सूर्य की किरणों में सात रंग होते हैं, यद्यपि देखने में सफेद ही दिखाई देता है। सूर्य की सप्तरंगी-इंद्रधनुषी किरणों के सात रंग इस प्रकार हैं-
(1) बैंगनी (2) आसमानी (3) नीला (4) हरा (5) पीला (6) नारंगी और लाल और इन सात रंगों के अपने-अपने विशिष्ट गुण और प्रभाव हैं, जिससे ये सात प्रकार की औषधियों का कार्य करते हैं।
वास्तव में मूल रंग तीन ही हैं- (1) लाल (2) पीला (3) नीला। शेष रंग इन्हीं रंगों के परस्पर मिश्रण से बनते हैं, जैसा- नारंगी (लाल और पीले का मिश्रण), हरा (पीले और नीले का मिश्रण), बैंगनी (नीले और लाल का मिश्रण), आसमानी (नीले और सफेद का मिश्रण)।
आधुनिक अनुसंधानों और अनुभवों से यह सिद्ध हो चुका है कि सात रंगों के स्थान पर केवल तीन रंग- नीला, नारंगी, हरा- की सहायता से अधिकतर रोगों की सफल चिकित्सा की जा सकती है- और इन तीन रंगों के संतुलन द्वारा रोग निवारण की बात आयुर्वेद के 'त्रिदोष सिद्धांत' से बड़ी समानता रखती है।
तीन रंगी सूर्य किरण चिकित्सा का त्रिदोष से साम्य
आयुर्वेद के आधारभूत त्रिदोष सिद्धांत के अनुसार मानव शरीर में तीन दोष अर्थात कफ, वात, पित्त माने गए हैं। जब ये त्रिदोष शरीर में आवश्यक अंश या अनुपात में रहकर समता और संतुलन में रहते हैं और शरीर का परिचालन, संरक्षण और संवर्धन करते हैं, तब आरोग्य की स्थिति रहती है। इसके विपरीत कफ, वात, पित्त में से किसी दोष की कमी या वृद्धि अथवा असंतुलन हो जाता है तो रोगों की उत्पत्ति होती है।
सूर्य किरण चिकित्सा में कफ प्रधान या सर्दी से उत्पन्न रोगों में नारंगी (या लाल) रंग का, वात प्रधान या शरीर में गंदगी बढ़ जाने से उत्पन्न रोगों में हरे रंग का और पित्त प्रधान या गर्मी की अधिकता से उत्पन्न रोगों में नीले रंग के विधिवत प्रयोग द्वारा कफ, वात और पित्त का संतुलन हो जाता है और मनुष्य पुनः निरोग हो जाता है।
मानव शरीर में रंगों के ठीक अनुपात में रहने से नए कोष की रचना, पुराने कोष का नष्ट होना एवं विजातीय द्रव्य का निष्कासन निरंतर जारी रहता है, समस्त रोगों से बचाव होता है और मानव दीर्घायु होता है। यही नहीं, सूर्य किरण चिकित्सा के द्वारा न केवल मनुष्य के शरीर को ही निरोग और निर्मल बनाया जा सकता है, बल्कि उसकी प्रकृति या स्वभाव को भी बदला जा सकता है। क्रोधी को शांत और सुस्त व्यक्ति को क्रियाशील बनाया जा सकता है।