रिफ्रेक्टिव लैंस एक्सचेंज आधुनिक तकनीक

संजय गोकुलदा
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फेको इमल्सीफीकेशन मोतियाबिंद ऑपरेशन की मान्यता प्राप्त एवं प्रचलित विधि में मोतियाबिंद के ऑपरेशन के उपरांत लैंस प्रत्यारोपण कर दिया जाता है। रिफ्रेक्टिव लैंस एक्सचेंज एक उभरती हुई अत्याधुनिक तकनीक है।

कम उम्र में हमारी आँखों में जो लैंस है वह दूर एवं पास की चीजों को बिना किसी तकलीफ के हमें फोकस करके साफ दिखाता है। यह प्रक्रिया हमारे लैंस की फोकस लैंस बदलने की शक्ति पर निर्भर करती है। जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है यह शक्ति कम होती जाती है। इसके परिणामस्वरूप हमें नजदीक की चीजों को फोकस करने में परेशानी आने लगती है। शुरू-शुरू में हमें एक दो साल में चश्मा बदलने की आवश्यकता होती है।

जब हमारी आँखों में मोतियाबिंद संबंधी परिवर्तन की शुरूआत होती है, तब चश्मे का नंबर हर 3 से 9 महीने में बदल जाता है और बार-बार चश्मा बदलने की परेशानी से गुजरना पड़ता है। मोतियाबिंद ऑपरेशन की अत्याधुनिक एवं विकसित विधि माइक्रोइनसीजन (जिसमें 2 सेंटीमीटर से भी कम चीरे की मदद से मोतियाबिंद निकाला जा सकता है।) इसमें ऑपरेशन के लिए मोतियाबिंद के पकने का इंतजार नहीं करना पड़ता है।

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परंपरागत लैंस प्रत्यारोपण में जो लैंस लगाया जाता है वह मोनोफोकल होता है, जिसमें ऑपरेशन के बाद दूर का हमें साफ दिखाता है एवं पास के लिए हमें चश्मे का उपयोग करना पड़ता है। ऑपरेशन के पश्चात रोज के कामों में कुछ परेशानी का सामना करना पड़ता है। जैसे मोबाइल फोन के नंबर पढ़ने में दिक्कत होती है क्योंकि हमें पास देखने के लिए चश्मा लगाना अनिवार्य है। उसी तरह हमें घड़ी देखना हो, कुछ पेपर पर साइन करना हो, पढ़ना हो या महिलाओं को सब्जी काटना या सुई-धागे का काम करना इत्यादि में हमें पूर्ण रूप से चश्मे पर निर्भर रहना पड़ता है।

आइए अब हम ऐसे लैंस की कल्पना करें जो हमें दूर एवं पास दोनों देखने में मदद करे। सोचो अगर इस तरह का लैंस हमारी आँखों में ऑपरेशन के समय फिट हो जाए तो कितनी परेशानी से बचा सकता है।

अब यह संभव हो गया है जिसे मल्टीफोकल लैंस प्रत्यारोपण कहा जाता है। मोतियाबिंद ऑपरेशन में लैंस एक पतली सी झिल्ली पर फिट किया जाता है। करीब 5 प्रतिशत लोगों में कुछ सालों में यह झिल्ली सफेद पड़ने लगती है जिसे ऑफ्टर केटरेक्ट कहा जाता है। इस झिल्ली को लेजर मशीन द्वारा साफ किया जा सकता है। नए एवं उन्नत किस्म के लैंस ना सिर्फ हमें साफ दिखाते हैं बल्कि ऑफ्टर केटरेक्ट को भी रोकते हैं। मल्टी फोकल लैंस में अलग-अलग हिस्सों से दूर व पास दोनों की चीजें हमें साफ दिखती है। इस ऑपरेशन की उपयुक्त आयु 45-60 के बीच है। हालाँकि यह किसी भी उम्र में किया जा सकता है।

इस तकनीक के फायदे
दूर एवं पास के लिए स्पष्ट दृष्टि
बार-बार चश्मा बदली से मुक्ति
बहुत छोटा चीरा जो 24 घंटे में भर जाता है एवं 3 दिन में ऑफिस जा सकते हैं।
चश्मे से निर्भरता हट जाती है।
पूर्ण रूप के सुरक्षित है संक्रमण का खतरा नहीं के बराबर है।
अल्ट्रॉवायलेट रोशनी से बचाता है।

इस तकनीक की सीमाएँ हैं
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यह लैंस महँगा है। परंतु एक बार लगवाने के बाद कई परेशानियों से मुक्ति मिल जाती है। अत: लंबे समय के फायदे को देखते हुए इसकी कीमत वसूल हो जाती है। रात को गाड़ी चलाते वक्त शुरू-शुरू में परेशानी आती है। लाइट की अत्यधिक तीव्रता का अनुभव होता है। यह जरूरी है कि इस ऑपरेशन में पहले मरीज की स्क्रीनिंग एवं काउंसलिंग ठीक तरह से हो क्योंकि यह प्रक्रिया हर मोतियाबिंद के मरीज में नहीं अपनाई जा सकती है।

अधेड़ावस्था की महिलाएँ या हाईप्रोफाइल बिजनेसमैन, जिन्हें अत्यधिक व्यस्तता रहती है और उनकी गाड़ी अमूमन ड्राइवर चलाते हों, वे इस प्रक्रिया के सबसे अच्छे मरीज सिद्ध होते हैं। आज का समय लैंस एक्सचेंज के साथ मल्टीफोकल लैंस का है। यह तकनीक ज्यादा से ज्यादा प्रचलित होती जा रही है। क्योंकि यह लैंस हमारे प्राकृतिक लैंस एवं ‍विजन के नजदीक लाता है।

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