफीद नहीं बैठते हैं इसीलिए बहुत कोशिश करने और अपने जीवन का अंतिम चुनाव अपनी जन्मस्थली से ही लड़ने की दुहाई काम नहीं आई है।
वसुंधरा राजे ने हालांकि उनके पुत्र की विधायक होने पर तो ऐतराज नहीं किया परंतु संसद के चुनावों में इनकी उम्मीदवारी पर कुंडली मारकर बैठ गईं। वैसे भी जसवंत-वसुंधरा के रिश्तों में खटास राजे के पिछले कार्यकाल के दौरान जसवंत द्वारा की गई असंतुष्ट गतिविधियां के कारण आई है। भाजपा को बाड़मेर के चुनावी अखाड़े के लिए जसवंत के बराबर के एक पहलवान की तलाश थी जो कांग्रेस की सरकार के दौरान असंतुष्ट रहे कर्नल सोनाराम पर जा कर रुक गई।
...तो जीत भी सकते हैं जसवंतसिंह... पढ़ें अगले पेज पर...
दोनों ही उम्मीदवार सैनिक पृष्टभूमि के हैं और सीमांत इलाका होने के कारण बाड़मेर संवेदनशील भी है। यहाँ के जातिगत समीकरणों पर नजर डालें तो जाट बहुल इस क्षेत्र में राजपूतों और अनुसूचित जाति का भी अपना वोट बैंक है। इस क्षेत्र से विजयश्री वरण करने के लिए उम्मीदवारों को मुसलमान वोटों को भी रिझाना जरूरी है जो फिलहाल जसवंत के पक्ष में लगते हैं, वैसे तो इस संसदीय क्षेत्र में आने वाली सात विधानसभा सीटों पर भाजपा विधायक काबिज हैं परंतु इनमें से एक शिव विधानसभा क्षेत्र से जसवंत के पुत्र मानवेंद्र विधायक हैं।
FILE
हालांकि सोनाराम की उम्मीदवारी घोषित होने पर सभी विधायक इनके विरोध में आकर एक ही जाजम पर आ गए थे, परंतु मुख्यमंत्री के सख्त रवैये और सोनाराम के नामांकन के समय उनकी मौजूदगी ने बाकी विधायकों को उनकी माँद में वापस जाने पर मजबूर कर ही दिया और मानवेंद्र को बीमारी का सहारा लेकर दो माह के लिए पार्टी के काम से छुट्टी लेने की अर्जी देने पर भी मजबूर कर दिया। हालांकि इन पर बर्खास्तगी की तलवार अभी भी लटकी हुई है।
जसवंत और सोनराम के सामने वर्तमान सांसद हरीश चौधरी का सियासी वजन उतना नहीं है और सांसद काल के दौरान क्षेत्र की उपेक्षा भी इन पर भारी पड़ रही है। फिर भी इन का दावा है कि उन्होंने विकास कार्यों में कमी नहीं रखी है। बाड़मेर में विकास की बात गौण रहती है और जातिगत समीकरण प्रमुख रहते हैं। यदि जसवंत राजपूतों के साथ अल्पसंख्यक वोटों को अपनी तरफ खींचने में कामयाब हो जाते हैं तो सोनाराम कड़ी टक्कर देने में सफल रहेंगे। यदि ऐसा नहीं होता है तब हरीश चौधरी की राह आसान हो सकती है क्योंकि अनुसूचित जातियों और मुस्लिम वोट मिलकर उन्हें जिताने के लिए काफी हैं।
सोनाराम को यदि 2013 के विधानसभा चुनावों की तरह सर्वसमाज का समर्थन मिल जाएगा तो उनकी सांसदी पक्की है वैसे वसुंधरा राजे इस लोकसभा क्षेत्र के लिए साम, दाम, दंड, भेद सहित कोई भी नीति अपनाकर अपने उम्मीदवार को विजयी बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगी। कुल मिलाकर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित इस सीट पर मुक़ाबला बहुत ही रोचक होने वाला है।