वनडे सर्जरी

- डॉ शीला कृष्णन

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चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में नई टेक्नोलॉजी बहुत तेजी से परिवर्तन ला रही है। पहले मामूली ऑपरेशन भी मरीज को कई दिनों तक बिस्तर से उठने तक नहीं देते थे। सर्जरी की तकनीक आने से मरीजों को अब पहले जैसी तकलीफ नहीं होती।

पहले 'बड़ा ऑपरेशन' यानी बच्चेदानी निकालने के बाद महिला को 30 दिन तक बिस्तर से नीचे नहीं उतरने दिया जाता था। आज सर्जरी इतनी सरल और कम पीड़ादायक हो गई है कि इस तरह के ऑपरेशन के बाद एक दिन में ही महिला अपने काम पर भी लौट सकती है।

वनडे सर्जरी अर्थात एक दिवसीय शल्य चिकित्सा पूर्णतः सुरक्षित एवं वैज्ञानिक चिकित्सा सिद्धांतों पर आधारित पेशेंट फ्रेंडली व इको फ्रेंडली चिकित्सा भी है। स्त्री रोग से संबंधित बच्चेदानी के ऑपरेशन, अंडाशय की गठानों के ऑपरेशन, फेलोपियन ट्यूब के ऑपरेशन, परिवार नियोजन के ऑपरेशन व फेलोपियन ट्यूब को पुनः जोड़ने के ऑपरेशन तथा ऑपरेशन द्वारा बच्चे के जन्म यानी सिजेरियन ऑपरेशन वनडे सर्जरी से सफलतापूर्वक किए जाते हैं।
  पहले 'बड़ा ऑपरेशन' यानी बच्चेदानी निकालने के बाद महिला को 30 दिन तक बिस्तर से नीचे नहीं उतरने दिया जाता था। आज सर्जरी इतनी सरल और कम पीड़ादायक हो गई है कि इस तरह के ऑपरेशन के बाद एक दिन में ही महिला अपने काम पर भी लौट सकती है।      


जनरल सर्जरी में गॉल ब्लेडर की पथरी, अपेंडिक्स, सभी तरह के हर्निया एवं पाइल्स, रेक्टल सर्जरी,पथरी के ऑपरेशन, थाइराइड सर्जरी व ब्रेस्ट सर्जरी के ऑपरेशन वनडे सर्जरी से करना संभव है। वनडे सर्जरी में मरीज ऑपरेशन के बाद कोई दर्द महसूस नहीं करता, उसे केवल 24 से 48 घंटे अस्पताल में रहना पड़ता है तथा खर्च भी कम होता है। ऑपरेशन के 4 से 6 घंटे बादमरीज बैठ सकता है और पानी भी पी सकता है।

पेशाब की नली यदि लगी हो वह भी निकाल दी जाती है तथा 12 घंटे बाद मरीज अपने कपड़े बदलकर बाहर घूमने जा सकता है तथा तकिए का इस्तेमाल करते हुए आराम कर सकता है। इससे मरीज शीघ्र भयमुक्त होकर अपने को स्वस्थ महसूस करता है। 24 से 48 घंटे बाद कोई कॉम्प्लिकेशन की संभावना न होने की दशा में अधिकांश मरीजों को छुट्टी दे दी जाती है व हिदायत दी जाती है कि वे सतत संपर्क बनाए रखें जिससे उन्हें नियमित दैनिक कार्य में असुविधा न हो।

यह एक सर्वविदित सत्य है कि जब किसी मरीज को शल्यक्रिया की सलाह दी जाती है तो वह भयभीत होकर पहले अन्य वैकल्पिक पद्धतियों में विकल्प तलाशता है। इस प्रक्रिया में मर्ज अधिक जटिल होने की संभावना रहती है। विलंब होने से शल्यक्रिया भी जटिल हो सकती है। लोगों में शल्यक्रिया को लेकर कई गलत भ्रांतियाँ व्याप्त हैं, जैसे ऑपरेशन के पश्चात शरीर कमजोर रह जाना, शरीर फूल जाना, वजन बढ़ जाना, विशेषतः पेट का बढ़ जाना या शारीरिक श्रम करने में असमर्थ होना इत्यादि।

वनडे सर्जरी मुख्यतः मरीज की शल्यक्रिया पूर्व मानसिक तैयारी, उचित व सटीक शल्यक्रिया तथा शल्यक्रिया पश्चात मरीज की विशेष देखभाल से संबंधित है। इसमें ऑपरेशन की प्रक्रिया भी पूर्णतः परीक्षित व पूर्णतः वैज्ञानिक आधारों पर आधारित होती है। सर्वप्रथम मरीज एवं उसके परिवार को पर्याप्त समय देकर उनकी शंकाओं का समाधान किया जाता है तथा बीमारी व जाँचों से संबंधित परिणामों के बारे में समझाया जाता है। इसके लिए मरीज को अन्य ऐसे मरीज से मिलवाया जाता है जिसका इस प्रक्रिया से ऑपरेशन हुआ है।

मरीज दूसरे मरीज से आपस में बातचीत करने पर शीघ्र संतुष्ट होता है। वनडे सर्जरी में मरीज को ऑपरेशन से 12 घंटे पूर्व अस्पताल में भर्ती कर आवश्यक निर्देशों के साथ आयवी फ्लूड, ग्लूकोज सलाइन के पूर्व दिए जाने वाले इंजेक्शन (प्री ऑपरेटिव मेडिकेशन) दी जाती है एवं मरीज को ऑपरेशन के लिए तैयार किया जाता है।

ऑपरेशन के दौरान तथा पश्चात पर्याप्त मात्रा में दर्द निवारक दवाइयाँ व एंटीबायोटिक दी जाती हैं। ऑपरेशन के 4 से 6 घंटे पश्चात मरीज को कुछ देर के लिए बैठाकर थोड़ा पानी दिया जाता है। ऑपरेशन के 12 घंटे बाद मरीज को ग्लूकोस सलाइन देने की आवश्यकता नहीं होती व मरीज चल-फिर सकता है।

दर्दनिवारक दवाओं की पर्याप्त मात्रा देने से मरीज दर्दमुक्त व भयमुक्त महसूस करता है तथा आवश्यक निर्देश मानने लगता है। यही संतोष मरीज के शीघ्र स्वस्थ होने में मदद करता है तथा 24 या 48 घंटे में पूर्णतः स्वस्थ महसूस कर घर जा सकता है। 4-5 दिन तक आवश्यक निर्देशों के साथ घर पर उसकी दिनचर्या सामान्य हो जाती है। इस दौरान उसे पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ देने की सलाह दी जाती है। दूसरे दिन से मरीज ठोस आहार भी ले सकता है।

वनडे सर्जरी में किसी प्रकार की ड्रेसिंग की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि गलने वाले टाँके चमड़ी की सतह के नीचे लगे होते हैं। इससे घाव पूर्णतः भर जाते हैं। 7 दिन बाद केवल पट्टी निकाल दी जाती है एवं टाँके काटने की आवश्यकता नहीं होती।

अस्पताल में व्यतीत होने वाला समय कम होने से अस्पतालजनित संक्रमण का खतरा कम होता है तथा परिवारजनों के लिए भी यह सुविधाजनक होता है। यदि शासकीय चिकित्सालयों में वनडे सर्जरी से ऑपरेशन किए जाएँ तो मरीजों को भी सुविधा के साथ-साथ पलंग रिक्तता (बेड आक्यूपेंसी) की समस्या से निजात पाई जा सकती है तथा संक्रमण को पूर्णतः नियंत्रित किया जा सकता है।

इसमें पहले टिशू एडहेसिव का प्रयोग किया जाता था। किंतु जब ज्ञात हुआ कि यह चिपचिपा पदार्थ हमारे शरीर में भी विशेष परिस्थितियों में विकसित किया जा सकता है, जोकि शीघ्र घाव भरने में मदद करता है तो इस तकनीक का विकास कर उपयोग किया जा रहा है। इससे घाव प्राकृतिक रूप से भरता है व उस अंग को अधिक मजबूती प्रदान करता है।

वनडे सर्जरी से एक माह पूर्व ही एक महिला जिसकी पुत्री का जन्म वनडे सर्जरी से 1987 में हुआ था,अपनी पुत्री का परिस्थितिवश सिजेरियन व टीटी ऑपरेशन भी वनडे सर्जरी से करवाकर संतुष्ट होते हुए धन्यवाद के साथ घर गई। उसकी संतुष्टि ही हमारी सफलता की पराकाष्ठा है।