ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है क्योंकि पिया दूर है न पास है। बढ़ रहा शरीर, आयु घट रही, चित्र बन रहा लकीर मिट रही, आ रहा समीप लक्ष्य के पथिक, राह किन्तु दूर दूर हट रही, इसलिए सुहागरात के लिए आँखों में न अश्रु है, न हास है। ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है क्योंकि पिया दूर है न पास है।
गा रहा सितार, तार रो रहा, जागती है नींद, विश्व सो रहा, सूर्य पी रहा समुद्र की उमर, और चाँद बूँद बूँद हो रहा, इसलिए सदैव हँस रहा मरण, इसलिए सदा जनम उदास है। ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है क्योंकि पिया दूर है न पास है।
बूँद गोद में लिए अंगार है, होठ पर अंगार के तुषार है, धूल में सिंदूर फूल का छिपा, और फूल धूल का सिंगार है, इसलिए विनाश है सृजन यहाँ इसलिए सृजन यहाँ विनाश है। ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है क्योंकि पिया दूर है न पास है।
ध्यर्थ रात है अगर न स्वप्न है, प्रात धूर, जो न स्वप्न भग्न है, मृत्यु तो सदा नवीन ज़िन्दगी, अन्यथा शरीर लाश नग्न है, इसलिए अकास पर ज़मीन है, इसलिए ज़मीन पर अकास है। ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है क्योंकि पिया दूर है न पास है।
दीप अंधकार से निकल रहा, क्योंकि तम बिना सनेह जल रहा, जी रही सनेह मृत्यु जी रही, क्योंकि आदमी अदेह ढल रहा, इसलिए सदा अजेय धूल है, इसलिए सदा विजेय श्वास है। ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है क्योंकि पिया दूर है न पास है।
बहार आई....
तुम आए कण-कण पर बहार आई तुम गए, गई झर मन की कली-कली।
तुम बोले पतझर में कोयल बोली, बन गई पिघल गुँजार भ्रमर-टोली, तुम चले चल उठी वायु रूप-वन की झुक झूम-झूमकर डाल-डाल डोली, मायावी घूँघट उठते ही क्षण में रुक गया समय, पिघली दुख की बदली। तुम गए, गई झर मन की कली-कली॥
रेशमी रजत मुस्कानों में रँगकर। तारे बनकर छा गए अश्रु तम पर, फँस उरझ उनींदे कुन्तुल-जालों में, उतरा धरती पर ही राकेन्दु मुखर, बन गई अमावस पूनों सोने की, चाँदी से चमक उठे पथ गली-गली। तुम गए, गई झर मन की कली-कली॥
तुमने निज नीलांचल जब फैलाया, दोपहरी मेरी बनी तरल छाया, लाजारुण ऊषे झाँकी झुरमुट से, निज नयन ओट तुमने जब मुस्काया, घुँघरू सी गमक उठी सूनी संध्या, चंचल पायल जब आँगन में मचली। तुम गए, गई झर मन की कली-कली॥
हो चले गए जब से तुम मनभावन! मेरे आँगन में लहराता सावन, हर समय बरसती बदली सी आँखें, जुगनू सी इच्छाएँ बुझतीं उन्मन, बिखरे हैं बूँदों से सपने सारे, गिरती आशा के नीड़ों पर बिजली। तुम गए गई झर मन की कली-कली॥