आज होम्योपैथी दिवस है। इस अवसर पर हमने बात की कुछ होम्योपैथ विशेषज्ञों से व जाना कि ये मीठी गोलियाँ कैसे होती हैं दर्द के इलाज में कारगर।
होम्योपैथी दिवस का इतिहास
18 वीं सदी के अंत में होम्योपैथी मरीज को अच्छा करने की अचूक शक्ति के रूप में उभर कर आया। जर्मन फिजीशियन सेम्युअल हैनीमेन ने मलेरिया के लिए एक प्रभावशाली दवाई चिंचोना बार्क की खोज की थी। डॉ. हैनीमेन ने लेबोरेटरी के अभाव में भी स्वयं, परिवार, दोस्त व कई स्वैच्छिक लोगों पर अपनी थ्योरीज के प्रयोग किए थे। उस दौरान होम्योपैथ की शक्ति के उपयोग से टायपस व कालरा जैसी बीमारियों को ठीक करने में भी किया जाता था। होम्योपैथी चिकित्सा के क्षेत्र में डॉ. हैनीमेन का योगदान अभूतपूर्व है। होम्योपैथी के जनक डॉ. सैम्युअल हैनीमेन के जन्मदिवस 10 अप्रैल को होम्योपैथी-डे के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष उनकी 254 वीं जयंती मनाई जा रही है।
जरूरी नहीं लंबा हो इलाज
प्रो. डॉ. एके द्विवेदी कहते हैं- आमतौर पर लोगों को लगता है कि होम्योपैथी इलाज काफी लंबा होता है। जबकि वास्तविकता यह है कि इन दवाइयों का असर कई कारणों पर निर्भर करता है। रोग यदि पुराना है तो मरीज को ठीक होने में समय लगता है वहीं हाल ही में उत्पन्न हुआ रोग कम अवधि के भीतर ठीक हो जाता है। वे कहते हैं- पथरी को ही लीजिए। ऑपरेशन से स्टोन तो निकल जाता है लेकिन उसका विकास नहीं रुकता व मरीज को कुछ समय बाद फिर से स्टोन की समस्या होने लगती है। होम्योपैथ इस तरह की बीमारियों को ज़ड़ से ठीक करता है। बार-बार होने वाली बीमारियों को होम्योपैथिक दवाइयों के प्रयोग से रोका जा सकता है।
मीठी है इसलिए पसंद बच्चों को
डॉ. द्विवेदी कहते हैं- साइड इफेक्ट्स न होने की वजह से होम्योपैथिक दवाइयों को लोग प्राथमिकता देते ही हैं, साथ ही ये बच्चों में भी बेहद लोकप्रिय है। वजह यह कि छोटी-छोटी मीठी गोलियों को लेने में बच्चों को कोई तकलीफ भी नहीं होती और दिन में दो बार लेनी हो या तीन बार, मीठे स्वाद की वजह से बच्चे खुद याद रखकर दवाइयों का सेवन कर लेते हैं।
एलोपैथ के स्तर का होम्योपैथ
डॉ. मनीष पाठक कहते हैं- होम्योपैथ का इलाज सबसे ज्यादा महिलाओं, बच्चे व उन मरीजों के बीच में प्रचलित है जो काफी लंबे समय से बीमार हैं। आज भी मरीज सभी जगह इलाज कराने के बाद होम्योपैथी का इलाज कराने आते हैं। वे बताते हैं- होम्योपैथ की प़ढ़ाई भी अब एलोपैथी के स्तर की हो गई है। इस वजह से युवा डॉक्टरों में बीमारियों को समझने का सामर्र्थ्य ब़ढ़ गया है। इतना ही नहीं होम्योपैथी में इलाज करने के तरीके में भी काफी अंतर आ गया है।