आम आदमी पार्टी (आप) फिर बगावत का सामना कर रही है। पार्टी एक ओर जहां लोकसभा चुनाव के लिए कमर कस चुकी है, वहीं इसके नेता मुसीबतें पैदा कर रहे हैं। पार्टी 20 जनवरी तक उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी कर सकती है लेकिन ऐसे में बगावत होना पार्टी की राह में गंभीर चुनौती पैदा कर रही है।
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पार्टी के वरिष्ठ नेता योगेंद्र यादव ने कहा कि आम चुनाव में उनकी पार्टी का मुख्य मुकाबला भाजपा से होगा। अभी तक कराए गए विभिन्न सर्वेक्षणों में 'आप' को अच्छी सफलता मिलने की भविष्यवाणी की गई है। 'आप' ने 26 जनवरी तक एक करोड़ सदस्य बनाने के लिए अभियान भी चला रखा है। पार्टी हर वर्ग को आकर्षित करने के लिए नए तरीके अपना रही है।
इसी क्रम में दिल्ली के मुख्यमंत्री और 'आप' के संयोजक अरविंद केजरीवाल मंगलवार को मिलाद-उन-नबी के अवसर पर मस्जिद भी गए। सिविल सोसायटी के सदस्य भी बड़ी संख्या में 'आप' के साथ जुड़ रहे हैं, लेकिन इन सभी बातों के बावजूद 'आप' के भविष्य को लेकर सवाल उठ रहे हैं।
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कुछ विश्लेषकों का कहना है कि 'आप' कुछ समय के बाद अपने आप बिखर जाएगी क्योंकि ऐसा होने के कई कारण हैं। इनमें सबसे प्रमुख कारण हैं- नेतृत्व का अभाव, विचारधारा न होना, आंदोलन से जुड़े लोगों की अपनी विचारधारा, सिर्फ भ्रष्टाचार की बात करना और राष्ट्रीय एजेंडा न होना। इन्हीं कारणों की वजह से 'आप' में शामिल हुए सभी लोग अपना-अपना एजेंडा लेकर काम कर रहे हैं।
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प्रशांत भूषण कश्मीर में जनमत संग्रह की बात कर रहे हैं तो कुमार विश्वास अमेठी में जाकर पार्टी के सिद्धांतों से अलग वन-मैन आर्मी की तरह काम कर रहे हैं। ये सभी ऐसे मुद्दे हैं, जिनके जवाब 'आप' के पास नहीं हैं। ऐसा हो सकता है कि 2014 लोकसभा चुनाव में पार्टी को सफलता मिले, लेकिन 'आप' ने अगर पार्टी को संगठित रखने के तरीके और नेतृत्व पर जोर नहीं दिया तो यह बिखर सकती है। अगर नहीं बिखरी तो 'आप' अपनी प्रासंगिकता खो सकती है। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि पार्टी इन चुनौतियों पर जल्द से जल्द काबू पाए।
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'आप' की स्थापना लगभग 13 महीने पहले की गई थी। दिसंबर 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में 'आप' को 70 विधानसभा सीटों में से 28 पर विजय हासिल हुई।
अरविंद केजरीवाल पार्टी के संयोजक हैं और इसमें शक नहीं है कि वह 'आप' का एकमात्र ऐसा चेहरा हैं, जो सर्वामान्य हैं। वह दिल्ली के मुख्यमंत्री के तौर पर भी सक्रिय हैं और सभी राष्ट्रीय मुद्दों पर लगभग किनारा किए हुए हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि लोकसभा चुनाव में 'आप' का राष्ट्रीय चेहरा कौन होगा?
यह सवाल गंभीर इसलिए भी हो जाता है क्योंकि केजरीवाल लोकसभा चुनाव लड़ने से इनकार कर चुके हैं। हालांकि, पार्टी के पास योगेंद्र यादव के रूप में एक अन्य विकल्प है, लेकिन नेतृत्व के प्रश्न पर वह पहले ही हाथ खड़े कर चुके हैं और संगठन के लिए कार्य कर रहे हैं।
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इसके अलावा सवाल राज्यों में नेतृत्व का प्रश्न भी 'आप' के सामने बना हुआ है। कर्नाटक में पार्टी की संभावनाएं अच्छी हैं, लेकिन वहां कोई एक चेहरा नहीं है। गुजरात में 'आप' के सदस्यों की संख्या डेढ़ लाख से ज्यादा हो चुकी है, लेकिन चेहरा नहीं है।
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दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश में भी नेतृत्व का प्रश्न खड़ा है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, केरल, पश्चिम बंगाल किसी भी राज्य को लीजिए पार्टी के पास कोई विकल्प नहीं है। सिर्फ दिल्ली ही ऐसी जगह है, जहां पर पार्टी के पास केजरीवाल का नेतृत्व है और यहां पार्टी का प्रभाव बना हुआ है।