जग रूठे तो बात न कोई
तुम रूठे तो प्यार न होगा।
मणियों में तुम ही तो कौस्तुभ
तारों में तुम ही तो चन्दा,
नदियों में तुम ही तो गंगा
गन्धों में तुम ही निशिगन्धा।
दीपक में जैसे लौ-बाती,
तुम प्राणों के संग-सघाती,
तन बिछुड़े तो बात न कोई
तुम बिछुड़े सिंगार न होगा।
जग रूठे तो बात न कोई
तुम रूठे तो प्यार न होगा।
व्योम नहीं यह, भाल तुम्हारा
धरा नहीं है धूल चरण की,
सृष्टि नहीं यह लीला केवल
सृजन-प्रलय की प्रलय-सृजन की,
तन का, मन का, जग जीवन का
तुमसे ही नाता इन-उन का,
हम न रहे तो बात न कोई
तुम न रहे संसार न होगा।
जग रूठे तो बात न कोई
तुम रूठे तो प्यार न होगा।
पूनम गौर कपोल विराजे
अधर हँसें उर अरुणीली,
कुन्तल-लट से लिपटी संध्या
श्यामा अंजन-रेख नशीली,
सारे सागर, दिशि भू-अम्बर
तुमसे ही द्युतिमान चराचर
रवि न उगे तो बात न कोई
तुम न उगे उजियार न होगा।
जग रूठे तो बात न कोई
तुम रूठे तो प्यार न होगा।
तुम बोले संगीत जी गया
तुम चुप हुई चुप वाणी,
तुम विहँसे मधुमास हँस उठा
तुम रोये रो उठा हिमानी,
जन्मविरह-दिन, मरणमिलन-क्षण,
तुम ही दोनों पर्व चिरन्तन,
दृग न दिखें तो बात न कोई
तुम न दिखे दरबार न होगा।
जग रूठे तो बात न कोई
तुम रूठे तो प्यार न होगा।
तुमसे लागी प्रीति, बिना-
भाँवर दुलहिन हो गई सुहागिन,
तुमसे हुआ बिछोह, मृत्तिका-
की बन्दिन हो गई अनादिन,
निपट-बिचारी, निपट-दुखारी
बिना तुम्हारे राजकुमारी,
मुक्ति न मिले, न कोई चिन्ता
तुम न मिले भव पार न होगा।
जग रूठे तो बात न कोई,
तुम रूठे तो प्यार न होगा।