31 मई : नो स्मोकिंग डे पर जानिए सिगरेट का इतिहास और इससे जुड़े कानून

31 मई को प्रतिवर्ष पूरे विश्व में नो टोबैको व नो स्मोकिंग डे मनाया जाता है। इसे मनाने का उद्देश्य है लोगों को इसके किसी भी रूप में सेवन से होने वाले नुकसान के प्रति जागरूक करना। टोबैको किसी भी लिहाज से सेहत के लिए अति हानिकारक है। आइए, आपको सिगरेट के इतिहास और इससे जुड़े कुछ जरूरी कानून के बारे में बताते हैं -   
 
सिगरेट से जुड़ा 2003 का कानून जो कि (1 मई 2004 से प्रभावी हुआ था) 
 
1. 2003 में भारत सरकार ने एक अधिनियम पारित किया था, जिसके तहत ये कहा था- 
 
2. कोई भी व्यक्ति सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान नहीं करेगा। इनमें सभागृह, भवनों, रेलवे स्टेशन, पुस्तकालय, अस्पताल, रेस्तराँ, कोर्ट, स्कूल, कॉलेज आदि आते हैं।
 
3. सार्वजनिक स्थलों पर भारतीय भाषाओं में बड़े अक्षरों में गैर-धूम्रपान क्षेत्र के बोर्ड लगाए जाएं।
 
4. सिगरेट और तंबाकू उत्पादों का विज्ञापन नहीं किया जाएगा। 
 
5. तीस कमरों के होटल या तीस से अधिक लोगों के बैठने की रेस्तरां में मालिक या मैनेजर ये तय करें कि धूम्रपान व गैर-धूम्रपान क्षेत्र अलग हों।
 
6. लोगों को गैर-धूम्रपान क्षेत्र में जाने के लिए धूम्रपान वाले इलाके से न गुजरना पड़े।
 
7. तंबाकू एवं अन्य तंबाकू उत्पाद- गुटखा, खैनी, जर्दा, तंबाकू वाले मसाले, बीड़ी, सिगरेट, हुक्का, चुरट, सिगार, नसवार 18 साल से कम के लोगों के लिए प्रतिबंधित है।
 
8. समय-समय पर इन नियमों में सुधार किए जाते रहे हैं। जैसे आजकल सभी सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान निषेध है। विडंबना यही है कि कानून से अक कानून तोड़ने वाले प्रभावी है। जब तक नियमों का सख्ती से पालन नहीं करवाया जाता इस समस्या से मुक्ति असंभव है।
 

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