परसों शाम को मिर्जा़ यूसुफ़ अली ख़ाँ शहर में पहुँचे और कल मेरे पास आए। बेगम की पर्दानशीन और घर में बहुत लोगों की बीमारी और फिर तुम्हारी उनके हाल पर इनायतें और शाम की सोहबतों में सुखनवरों की हिकायतें, सब बयान कीं। हैरान हूँ, कि मेह हर तरफ़ खूब बरस रहा है, फिर बीमारी का शयुअ़ क्यों है? यहाँ भी अक्सर लोग तप में मुब्तला हं। हक़ तआ़ला अंजाम बख़ैर करे और अपने बंदों पर रहम फ़रमाए।
अगले ख़त में लिख चुका हूँ कि मरीज़ों की सेहत की ख़बर जल्द लिखिएगा। ज़ाहिरा अब तक कुछ-न-कुछ क़िस्सा चला आता है, कि आपका इनायतनामा अब तक नहीं आया।
हकीम इलाही बख़्श सिकंदराबादी आपके पास पहुँचे हैं। बहुत नेक बख़्त और माकूल आदमी हैं। उनकी परवरिश का ख़याल रहे। और शेख़ रहमत अल्ला साहिब जो आगे आपकी बदौलत कामयाब हो चुके हैं, अगर वहाँ हों तो उनका भी ख़याल रहे। मेरा सलाम कह दीजिए और अगर वहाँ न हों तो उनका हाल मुझको लिखिए।
मिर्जा़ यूसुफ़ अली ख़ाँ कहते थे कि आप उस क़सीदे के तालिब हैं, जो बतरीक़-ए-मरसिया लिखा गया है और उसमें शाह अवध की मदह भी मुंदरिज है। अगर हाथ आ गया तो छापे का, वरना क़लमी भेज दूँगा। बादशाह अवध तक पहुँच गया है। अगर कुछ ज़हूर में आया, तो वह भी तुमको लिखूँगा। बेगम को दुआ़ पहुँचे। क्यों भई, अब हम कोल आए भी, तो तुमको क्योंकर देखेंगे।
क्या तुम्हारे मुल्क में भतीजियाँ चच्चा से पर्दा करती हैं? भाई, ख़ुदा के वास्ते सबकी ख़ैर-ओ-आ़फ़ियत जल्द लिखो। मुंशी हरगोपाल के ख़त से इतना मालूम हुआ कि मियाँ अब्दुल लतीफ़ के घर में अच्छी तरह हैं, औरों का हाल नहीं मालूम हुआ। 15 अगस्त 1854 ई.