गर्भ धारण करने वाली 250 महिलाओं को बच्चा पैदा होने तक एक्यूपंक्चर विधि से भी गुजारा गया। इस तकनीक से सफलता दर में 60 प्रतिशत की वृद्धि पाई गई। स्ट्री डिश में अंडे व शुक्राणु का मिलन कराकर संतान उत्पत्ति की तकनीक बेशक एक चमत्कार है।
टेस्ट ट्यूब बेबी की आबादी बढ़ रही है लेकिन कृत्रिम प्रजनन की आईवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) नामक इस विधि से बच्चों की किलकारियों से जितने घर आबाद नहीं हो रहे उससे कहीं अधिक घर कंगाल हो रहे हैं। किसी दंपती को इस विधि के एक चक्र में ही संतान की प्राप्ति हो जाती है तो अनेक ऐसे हैं जो इस विधि पर 15-15 लाख रुपए खर्च कर भी बच्चे से महरूम हैं।
लेकिन जर्मनी में हाल में हुए एक शोध ने आईवीएफ यानी टेस्ट ट्यूब बेबी की तकनीक की अंधी सुरंग में आशा की किरण जगाई है। आईवीएफ तकनीक व एक्यूपंक्चर के मिलन से टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक में सफलता के प्रतिशत में भारी उछाल आया है।
अपोलो अस्पताल में एक्यूपंक्चर विशेषज्ञ डॉ. रवींद्र तुली ने बताया कि वहाँ टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक से गर्भ धारण करने वाली 250 महिलाओं को बच्चा पैदा होने तक एक्यूपंक्चर विधि से भी गुजारा गया। इस तकनीक से सफलता दर में 60 प्रतिशत की वृद्धि पाई गई। इस विधि में शरीर के विभिन्न हिस्सों को सुई से छेदा जाता है।
उनके अनुसार चीन में तो इस शोध के पहले से ही एक्यूपंक्चर कृत्रिम प्रजनन तकनीक का जरूरी हिस्सा है। डॉ. तुली कहते हैं - पेस्ट्री डिश में आप पत्नी के अंडे व पति के शुक्राणु का मेल कराकर भ्रूण बना भी लें लेकिन अगर बच्चादानी ही अनुकूल नहीं हुई, जहाँ इस निषेचित अंडे को रखा जाना है तो सब गुड़ गोबर ।
शोध में पाया गया कि पत्नी को इस विधि से गुजारने से गर्भाशय की उस दीवार की मोटाई बढ़ती है और वहाँ तक खून का प्रवाह सुधरता है। इस तकनीक के लिए यह जरूरी है कि शरीर में कोई हॉरमोन जनित उथल-पुथल न हो। एक्यूपंक्चर बच्चेदानी में प्रजनन संबंधी कमजोरियों को दूर करने के साथ साथ हॉरमोन के संतुलन को सुनिश्चित करता है।
अगर कोई दंपती आईवीएफ तकनीक से गुजरने के पहले एक्यूपंक्चर के चक्र से गुजर लें तो तकनीक की सफलता बहुत हद तक सुनिश्चित हो सकती है। एक्यूपंक्चर के साथ-साथ अष्टयोग, रेकी व प्राणिक हीलिंग का एक साथ प्रयोग दंपती की प्रजनन क्षमता को बढ़ाने में काफी मददगार साबित हो सकता है। लो स्पर्म काउंट ( शुक्राणु की कम संख्या), विलंब से विवाह व बीमारियों की वजह से संतान सुख से पीड़ित दंपती अगर चिकित्सा की इस विधि से गुजर लें तो शायद कृत्रिम विधि की जरूरत ही न पड़े ।
डॉ. तुली एक प्रसंग का जिक्र करते हुए कहते हैं - 'मेरा मानना है कि लोग इस विधि को अपनाने में थोड़ी हड़बड़ी भी दिखाते हैं। टेस्ट ट्यूब विधि में करीब 10 लाख रुपए खर्च करने के बाद भी संतान से वंचित 30 वर्ष की एक महिला मेरे पास आईं। पति-पत्नी दोनों पर की गई सारी जाँच नॉर्मल थी। फिर भी उन्हें कामयाबी नहीं मिल रही थी। मैंने उन्हें बच्चे के लिए एक महीने का दूसरा हनीमून मनाने की सलाह दी। शादी के समय जब उन्होंने हनीमून मनाया था तो उस समय गर्भ न ठहरे इसकी व्यवस्था की थी। सचमुच कमाल हो गया। लौटकर जाँच कराई तो महिला को गर्भ ठहर गया था ।'
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टेस्ट ट्यूब बेबी देश में अब एक बहुत बड़ा उद्योग बन गया है। एक ताजा अनुमान के अनुसार देश में 10 प्रतिशत दंपती प्रजनन दोषों की वजह से संतान से वंचित रहते हैं। आईवीएफ विशेषज्ञ संतान सुख की चाहत को भुना कर मालामाल हो रहे हैं । जिस तरह कमाई के लिए प्रसूति विशेषज्ञ आज बच्चे के नॉर्मल जन्म की जगह सीजेरियन ( सर्जरी के जरिए) को अपनाने लगे हैं, उसी तरह नॉर्मल गर्भ ठहरने की स्थिति के बावजूद दंपतियों को टेस्ट ट्यूब की तकनीक आजमाने की सलाह दी जाने लगी है।
पूरे देश में अभी करीब 20 हजार फर्टिलिटी सेंटर बन गए हैं लेकिन संतान की इच्छा लिए इनके पास जाने वाले 50 प्रतिशत से अधिक दंपतियों को अंततः निराशा ही हाथ लगती है लेकिन इस विधि को सुनिश्चित करने की दिशा में बहुत प्रयोग हो रहे हैं। जर्मनी का यह शोध उसी प्रयास की एक कड़ी है।