तब मेरी पीड़ा अकुलाई! जग से निंदित और उपेक्षित, होकर अपनों से भी पीड़ित, जब मानव ने कंपित कर से हा! अपनी ही चिता बनाई! तब मेरी पीड़ा अकुलाई!
सांध्य गगन में करते मृदु रव उड़ते जाते नीड़ों को खग, हाय! अकेली बिछुड़ रही मैं, कहकर जब कोकी चिल्लाई! तब मेरी पीड़ा अकुलाई!
झंझा के झोंकों में पड़कर, अटक गई थी नाव रेत पर, जब आँसू की नदी बहाकर नाविक ने निज नाव चलाई! तब मेरी पीड़ा अकुलाई!
मैं अकंपित दीप...
मैं अकंपित दीप प्राणों का लिए, यह तिमिर तूफान मेरा क्या करेगा? बन्द मेरी पुतलियों में रात है, हास बन बिखरा अधर पर प्रात है, मैं पपीहा, मेघ क्या मेरे लिए, जिन्दगी का नाम ही बरसात है, साँस में मेरी उनंचासों पवन, यह प्रलय-पवमान मेरा क्या करेगा? यह तिमिर तूफान मेरा क्या करेगा?
कुछ नहीं डर वायु जो प्रतिकूल है, और पैरों में कसकता शूल है, क्योंकि मेरा तो सदा अनुभव यही, राह पर हर एक काँटा फूल है, बढ़ रहा जब मैं लिए विश्वास यह, पंथ यह वीरान मेरा क्या करेगा? यह तिमिर तूफान मेरा क्या करेगा?
मुश्किलें मारग दिखाती हैं मुझे, आफतें बढ़ना बताती हैं मुझे, पंथ की उत्तुंग दुर्दम घाटियाँ ध्येय-गिरि चढ़ना सिखाती हैं मुझे, एक भू पर, एक नभ पर पाँव है, यह पतन-उत्थान मेरा क्या करेगा?
मैं तूफानों में......
मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ तुम मत मेरी मंजिल आसान करो!
हैं फूल रोकते, काँटे मुझे चलाते, मरुस्थल, पहाड़ चलने की चाह बढ़ाते, सच कहता हूँ मुश्किलें न जब होती हैं, मेरे पग तब चलने में भी शरमाते, मेरे संग चलने लगें हवाएँ जिससे, तुम पथ के कण कण को तूफान करो। मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ तुम मत मेरी मंजिल आसान करो!
अंगार अधर पर धर मैं मुस्काया हूँ, मैं मरघट से जिन्दगी बुला लाया हूँ, हूँ आँख-मिचौनी खेल चुका किस्मत से, सौ बार मृत्यु के गाल चूम आया हूँ, है नहीं मुझे स्वीकार दया अपनी भी, तुम मत मुझ पर कोई एहसान करो। मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ तुम मत मेरी मंजिल आसान करो!
श्रम के जल से ही राह सदा सिंचती है, गति की मशीन आँधी में ही हँसती है, शूलों से ही श्रृंगार पथिक का होता, मंजिल की माँग लहू से ही सजती है, पग में गति आती है छाले छिलने से, तुम पग पग पर जलती चट्टान धरो। मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ तुम मत मेरी मंजिल आसान करो!
फूलों से मग आसान नहीं होता है, रुकने से पग गतिवान नहीं होता है, अवरोध नहीं तो संभव नहीं प्रगति भी, है नाश जहाँ निर्माण वहीं होता है, मैं बसा सकूँ नव स्वर्ग धरा पर जिससे, तुम मेरी हर बस्ती बीरान करो। मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ तुम मत मेरी मंजिल आसान करो!
मैं पंथी तूफानों में राह बनाता, मेरी दुनिया से केवल इतना नाता- वह मुझे रोकती है अवरोध बिछाकर, मैं ठोकर उसे लगाकर बढ़ता जाता, मैं ठुकरा सकूँ तुम्हे भी हँसकर जिससे, तुम मेरा मन-मानस पाषाण करो।
मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ तुम मत मेरी मंजिल आसान करो!
मेरा इतिहास नहीं है
काल बादलों से धुल जाए वह मेरा इतिहास नहीं है! गायक जग में कौन गीत जो मुझ सा गाए, मैंने तो केवल हैं ऐसे गीत बनाए, कंठ नहीं, गाती हैं जिनको पलकें गीली, स्वर-सम जिनका अश्रु-मोतिया, हास नहीं है! काल बादलों से......!
मुझसे ज्यादा मस्त जगत में मस्ती जिसकी, और अधिक आजाद अछूती हस्ती किसकी, मेरी बुलबुल चहका करती उस बगिया में, जहाँ सदा पतझर, आता मधुमास नहीं है! काल बादलों से......!
किसमें इतनी शक्ति साथ जो कदम धर सके, गति न पवन की भी जो मुझसे होड़ कर सके, मैं ऐसे पथ का पंथी हूँ जिसको क्षण भर, मंजिल पर भी रुकने का अवकाश नहीं है! काल बादलों से......!
कौन विश्व में है जिसका मुझसे सिर ऊँचा? अभ्रंकष यह तुंग हिमालय भी तो नीचा, क्योंकि खुले हैं मेरे लोचन उस दुनिया में, जहाँ धरा तो है लेकिन आकाश नहीं है! काल बादलों से......!