मध्य वर्ग के प्रबुद्ध लोगों की तरह से देश के बहुत से लोगों ने अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी (आप) की प्रगति को देखा जोकि इंडिया अगेंस्ट करप्शन के आंदोलन से पैदा हुई थी। अन्ना हजारे के साथ जुड़ जाने से भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को एक त्वरित मान्यता भी मिल गई।
अपनी सफलता के लिए आप बहुत अधिक हद तक मीडिया पर निर्भर रही हालांकि आज केजरीवाल और उनके साथी मीडिया को कोसने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देते हैं। जिस तरह मीडिया का साथ आप की सबसे बड़ी ताकत बनी, अव वही ताकत इसकी सबसे बड़ी कमजोरी बन गई है। जो कि मीडिया पर निर्भर रहते हैं वे अंतत: इसी के रहमो करम पर निर्भर रह जाते हैं। आप भी इसी स्थिति में आ गई है।
दिल्ली में अपनी सरकार के सत्ताच्युत हो जाने के बाद मीडिया ने केजरीवाल से उनके चुनाव बाद की योजनाओं पर सवाल किए थे तो इन प्रश्नों का कोई सीधा उत्तर देने की बजाय उनका कहना था कि भारतीय लोकतंत्र एक समुद्रमंथन के दौर से गुजर रहा है इसलिए हम अभी इसके परिणामों की भविष्यवाणी नहीं कर सकते हैं। इसलिए आप की चुनाव बाद के परिणाम को लेकर भी कुछ ऐसी प्रतिक्रिया हो सकती है। लेकिन आप और इसके नेता केजरीवाल देश में हर जगह जाकर दिन प्रतिदिन समुद्रमंथन को और बड़ा तथा विकृत रूप देने में लगे हैं। डेली मेल में छपे एक लेख के मुताबिक केजरीवाल और उनके साथी नेता देश की राजनीतिक और आर्थिक मुख्यधारा के प्रत्येक हिस्सेदार का मजाक बनाते रहे हैं और इन्हें गिराने पर तुले हुए हैं।
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केजरीवाल और उनके सहयोगियों का यह समुद्रमंथन अब हमारी सभी स्थापित संस्थाओं और एजेंसियों को डुबोने और इन्हें इतना बदनाम करने का काम कर रहा है कि इनमें सुधार होने की गुंजाइश नहीं रहे। जबकि कांग्रेस अपने एकमात्र मोदी-विरोध में अंधी होकर इस खतरनाक खेल में आप की पूरी मदद कर रही है। अगर आप की रणनीति सफल रही तो यह देश में, समाज में एक ऐसे उपद्रवी अराजकता को जन्म देना चाहती है जो कि किसी भी समाज में समस्याएं समाप्त करने की बजाय नई-नई समस्याएं पैदा करेगी। उदहारण के लिए, सभी लोगों ने दिल्ली के पूर्व कानून मंत्री सोमनाथ भारती की कानून परायणता देखी होगी जो कि सतर्कता की सारी सीमाएं लांघ जाने को तैयार दिखती रही।
यह तो सभी जानते हैं कि देश में नेतृत्व का संकट है और देश अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है। ऐसे में पुलिस हतोत्साहित है, प्रशासक भ्रष्ट हैं और महाभ्रष्ट राजनीतिक नेताओं ने ऐसी स्थिति ला दी है कि हम ऐसे सतर्क कार्यकर्ताओं के हाथों में आ गए हैं कि हमें अपने को ही बचाने के लिए संघर्ष करना होगा। यह अराजकता केजरीवाल के लगातार चलने वाले संभावित समुद्रमंथन का नजीता हो सकता है। पर समुद्रमंथन को याद रखने वाले केजरीवाल को यह भी याद रखना चाहिए कि इस मंथन से हलाहल विष भी निकला था। तब अगर यह जहर घड़े से बाहर निकलकर पृथ्वी पर आ जाता तो सम्पूर्ण पृथ्वी नष्ट हो सकती थी।
इसी विष का शिव ने पान कर लिया था और इसे अपने गले से नीचे नहीं उतरने दिया था जिसके प्रभाव के कारण उनका कंठ नीला पड़ गया था और वे नीलकंठ कहलाए। क्या केजरीवाल ऐसी कोई भूमिका निभा सकते हैं? क्या उनकी आप में इतनी संगठनात्मक क्षमता है कि यह अराजकता और अति सतर्कता को फैलने से रोक सके? इस नई नवेली पार्टी में इतना दम तो कतई नहीं है। इसलिए अराजक कार्यों की तुलना समुद्रमंथन से करना खतरनाक संकेत पैदा करती है। इसलिए प्रश्न यह भी है कि क्या ऐसे व्यक्ति या संगठन या पार्टी को अपना मत देना चाहिए, जो कि खुले आम और लगातार अराजकता को अपना वांछित परिणाम मानती हो।
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दिल्ली का अनुभव और बाद में केजरीवाल और योगेन्द्र यादव के साक्षात्कारों से यह बात साफ हो जाती है कि चुनाव बाद उनका संभावित रुख क्या हो सकता है? इस मामले में हम तीन संभावित स्थितियों की कल्पना कर सकते हैं। पहली स्थिति तो यह हो सकती है कि आम चुनावों में आप को सीमित सफलता मिले और महानगरों या बड़े शहरों से इसकी सीटों की संख्या एक दर्जन से ज्यादा ना हो। एक नई पार्टी के लिए यह भी कोई कम उत्साहजनक प्रदर्शन नहीं होगा। देश की राजनीतिक प्रक्रियाओं में इसके सकारात्मक प्रभाव को कम नहीं आंकना चाहिए। लेकिन यह स्थिति ऐसी होगी जिसमें इसकी सरकार गठन में कोई भूमिका नहीं होगा और फिलहाल रही वांछनीय प्रतीत होता है।
दूसरी स्थिति में अगर आप को 20 से 30 के बीच सीटें मिल जाती हैं तो यह दिल्ली की तरह से स्थिति पैदा कर सकती है। ऐसे में यह ना-ना करते हुए भी सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा बनने को तैयार हो जाएगी। एक ऐसे गठबंधन का हिस्सा जिसे सौ से कम सीटें जीतने वाली पार्टी कांग्रेस का समर्थन मिल सकता है।
तीसरी स्थिति यह हो सकती है कि आप तीस से भी ज्यादा सीटें जीत ले और 'अपने समर्थकों से पूछे' कि क्या उसे केन्द्र में सरकार बना लेनी चाहिए? लेकिन यह तभी संभव है जबकि यह भाजपा और कांग्रेस के बाद तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरे हालांकि यह पार्टी की स्थिति को देखते हुए बहुत उदारता से सोचने के बाद भी संभव नजर नहीं आती।
पहली स्थिति के तहत आप को सीमित सफलता देश के लिए सबसे अच्छी स्थिति होगी क्योंकि तब यह राजनीतिक प्रक्रियाओं में अपना सकारात्मक प्रभाव छोड़ सकेगी। साथ ही, इसका इस बात पर भी जोर रहेगा कि यह दिल्ली में दोबारा से सत्तारूढ़ होने की कोशिश करे। यह इसके प्रयोगों के लिए सबसे उर्वर जमीन होगी लेकिन यह इसे अराजकता पैदा करने या समुद्रमंथन को दोबारा करने से रोकेगी। लेकिन आप को बड़ी सफलता पार्टी को गंदगी की सरकार बनाने में जुटने को प्रेरित करेगी।
यह अभी तक ना केवल इस स्थिति के तैयार नहीं है वरन इसके सिद्धांतों के भी विपरीत होगी। अगर आप किसी भी तरह से सरकार बनाने की प्रक्रिया में शामिल हो जाती है तो आगामी चुनावों तक देश को टालने योग्य राजनीतिक अस्थिरता को झेलना होगा।
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आप यह मानती है कि ऐसा ही होने वाला है और इसके बयानों से ऐसा ही आभास मिलता है। यह आम चुनावों को भी अपने लिए सेमीफाइनल मानने लगी है क्योंकि इसे लगता है कि दिल्ली में अब यह सीधे फाइनल में प्रवेश की दावेदार हो गई है। लेकिन कम से कम देश इस तरह की लगातार राजनीतिक अस्थिरता नहीं झेल सकता है।
केजरीवाल मानते हैं कि उन्हें चंदा मिलता रहेगा और दिल्ली में राजनीतिक खालीपन के बावजूद इन बातों का उस पर कोई असर नहीं होगा। लेकिन अगर ऐसा होता है तो देश में निवेश की संभावनाएं प्रभावित होंगी, निर्णय प्रक्रिया को फिर से लकवा मार सकता है और महत्वपूर्ण सुधारों का क्रियान्वयन संभव नहीं हो पाएगा। यह स्थिति दो या तीन वर्षों तक भी चल सकती है।
लेकिन, इस दौरान देश में महत्वाकांक्षी और कुशल कार्मिकों की फौज बढ़ेगी और देखेगी कि उनकी रोजगार की उम्मीदों पर पानी फिर रहा है क्योंकि देश राजनीतिक समर्थन के लिए लड़खड़ा रहा होगा और अर्थव्यवस्था गर्त में जा रही होगी। यह एक दुस्वप्न की स्थिति है और इसका एक ही कारण होगा कि आप को एक दर्जन से अधिक सीटें मिल जाएं।
सोचा जाना चाहिए कि भारतीय मतदाता अपनी व्यावहारिक बुद्धिमता का परिचय देते हुए ऐसा निर्णय सुनाएगी कि ऐसी डरावनी स्थिति ही पैदा ना हो। और हम इस स्थिति में भी नहीं हैं कि आप के अनियोजित और बिना सोचे समझी क्रांतिकारी बदलाव को झेल सकें। यह हमारी स्थितियों से मेल ना खाने वाली स्थिति है क्योंकि हम पहले से ही धीमी विकास गति और युवाओं की आर्थिक महत्वाकांक्षाओं तथा परिणामों के बीच की खाई से भयभीत हैं। इसलिए उम्मीद करें कि देश के मतदाता आप सरीखे दल को वोट देने की गलती नहीं करेंगे।