अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी की सरकार बने कुछ दिन हुए हैं। इस दौरान पार्टी अपने घोषणापत्र में किए गए वादों को पूरा करने की कोशिश कर रही है। पार्टी ने पूर्व कांग्रेस सरकार का मल्टी-ब्रांड खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेश निवेश (एफ़डीआई) को मंज़ूरी देने का फ़ैसला वापस लेने का अपना वादा पूरा कर दिया है।
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इस फ़ैसले की घोषणा करते हुए अरविंद केजरीवाल ने कहा, ''आम आदमी पार्टी एफ़डीआई के ख़िलाफ़ नहीं है. हमारे पास मौजूद जानकारी से साफ़ है कि खुदरा में एफ़डीआई से उपभोक्ताओं को ज़्यादा विकल्प तो मिलते हैं लेकिन साथ ही व्यापक स्तर पर इससे बेरोज़गारी बढ़ती है।'' पार्टी ने प्रति परिवार हर दिन 700 लीटर मुफ़्त पानी देने का वादा किया था।
केजरीवाल दिल्ली के ज़रूरतमंद लोगों को कम दाम पर बिजली देना चाहते हैं और इसके लिए उन्हें कांग्रेस के समर्थन की ज़रूरत होगी। लोगों को मुफ्त पानी देने के लिए उन्होंने दिल्ली जल बोर्ड के 800 अधिकारियों के स्थानांतरण कर दिए जिसे लेकर उनके फ़ैसले पर सवाल उठाए जा सकते हैं क्योंकि एक ही संस्था में इतने बड़े पैमाने पर फेरबदल किसी समस्या का हल नहीं है। अगले पन्ने पर, सबसिडी की भरपाई कैसे करेगी दिल्ली सरकार...
सब्सिडी देना आसान काम है लेकिन सब्सिडी बिल की भरपाई करना और उसके लिए पैसा जुटाना ज़्यादा मुश्किल काम होगा। ऐसे में सरकार अगर टैक्स लगाएगी तो यह लोगों को नाग़वार गुज़रेगा। पहले ही जनता दरबार में मची हड़बड़ी और अफ़रातफ़री के माहौल के चलते सरकार को ये फैसला रद्द करना पड़ा। हालांकि सरकार ने इसके लिए फोन कॉल, एसएमएस, शिक़ायत पत्र और इंटरनेट की राह चुन ली।
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लेकिन लगता यही है कि शायद आम आदमी पार्टी ने अपनी अधिकतर नीतियां बिना ठीक से विचार और अध्ययन के बनाई हैं। चुनाव घोषणापत्र और वादे, चुनाव के नतीजों को ध्यान में रख कर किए गए थे लेकिन पार्टी को इस तरह के नतीजों की उम्मीद शायद कतई नहीं थी। पहले पार्टी के पास इन मामलों पर ग़ौर करने का समय नहीं था इसलिए उसने आने वाले कुछ दिनों या लंबे भविष्य के लिए शायद कोई योजना नहीं बनाई।
अब जैसे-जैसे समस्याएं सामने आती जा रही हैं, पार्टी उस पर निर्णय ले रही है। लेकिन इन कामचलाऊ तरीकों से लंबे समय के लिए समस्याओं से नहीं निपटा जा सकता। इसलिए जरूरी है कि अगर पार्टी लंबे समय तक राजनीति में रहना चाहती है तो उसे अपने सदस्यों और नीतियों में कुछ मूलभूत विरोधाभासों को सुलझाना होगा। आने वाले महीनों में जब लोकसभा चुनाव का ख़ुमार उतर चुका होगा, तब पार्टी की असली परीक्षा शुरु होगी और तब उसे असली और चुनौतीपूर्ण मुद्दों से निपटना होगा जोकि आसान नहीं होगा।