थायराइड की बीमारी अब लाइलाज नहीं है, बशर्ते इसे सही समय पर इसकी जांच कर ली जाए। कई बार उपचार के बाद भी यह बीमारी पूरी तरह ठीक नहीं होती। इसलिए एक बार इसका उपचार करवाने के बाद भी समय-समय पर इसकी जांच करवानी पड़ती है। अच्छी बात यह है कि ज्यादातर मामलों में इनका इलाज संभव है।
5. थायरॉइड ग्रंथि से कितने कम या ज्यादा मात्रा में हार्मोन्स निकल रहे हैं, यह खून की जांच से पता लगाया जाता है। खून की जांच तीन तरह से की जाती है, टी-3, टी-4 और टीएसएच से। इसमें हार्मोन्स के स्तर का पता लगाया जाता है। मरीज की स्थिति देखकर डॉक्टर तय करते हैं कि उसको कितनी मात्रा में दवा की खुराक दी जाए।
हायपरथायरॉइड के मरीजों को थायरॉइड हार्मोन्स को ब्लॉक करने के लिए अलग किस्म की दवा दी जाती है। हाइपोथायरॉयडिज्म का इलाज करने के लिए आरंभ में ऐल-थायरॉक्सीन सोडियम का इस्तेमाल किया जाता है, जो थायरॉइड हार्मोन्स के स्त्राव को नियंत्रित करता है। तकरीबन 90 प्रतिशत मामलों में दवा ताउम्र खानी पड़ती है। पहली ही स्टेज पर इस बीमारी का इलाज करा लिया जाए तो रोगी की दिनचर्या आसान हो जाती है।