उसे इतना तो समझना ही चाहिए था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों या भाजपा के अन्य छुटभैये-बड़भैये, अपनी सरकारों के कामकाज के मुद्दे पर घिरेंगे, तो ‘औरंगजेब’ या ‘औरंगजेब राज’ जैसे बयानों पर तो उतरेंगे ही और बदले में किसी मणिशंकर अय्यर ने ‘नीच’, ‘पागल’, ‘बददिमाग’ या ‘गंदी नाली का कीड़ा’ जैसी शब्दावली इस्तेमाल कर दी तो इसे ‘गुजराती अस्मिता’ का मामला बनाकर ‘पाकिस्तानी’, ‘गद्दार’, ‘मीरजाफर’, ‘जयचंद’ और ‘पाक को सुपारी देने वाला’ तक खींच ले जा सकते हैं। सच को कांग्रेस नो मोदी ने अपने ही प्रचार के जाल में उलझाकर जीतने लायक नहीं छोड़ा। अय्यर कांड के बाद जब तक राहुल अपराधभाव से डैमेज कंट्रोल पर उतरते, बात हाथ से निकल चुकी थी।