बच्चनजी अपनी आत्मकथा का पहला भाग 'क्या भूलूँ क्या याद करूँ' पूरा कर चुके थे और दूसरे भाग 'नीड़ का निर...
बच्चनजी को मैंने रू-ब-रू देखा 1951 में। सागर में। मैं सागर महाविश्वविद्यालय में बी.ए. अंतिम वर्ष का ...
जब पहली बार मैंने 43 या 44 में सरस्वती के पुराने अंक पलटते हुए बच्चनजी की प्रसिद्ध कविता 'इस पार प्र...
सुना है, तुम अपनी कविताओं के जरिये शराब के सेवन का प्रचार करते हो। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने इंद...
देवलोक से मिट्टी लाकर
मैं मनुष्य की मूर्ति बनाता!
रचना मुख जिससे निकली हो,
वेद-उपनिषद् की वर वाणी, ...