शरीर की छः इंद्रियों में से एक, घ्राणेंद्री का महत्वपूर्ण भाग नाक है। आज बड़ी मात्रा में पनपे धूल और धुएँ ने नाक के रोगों को सामान्य रोग बना दिया है। इनमें नाक में रुकावट, हड्डी का बढ़ना, तिरछा होना, साइनस भरना तथा एलर्जी आम हैं।
हमारे श्वसन तंत्र में साइनस अहम है। इसमें हवा की थैली होती है। श्वसन प्रक्रिया में भीतर आने वाली हवा इस थैली से होकर फेफड़ों तक जाती है। इस थैली में हवा के साथ आई गंदगी यानी धूल व अन्य प्रदूषक सामग्री रोक ली जाती है। इसे बलगम व अन्य विकारों के रूप में शरीर के बाहर पाचन तंत्र की तरफ फेंक दिया जाता है।
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साइनस का मार्ग जब अवरुद्ध होता है यानी बलगम निकलने का मार्ग रुकता है तो 'साइनोसाइटिस' नामक बीमारी का खतरा सामने आने लगता है। इसके लक्षणों में आवाज में बदलाव, सिर में दर्द, सिर का भारी होना, नाक या गले में बलगम आना, हल्का बुखार, आँखों में पलकों के ऊपर या दोनों किनारों पर दर्द रहना, तनाव या निराशा है। इससे पीड़ित की कार्यक्षमता प्रभावित होने लगती है।
अब समय गुजरने के साथ साइनस की बीमारी के इलाज की विधि ने भी करवट ली है। पहले साइनस में जमी सर्दी को निकालने के लिए इसे पंक्चर किया जाता था। अब दूरबीन चिकित्सा पद्धति से साइनस के दरवाजे को चौड़ा कर दिया जाता है। साइनस की बीमारी के प्रारंभिक समय में ही मरीज उचित परामर्श ले तो दवाइयों से इलाज किया जा सकता है, किंतु रोग के कुछ आगे बढ़ने या गंभीर स्थिति में पहुँचने पर ऑपरेशन जरूरी हो जाता है। यह रोगी पर निर्भर करता है कि वह रोग का किस स्थिति में इलाज करवाए।
अक्सर यह देखने में आता है कि कई लोग सर्दी हो जाने को सामान्य बात समझते हैं और इसकी अनदेखी करते हैं। सर्दी तो सामान्यतः तीन-चार दिनों में ठीक हो जाती है, किंतु इसके बाद भी इसका संक्रमण जारी रहे, नाक से गाढ़ा पानी आने लगे, बलगम पीला हो जाए, नाक में रुकावट सी लगे, सिरदर्द या हल्का बुखार आने लगे तो तुरंत नाक, कान, गला विशेषज्ञ से परामर्श करना चाहिए। इस स्थिति में पहुँचने पर सर्दी साइनस की बीमारी का रूप ले चुकी होती है।
ऐसा भी देखने और सुनने में आता है कि कई मरीज सर्दी और साइनस की बीमारी को अपने जीवन का एक अंग समझने लगते हैं। कहते हैं, यह मेरी सर्दी का कोटा है या मुझे एलर्जी है। यह कहकर रोगी इलाज नहीं लेते। यह धारणा उचित नहीं। साइनस की बीमारी की सही जाँच और पहचान हो तो इलाज संभव है।
नाक के इलाज की दूरबीन पद्धति नाक की जाँच में दूरबीन (एंडोस्कोप) पद्धति के विकास से रोगों की सही पहचान और उपचार में नई क्रांति सी आ गई है।
इस पद्धति के ईजाद के पूर्व नाक की जाँच ऊपरी तौर पर ही संभव थी। इस कारण इलाज भी उतना उत्कृष्ट नहीं हो पाता था। आज दूरबीन पद्धति से नाक के भीतर की रचना, साइनस द्वार, बीमारियों आदि की जानकारी मिल सकती है और इसका सीधा असर इलाज की गुणवत्ता पर पड़ा है।
कब जरूरी है दूरबीन से इलाज यदि नाक की प्रारंभिक जाँच, सीटी स्कैन तथा औषधीय इलाज हो चुका है और फिर भी रोगी को अपेक्षित लाभ नहीं हो पा रहा है तो दूरबीन पद्धति से इलाज की जरूरत पड़ती है।
ऑपरेशन के बाद नाक में एक पट्टी लगाई जाती है। इससे नाक बंद हो जाती है। इस दौरान मरीज मुँह से साँस लेता है। सामान्यतः बीमारी कम गंभीर हो तो पट्टी नहीं लगाई जाती है या केवल 24 से 48 घंटों के लिए ही लगाई जाती है।
दूरबीन पद्धति से इलाज के समय नाक पर लगाई दूरबीन पर कैमरा लगा दिया जाता है। इसके माध्यम से नाक की भीतरी बनावट छोटे या बड़े पर्दे पर देख सकते हैं। सर्जन नाक पर दूरबीन लगा, छोटे पर्दे पर चित्र को देखते हुए ऑपरेशन करते हैं। इस दौरान सर्जन के एक हाथ में दूरबीन तो दूसरे हाथ में सर्जरी उपकरण होते हैं।
नाक और साइनस का सीटी स्कैन आजकल सामान्यतः नाक का एक्सरे नहीं कराया जाता। इसके बदले सीटी स्कैन कराया जाता है। एक्सरे में तो मरीज की नाक का एक ही चित्र मिलता है, किंतु सीटी स्कैन में तो चौबीस या अधिक चित्र मिल जाते हैं। ये विभिन्न पहलुओं से नाक की भीतरी बनावट की जानकारी देते हैं। सीटी स्कैन के बाद तय किया जाता है कि ऑपरेशन जरूरी है या नहीं। ऑपरेशन की स्थिति में सिटी स्कैन सर्जन के लिए नाक का पथ प्रदर्शक होता है। सिटी स्कैन कहाँ-कहाँ और कितनी बीमारी है, इसकी जानकारी देता है। यहाँ संक्रमण की स्थिति का सही निदान (डाइग्नोसिस) होता है। यह सीटी स्कैन ही है जो शल्य चिकित्सक के फैसले की दिशा तय करता है।
कैसे बचें साइनस की बीमारी से? * सर्दी की सामान्य स्थिति होने पर ही इलाज की तरफ ध्यान दें। इससे सर्दी साइनस की बीमारी के रूप में विकसित नहीं होती।
* प्रत्येक मरीज की बीमारी अलग-अलग होती है। एक की बीमारी की तुलना दूसरे से नहीं की जा सकती।
* इसी तरह अलग-अलग मरीज रोग की विभिन्न अवस्थाओं (स्टेजेस) में चिकित्सक के पास पहुँचते हैं। यह स्टेज सामान्य से गंभीर बीमारी तक की हो सकती है।
दूरबीन से शल्य चिकित्सा के बाद देखभाल ऑपरेशन के बाद नाक में एक पट्टी लगाई जाती है। इससे नाक बंद हो जाती है। इस दौरान मरीज मुँह से साँस लेता है। सामान्यतः बीमारी कम गंभीर हो तो पट्टी नहीं लगाई जाती है या केवल 24 से 48 घंटों के लिए ही लगाई जाती है।
पट्टी के साथ सावधानी * नाक से पानी का रिसाव होता है जो लाल रंग या खून सा दिखाई देता है। इस पानी को पोंछते रहना चाहिए।
* इस दौरान आँखों में सामान्य से अधिक पानी आता है।
* मुँह से साँस लेने के कारण गला सूखने लगता है। इसलिए पानी अधिक मात्रा में पीना चाहिए।
* कभी-कभी कुछ मरीजों के चेहरे या आँखों के आसपास सूजन आ सकती है। इस पर बर्फ लगाना चाहिए।
* सिर में भारीपन महसूस हो सकता है।
* सुन्न कर ऑपरेशन वाले मरीज 2 घंटे बाद तथा बेहोशी के बाद ऑपरेशन वाले मरीज 6 घंटे बाद पानी, तरल पदार्थ तथा फिर हल्के भोजन का सेवन करें।
* पट्टी रखे जाने के बाद मरीज को नाक का रास्ता एकदम खुला महसूस होने लगता है, लेकिन अंदर सूजन एवं घाव होने के कारण नाक कभी बंद भी हो सकती है।