गुजरात चुनाव को प्राणवायु के रूप में देख रहा है हताश विपक्ष

अगले माह गुजरात में होने वाले विधानसभा के चुनाव केवल राज्य के ही चुनाव के रूप में नही  लड़े जा रहे है ये चुनाव आगामी लोकसभा चुनाव के लिए भी निर्णायक साबित होंगे। देश का हताश विपक्ष इन चुनावों को अपनी प्राणवायु के रूप में देख रहा है तो 22 साल से राज्य में काबिज भारतीय जनता पार्टी इसे बरकरार रखने के लिए एडी चोटी का जोर लगा रही है।
 
चूंकी देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह का ये घरेलू चुनाव है इस वजह से  उनकी नाक भी इस चुनाव से जुड़ी हुई है। इन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण प्रधानमंत्री की नीतियों पर ये चुनाव सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव जाहिर कर देंगे।
 
गुजरात के मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे नरेन्द्र मोदी की राज्य में पकड़ कमजोर हुई है ऐसा नही है, मगर 2012 से 2017 तक गुजरात के सियासी पारिवेश में काफी बदलाव राजनीतिक और समाजिक तौर पर हुए हैं, उसका असर भी इन चुनाव पर निश्चित ही पड़ेगा।
 
मसलन आनंदी बेन की जगह विजय रुपानी को मुख्यमंत्री को बनाना, राहुल गांधी की रैलियों में भीड़ का जुटना और हार्दिक पटेल का उभरना, शंकर सिंह वाघेला जैसे कई फेक्टर है जो इन चुनाव को प्रभावित करेंगे। नोटबंदी के बाद जीएसटी भी गुजरात में खासा असर दिखाये इस बात से इंकार किया नही जा सकता, लेकिन राजनीति में कुछ भी संभव है।
 
नोटबंदी के बाद उत्तरप्रदेश के चुनाव में जिस तरह प्रचंड बहुमत ले कर भारतीय जनता पार्टी उभरी उससे तो यही माना जाना चाहिए कि नोटबंदी जैसे केंद्र सरकार के निर्णयों का राज्यों के चुनाव पर असर नहीं होता। हो सकता है कि इसी तरह जीएसटी का हल्ला भी गुजरात में बेअसर रहे। हालांकि सरकार ने जीएसटी के रेट भी घटा दिए है। इस बात को भी स्वीकार नही किया जा सकता कि किसी राज्य के चुनाव केन्द्रीय राजनीति पर सीधा प्रभाव डालते हैं लेकिन ये परिणाम राजनीति का एक नया मार्ग तो निर्धारित करते ही है।
 
इस बार भाजपा के पास गुजरात चुनाव को जीतने के लिए न तो नरेंद्र मोदी जैसा मुख्यमंत्री है और न ही 2014 की मोदी लहर, न हिन्दुत्त्व का मुद्दा। उलट उसके सामने पार्टी की अंदरूनी कलह, नोटबंदी और जीएसटी के दुष्प्रभाव का नकारात्मकता और सत्तारुढ पार्टी के कारण नकारात्मक वोटिंग का खतरा तो है ही साथ में हार्दिक पटेल जैसी बाधा भी उसके सामने है।
 
जैसा की चुनाव से पहले किए जा रहे तमाम सर्वे में भाजपा की सरकार बनने के दावे के साथ यह भी कहा जा रहा है कि भाजपा का वोट प्रतिशत कम हो रहा है। सर्वे में भाजपा और कांग्रेस के बीच मतों के प्रतिशत का अंतर मात्र 6 फीसदी ही है।यदि ये 6 प्रतिशत मतों का अंतर भाजपा के विरोध में और इस बार कांग्रेस के पक्ष में चला जाय तो परिणाम आशा के विपरीत जा सकते हैं।
 
बहरहाल इस चुनाव के दो परिणाम हो सकते हैं। एक यह कि भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश जैसे प्रचंड बहुमत मिल जाए और दूसरा उसके उलट की भाजपा को प्रदेश की जनता नकार दे और वह सत्ता से बाहर हो जाए। पहली परिस्थिति में इसका मतलब ये होगा कि भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू राज्य और देश पर कायम है। उनका 'विकास' पगलाया नहीं है और उसे  देश अपना रहा है, इसके लिए नोटबंदी और जीएसटी को जनता अनमने मन से ही अपना तो रही है और देश हित में ऐसे निर्णय लेने के लिए देश उन्हें फ्री हेंड दे रहा है।
 
इसका दूसरा आशय यह होगा कि प्रधानमंत्री मोदी का कांग्रेस विहीन देश का सपना साकार हो रहा है और कांग्रेस में राहुल गांधी की टीम अभी राजनीति में अपने पैर नही जमा पाई। मतलब मोदी के सामने विपक्ष शून्य है।
 
दूसरी परिस्थिति का मतलब होगा कि भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी का विजयी अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा उनके ही राज्य में रोक दिया गया। नोटबंदी के बाद सरकार द्वारा लाए गए जीएसटी कानून को जनता ने नकार दिया। कांग्रेस सहित अन्य दल इसे बीजेपी के पतन की पहली पायदान मान कर आगामी लोकसभा चुनाव के लिए एक जुट हो जाए।
 
वैसे अभी राज्य में भाजपा के पास 182 में से 115 सीटें है, कांग्रेस ने 2012 के चुनाव में 61 सीटें जीती थी, हाल में जो सर्वे सामने आया है उसमे भी कहा गया है कि हार्दिक पटेल फैक्टर गुजरात चुनाव में जबर्दस्त तरीके से काम करेगा। पटेल वोटों का एक बड़ा हिस्सा कांग्रेस के साथ जाने का अनुमान है।
 
ऑपिनियन पोल में गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत का तो अनुमान लगाया गया है। लेकिन यह भी कहा गया  कि राज्य में भाजपा की लोकप्रियता घटी है और कांग्रेस का तेजी से उभार हुआ है। ऑपिनियन पोल के आंकड़ों के मुताबिक बीजेपी को विधानसभा चुनाव में 113-121 सीटें मिल सकती हैं। पोल के मुताबिक कांग्रेस को सिर्फ 58-64 सीटों से संतोष करना पड़ सकता है। इसके पहले अगस्त में इसी एजेंसी द्वारा कराए गए सर्वे में भाजपा को 144 से 152 सीटें मिलने की संभावना जताई गई थी, जबकि कांग्रेस को 26 से 32 सीटें मिलने का अनुमान था।
 
बहरहाल नतीजा जो भी आए। यह चुनाव देश में एक नया मापदंड स्थापित करेगा। भाजपा और अन्य दलों के साथ देश की राजनीति के लिए भी नई राह भी स्थापित करेगा। इन चुनाव के बाद हिन्दी राज्यों का तीसरा बड़ा चुनाव मध्यप्रदेश में होना है वहां भी इसका असर दिखेगा।

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