हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन इन चार जगहों पर क्रमानुसार कुंभ मेले के आयोजन होता आया है। प्रत्येक जगह पर कुंभ में सबसे पहले शाही स्नान को लेकर संन्यासियों के अखाड़ों के बीच संघर्ष का इतिहास रहा है। कभी कभी तो यह संघर्ष खूनी संघर्ष में भी बदला है। आओ जानते हैं हरिद्वार कुंभ मेले में संन्यासी अखाड़ों के बीच संघर्ष का संक्षिप्त इतिहास।
वैष्णव और शैव संप्रदाय के झगड़े प्राचीनकाल से ही चलते आ रहे हैं, हालांकि कभी कुंभ में स्नान को लेकर संघर्ष नहीं हुआ। लेकिन जब से अखाड़ों का निर्माण हुआ है तब से कुंभ में शाही स्नान को लेकर संघर्ष भी शुरू होने लगा। एक वक्त ऐसा भी आया कि शाही स्नान के वक्त तमाम अखाड़ों एवं साधुओं के संप्रदायों के बीच मामूली कहासुनी भी खूनी संघर्ष का रूप लेने लगी थी। इसके लिए शासन और प्रशासन को मुस्तेद रहना पड़ता है।
वर्ष 1760 में शैव सन्यासियों व वैष्णव बैरागियों के बीच संघर्ष हुआ था। 1796 के कुम्भ में शैव संयासी और निर्मल संप्रदाय आपस में भिड़ गए थे। 1927 में बैरीकेडिंग टूटने से काफी बड़ी दुर्घटना हो गई थी। वर्ष 1986 में भी दुर्घटना के कारण कई लोग हताहत हो गए। 1998 में हर की पौड़ी में अखाड़ों के बीच संघर्ष हुआ था। 2004 के अर्धकुंभ मेले में एक महिला से पुलिस द्वारा की गई छेडछाड़ ने जनता, खासकर व्यापारियों को सड़क पर संघर्ष के लिए मजबूर कर दिया। जिसमें एक युवक की मौत हो गई थी।
इसी तरह संन्यासियों के सातों अखाड़ों में सबसे पहले शाही स्नान जूना अखाड़े के साधुओं ने हर की पैड़ी स्थित ब्रह्म कुंड में गोते लगाए, प्रातःकाल ब्राह्ममुहूर्त से लेकर पूर्वाह्न 8 बजे तक आम श्रद्धालुओं ने हर की पैड़ी में स्नान किया तत्पश्चात साधुओं के साही स्नान के लिए क्षेत्र को आरक्षित कर दिया गया।
यद्यपि कुंभ स्नान परंपरा में हरिद्वार में पहला शाही स्नान संन्यासी-महात्माओं के 7 अखाड़े जिनमें पहले जूना अखाड़ा, अग्नि अखाड़ा, आह्वान अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा एवं अटल अखाड़ा करते आ रहे हैं, लेकिन इस कुंभ में एक विशेषता यह देखने को मिली कि अखाड़ा परिषद के एक निर्णय के अनुसार वैरागी, उदासीन और निर्मल अखाड़े के संत भी प्रथम शाही स्नान में सम्मिलित हुए। इससे पूर्व ये अखाड़े बाद के साही स्नानों में सम्मिलित होते थे, संत मिलन का यह संगम अद्भुत था जिसमें इन अखाड़ों के श्री महंत शाही की अग्रिम पक्ति के साथ थे। बाद के शाही स्नान के क्रम में आखिरी में महानिर्वाणी अखाड़े की साही निकली। ब्रह्मकुंड स्नान के बाद शाही जुलूस के साथ साधु-महात्मा, नागा संन्यासी अपनी-अपनी छावनियों में लौट आए थे।