एक दिन वह बच्चा अकाल राहत कार्यस्थल पर मजदूरी कर रहा था। वहां कुछ अधिकारी जांच-पड़ताल करने आए। पता चला ये लोग अपनी रिपोर्ट सबसे बड़े अधिकारी कलेक्टर को देंगे, उसी दिन उसने ठान लिया कि अब कलेक्टर ही बनना है।
कहने को छोटी सी मगर बेहद प्रेरक संघर्षगाथा है यूपीएससी परीक्षा में 110वीं रैंक हासिल करने वाले 30 वर्षीय हुक्माराम चौधरी की। वे अपने गांव के पहले आईएएस अफसर हैं।
नागौर के छोटे से गांव भेरूंदा में रहने वाले हुक्माराम बताते हैं कि पिता अस्थमा के रोगी थे, इसलिए परिवार की जिम्मेदारी बचपन से उनके कंधों पर आ गई।
हुक्माराम स्कूल जाने के साथ खेत संभालते और गर्मी की छुट्टियों में मजदूरी करते थे। विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने हार नहीं मानी। 12वीं पास कर कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर गांव के बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाई। एमएससी की पढ़ाई पूरी की।
स्नातक होते-होते हुक्माराम का शिक्षक भर्ती परीक्षा में चयन हो गया था, लेकिन उनका लक्ष्य तो आईएएस अफसर बनना था। सालभर दिल्ली में रहकर परीक्षा की तैयारी की और उनकी मेहनत रंग लाई। जब गांववालों को उनके आईएएस बनने की खबर लगी तब पूरे गांव ने उनके सम्मान में जुलूस निकाला।
हुक्माराम कहते हैं कि 'लक्ष्य को पाने के लिए ईमानदारी से मेहनत करना जरूरी है।' हुक्माराम ने युवाओं के सामने एक मिसाल कायम की हैं। मंजिल की राहें कितनी कठिन क्यों न हो उस पर पहुंचने के लिए कड़ा परिश्रम करना पड़ता है।