योग का अर्थ है शरीर, मस्तिष्क और आत्मा को जोड़ना। योग की आत्मा को ‘योगा’ के शरीर से निकालकर लाने वाले स्वामी रामदेव के शब्दों में ‘योग एक जीवन जीने की कला, योग एक जीवन जीने की विधा, योग एक वो परिकल्प है, जिससे हम अपने अस्तित्व, अपनी चेतना से जुड़ते हैं, गहरे।’
आज भी योग उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना ऋषि-मुनियों के ज़माने में हुआ करता था। परंतु बदलती हुई परिस्थितियों के साथ योग की आवश्यकता और बढ़ गई है। दूसरों से आगे निकलने की दौड़ में संघर्ष, प्रतियोगिता, तनाव, अवसाद और निराशा जैसे रोड़े हमने स्वयं खड़े किए हैं। हमने अपने जीवन को इतना कठिन बना लिया है कि आने वाली पीढ़ियों को शायद ये ही न पता हो कि सामान्य जीवन क्या होता है...
शास्त्रों के अनुसार सृष्टि में 84 लाख योनियाँ हैं और इन सभी में मनुष्य योनि सर्वश्रेष्ठ है। यह जीवन और यह शरीर हमें एक ही बार मिला है। प्रकृति की इस अनमोल धरोहर को सुंदर और स्वस्थ बनाने की जिम्मेदारी हमारी है... और इस जिम्मेदारी को बख़ूबी निभाने में हमारा सच्चा साथी है- योग। योग वैकल्पिक चिकित्सा विज्ञान के रूप में उभरकर सामने आ रहा है। डॉक्टरों और अस्पतालों के अनाप-शनाप खर्चों, अन्य चिकित्सा पद्धतियों पर निर्भरता और दवाइयों के साइड-इफ़ेक्ट्स, सभी मर्जों की एक ही दवा है- योग।
योग का अर्थ है शरीर, मस्तिष्क और आत्मा को जोड़ना। योग की आत्मा को ‘योगा’ के शरीर से निकालकर लाने वाले स्वामी रामदेव के शब्दों में ‘योग एक जीवन जीने की कला, योग एक जीवन जीने की विधा, योग एक वो परिकल्प है, जिससे हम अपने अस्तित्व,अपनी चेतना से जुड़ते हैं।
आधुनिक समाज में यह मान्यता घर कर गई है कि योग का विज्ञान से नहीं, केवल धर्म और अध्यात्म से ही नाता है। हमारे इस पढ़े-लिखे समाज ने यह मान लिया है कि एलोपैथी जैसी चिकित्सा पद्धति ही वैज्ञानिक और प्रामाणिक है। हमारा दिल और दिमाग हर बात को वैज्ञानिक संदर्भ से समझने का आदी हो गया है। अगर ऐसा ही है तो आइए योग को विज्ञान से जोड़कर देखा जाए...
योग शरीर की बायोकैमेस्ट्री पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डालता है। यह शरीर की प्रत्येक कोशिका को ऊर्जा और सक्रियता से भर देता है और उनमें जीवन का संचार करता है। योगिक क्रियाएँ दरअसल बायोकेमिकल और फिज़ियोलॉजिकल प्रक्रियाओं का समन्वय ही हैं।
योगासनों में हाथ को बहुत महत्वपूर्ण अंग माना गया है। हथेलियों और उँगलियों में बहुत-सी तंत्रिकाओं के सिरे होते हैं, जिनसे लगातार बायोइलेक्ट्रिक ऊर्जा निकलती रहती है। उँगलियों के पोरों पर स्थित कुछ विशिष्ट बिंदुओं को स्पर्श करने या दबाने से ऊर्जा का परिपथ (सर्किट) पूरा होता है। योग की मुद्राएँ किसी विशेष तंत्रिका या तंत्रिका गुच्छ को सक्रिय करके विशेष सिग्नलों को उत्तेजित करती हैं। इसलिए इन मुद्राओं का अत्यधिक मानसिक और शारीरिक प्रभाव होता है।
योग की कुछ मुद्राओं से मानसिक क्षमता भी बढ़ती है, याददाश्त तेज़ होती है, मानसिक एकाग्रता बढ़ती है, सोचने की प्रक्रिया और नई चीज़ों को ग्रहण करने और सीखने की क्षमता बढ़ती है। योग करने से दिमाग़ी बीमारियों से भी बचा जा सकता है। इनसोम्निया (अनिद्रा रोग) के मरीजों के लिए योग बहुत फ़ायदेमंद है। तुनक-मिजाज़, चिड़चिड़े और असहिष्णु स्वभाव वाले लोगों में योग करने के बाद आश्चर्यजनक परिणाम देखे गए हैं। यह तंबाकू और शराब के व्यसनों तथा आपराधिक प्रवृत्ति से भी मुक्ति दिलाता है।
योग शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र की शक्ति और सामर्थ्य बढ़ाता है, शरीर की रक्षा-प्रणाली को पुष्ट बनाता है और रोगों से लड़ने में मदद करता है। इसके नियमित अभ्यास से हायपो और हायपरथायरॉइडिज़्म व विभिन्न प्रकार के कैंसर में सुधार होता है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने भी कैंसर पर योग के प्रभावों की पुष्टि की है। एड्स और आर्टीरियोस्क्लेरोसिस के मरीजों में योग करने के बाद अच्छी रीकवरी देखी गई है।
खिलाड़ियों के लिए तो योग किसी वरदान से कम नहीं है। योग व्यग्रता कम करता है, एकाग्रता बढ़ाता है और साँस लेने का सही तरीका सिखाता है। खिलाड़ियों का स्टेमिना बढ़ाता है, ताकि वे अच्छा प्रदर्शन कर पाएँ। एक सर्वेक्षण के दौरान योग करने वाले फ़ुटबॉल खिलाड़ियों के संपूर्ण रक्त चित्र, हीमोग्लोबिन प्रतिशत, लीवर फ़ंक्शन टेस्ट, किडनी फ़ंक्शन टेस्ट और लिपिड प्रोफ़ाइल में उल्लेखनीय सुधार देखा गया। योग न करने वाले खिलाड़ियों की अपेक्षा इनके रक्तचाप, नाड़ी-दर, वजन, BMI (बॉडी मास इंडेक्स), वसा प्रतिशत, FVC (फोर्स्ड एक्सपायरेटरी वाइटल केपेसिटी), FEV1 (1 सेकंड में फोर्स्ड एक्सपायरेटरी वोल्यूम) के आँकड़े अधिक सामान्य थे।
इंडियन जर्नल ऑफ़ क्लिनिकल बायोकैमेस्ट्री के एक शोध के मुताबिक रोजाना योग करने से फ़ास्टिंग ब्लड ग्लूकोज़, सीरम मेनोल्डिहाइड (MDA) और ग्लायकोसायलेटेड हीमोग्लोबीन में कमी होती है तथा रक्तचाप में 10-15 mm/Hg तक कमी आती है। रक्तचाप बढ़ने का मुख्य कारण एड्रीनेलिन हार्मोन है। यह हार्मोन शरीर में ‘फ़्लाइट और फ़ाइट’ प्रतिक्रियाओं के लिए उत्तरदायी होता है।
योग इन प्रतिक्रियाओं को ‘स्विच ऑफ़’ कर देता है, जिससे एड्रीनेलिन का स्तर कम हो जाता है और फलस्वरूप रक्तचाप कम हो जाता है। योग के कारण मांसपेशियों में खिंचाव और शिथिलन होने से भी रक्तचाप कम होता है। मांसपेशीय संकुचन के कारण मस्तिष्क को सिग्नल भेजे जाते हैं, जिसके प्रतिक्रियास्वरूप स्ट्रेस हार्मोन और न्यूरोट्रांसमीटर स्रावित होते हैं। ये दोनों रसायन भी तनाव और उच्च रक्तचाप से संबंधित होते हैं।
योग से प्लेटलेट्स की आपस में चिपकने की प्रक्रिया में कमी आती है, जिससे रक्तचाप में कमी आती है। योग की कुछ विशेष मुद्राएँ किडनी या एड्रीनल ग्रंथि का दाब नियंत्रित करती हैं। ये अंग रेनिन, एड्रीनेलिन और एंजियोटेंसिन के स्राव द्वारा रक्तचाप नियंत्रित करते हैं। नियमित रूप से योग करने से स्ट्रेस हार्मोन कम होते हैं, जो एक प्रभावी वेसोकॉंस्ट्रिक्टर (रक्त वाहिका संकीर्णक) है। मस्तिष्क की पीयूष ग्रंथि द्वारा स्रावित वेसोप्रेसिन नामक हार्मोन की मात्रा भी योग से कम होती है। योग शरीर के तापमान, मस्तिष्क तरंगों, हृदय दर, चयापचय (मेटाबॉलिज़्म) दर, प्रतिरोधक क्षमता आदि को भी नियंत्रित करता है।
योग तंत्रिका-कोशिका (नर्व सेल) को त्वरित क्रियाओं के लिए ऊर्जा प्रदान करता है, रक्त-परिवहन को आसान बनाता है और शरीर की साम्यावस्था बनाए रखता है। मानव शरीर में 2 प्रकार के तंत्रिका तंत्र होते हैं-
1. अनुकम्पी (Sympathatic) तंत्रिका तंत्र, जिसे फ्लाइट और फाइट तंत्र कहते हैं, क्योंकि यह रक्तचाप, श्वासोच्छवास दर तथा शरीर में स्ट्रेस हार्मोन का प्रवाह बढ़ाता है। परीक्षा के समय, डरावनी फ़िल्में देखने या ऑफ़िस में काम के तनाव के दौरान यही हार्मोन स्रावित होता है। इस तंत्र के अत्यधिक उत्तेजित हो जाने पर अल्सर, माइग्रेन और हृदय संबंधी गंभीर बीमारियाँ भी हो सकती हैं।
2. परानुकम्पी (Parasympathatic) तंत्रिका तंत्र रक्तचाप, श्वासोच्छवास दर तथा स्ट्रेस हार्मोन का प्रवाह कम करता है। योग के दौरान गहरी साँस लेने की प्रक्रिया परानुकम्पी तंत्रिका तंत्र की क्रियाओं को प्रोत्साहित करती है। इससे शरीर को आराम और रोगों से मुक्ति मिलती है।
साथ ही यह अनुकम्पी तंत्रिका तंत्र की प्रक्रियाओं को धीमा करता है। इसीलिए डर लगने या गुस्सा आने पर गहरी साँस लेने की सलाह दी जाती है। योगिक प्रक्रियाएँ केंद्रीय और स्वायत्त तंत्रिका तंत्र पर भी असर डालती हैं। ये प्रक्रियाएँ संतुलन और मोटर तंत्रिकाओं (मस्तिष्क से शरीर के अंगों तक संवेदना ले जाने वाली तंत्रिका) के नियंत्रण में होने वाली परेशानियों से बचाती हैं।
हमारे मस्तिष्क में GABA (गामा-अमीनो ब्यूटायरिक एसिड) नामक एक रसायन होता है। GABA का घटा हुआ स्तर कई मानसिक स्थितियों, जैसे अवसाद, उत्कंठा या व्यग्रता के लिए जिम्मेदार है। योग मस्तिष्क में इस रसायन का स्तर बढ़ाकर इन विसंगतियों से हमें बचाता है। एक अन्य रसायन DHEA (डीहाइड्रोइपीएंड्रोस्टीरोन) के कम स्तर से एकाग्रता में कमी आती है, योग इसका स्तर भी सामान्य बनाए रखता है।
योग मस्तिष्क को सदमे से होने वाली क्षति या मानसिक आघात से उबरने में मदद करता है। योग का मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी होता है। इससे बुद्धिमत्ता, आत्मविश्वास, उत्साह, सकारात्मकता, अंतर्ज्ञान, रचनात्मकता, एकाग्रचित्तता, याददाश्त और सीखने की क्षमता बढ़ती है और मूड अच्छा बना रहता है।
योग स्ट्रेस हार्मोन पर नियंत्रण रखने वाले कॉर्टिसोल को नियंत्रित करता है। कॉर्टिसोल न्यूरोट्रांसमीटर के संतुलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। योग फ़्री-रेडिकल्स से होने वाली क्षतियों जैसे कि कोशिका झिल्ली और कोशिकांगों की टूट-फूट से भी बचाता है। यह तंत्रिका तंत्र को स्थायी बनाता है, प्रजनन संबंधी, ऑटोइम्यून तथा उदर और आँत की बीमारियाँ दूर करता है, अंत:स्रावी तंत्र को नियमित रखता है तथा ग्रंथियों को उत्तेजित करता है। सहनशक्ति, ऊर्जा स्तर, कार्डियो-वास्कुलर दक्षता, प्रतिक्रिया समय, आँख और हाथों का समन्वय और नींद बढ़ाता है।
प्रयोगों से पता चलता है कि नियमित रूप से योग करने से हमारे शरीर के लिए फ़ायदेमंद कोलीनएस्टेरेज़ एंज़ाइम, उच्च घनत्व वाले कोलेस्टेरॉल (High Density Lipid Cholesterol), एस्कॉर्बिक अम्ल (विटामिन सी), कुल सीरम प्रोटीन, थायरॉक्सिन हार्मोन, लिम्फ़ोसाइट की संख्या, एटीपेज़ (ATPase) एंज़ाइम, हीमेटोक्रिट और हीमोग्लोबिन का स्तर बढ़ता है, साथ ही सोडियम, ग्लूकोज़, कुल कोलेस्टेरॉल, ट्रायग्लिसरॉइड्स, कुल श्वेत रक्त कणिकाएँ (WBC), निम्न घनत्व वाले कोलेस्टेरॉल (Low Density Lipid Cholesterol), अत्यंत निम्न घनत्व वाले कोलेस्टेरॉल (Very Low Density Lipid Cholesterol) और केटेकॉलअमीन्स का स्तर सामान्य हो जाता है।
योग से गठिया, अस्थमा, पीठ और कमर का दर्द, कार्पल टनल सिंड्रोम, वेरीकोस वेंस, अत्यधिक थकान, इपिलेप्सी, सिरदर्द, मल्टीपल स्क्लेरोसिस के इलाज में उल्लेखनीय सफलता मिली है। योग मस्तिष्क में दर्द की अनुभूति वाले केंद्र को दर्द का नियंत्रण करने में मदद करता है तथा प्राकृतिक दर्द निवारकों का स्राव करता है। थॉयराइड ग्रंथि का हार्मोनल स्राव नियंत्रित करके शरीर का भार सामान्य बनाए रखता है और वसा की खपत बढ़ाता है। गहरे श्वासोच्छवास से शरीर की कोशिकाओं, विशेषकर वसा कोशिकाओं की ऑक्सीजन ग्रहण करने की क्षमता बढ़ जाती है। इससे वसा कोशिकाओं का जारण (ऑक्सीडेशन) बढ़ जाता है और कैलोरी का विघटन होने लगता है। योग से लिपिड चयापचय (मेटाबॉलिज़्म) से संबंधित गड़बड़ियाँ भी दूर की जा सकती हैं।
कुछ योगासनों से डायबिटीज़ मेलाइटस, कोरोनरी हार्ट डिसीज़, हर्निया, वर्टिगो, डिसलिपिडिमिया, तनाव, लीवर, पेन्क्रियाज़, प्लीहा, किडनी और श्वसन तंत्र संबंधी बीमारियाँ दूर होती हैं। ब्रोंकाइटिस, कब्ज, एम्फायसेमा, सर्दी, खाँसी, अम्लीय आमाशय, कफ, वात, पित्त, अपचन, मासिक के पहले होने वाली समस्याएँ, प्रोस्ट्रेट की समस्याएँ, गठिया, साइटिका, सायनस, चर्म रोग, गर्भावस्था की जटिलताएँ, गले की तकलीफें, झुर्रियाँ, सेरीब्रल पाल्सी, ऑस्टियोपोरोसिस जैसी बीमारियाँ भी योग के सही और नियमित अभ्यास से दूर की जा सकती हैं।
योग शरीर की बायोकेमिकल फैक्टरी कही जाने वाली हमारी कोशिकाओं को चिरयुवा बनाए रखता है, या यह कहें कि उम्र हो जाने पर भी वृद्धावस्था का एहसास नहीं होने देता। अगर विज्ञान की मानें तो किसी व्यक्ति की आयु निर्धारण का पैमाना वर्षों की संख्या नहीं, रीढ़ का लचीलापन है। योग से शरीर में लचक आती है, त्वचा में कसाव आता है, चर्बी घटती है, शारीरिक तनाव दूर होते हैं, उदर की मांसपेशियाँ मजबूत होती हैं, दोहरी ठुड्डी से निजात मिलती है, मांसपेशियाँ सुडौल होती हैं और शारीरिक मुद्राओं में सुधार होता है।
योग कोशिका क्षय की केटाबॉलिक प्रक्रिया तथा कोशिकाओं में ऑटो-इन्टॉक्सिकेशन या स्वत: विषाक्तता कम करता है। साथ ही कोशिकाओं में पोषक पदार्थों और ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाता है तथा विषैले पदार्थों व कोशिकीय अपशिष्टों का निष्कासन करता है। योग से बालों के फॉलिकल्स में रक्त संचार बढ़ता है, गर्दन की तंत्रिकाओं व वाहिकाओं का रक्त संचार बढ़ने से खोपड़ी में बेहतर रक्त परिवहन होता है और बाल अपने प्राकृतिक रंग में ही बने रहते हैं। योग से देखने और सुनने की क्षमता भी बढ़ती है। पीयूष, थायरॉइड, एड्रीनल और सेक्स ग्रंथियों पर योग का परोक्ष/अपरोक्ष प्रभाव होता है, जो साठ साल के बूढ़े को साठ साल का जवान बना सकता है।
लगातार तनाव में रहने वाले लोगों की शारीरिक प्रवृत्ति अम्लीय हो जाती है। ऐसी स्थिति में कोशिकाओं के लिए ऑक्सीजन लेना कठिन हो जाता है। अम्लीय अवस्था में कोशिकाओं में अनावश्यक तोड़-फोड़ शुरू हो जाती है। इस केटाबॉलिज़्म के कारण विभिन्न प्रकार के हानिप्रद रसायन छोड़े जाते हैं, जिससे रक्त अशुद्ध और विषाक्त हो जाता है।
यह प्रदूषित रक्त पूरे शरीर में बहता है जिससे कोशिकाओं, विशेषत: दिमाग की कोशिकाओं को थकान होती है। यही अम्लीयता आमाशय में जाकर अल्सर का कारण बनती है। योग शरीर के अंत:स्रावी तंत्र को लाभदायक रसायन स्रावित करने के लिए उत्तेजित करता है और हमें इन दुष्परिणामों से बचाता है।
योग से साँस को शरीर में अधिक समय तक रोककर रखने का अभ्यास होता है। श्वास के अभ्यास से द्रव्य (फ्लूइड) परिवहन बढ़ता है और फेफड़े मजबूत होते हैं। त्वचा का गैल्वेनिक प्रतिसाद तथा EEG (इलेक्ट्रोएन्सिफ़ेलोग्राफ़ी) की अल्फ़ा तरंगें बढ़ती हैं। योगासनों के कारण होने वाले खिंचाव से फेसिया का आकार बढ़ता है। फेसिया सार्कोमीयर (एकल मांसपेशी कोशिका) और मांसपेशियों को जोड़ने वाले संयोजी ऊतक का रक्षात्मक आवरण है। आणविक स्तर पर फेसिया स्टील से भी ज़्यादा मजबूत होता है। योग से हड्डियों का आकार तक बदल सकता है। योग के कारण होने वाले मांसपेशीय खिंचाव से रक्त-परिवहन में लैक्टिक अम्ल छोड़ा जाता है, जिससे मांसपेशीय थकान नहीं होती। यह जोड़ों, लिगामेंट्स और टेंडन को लचीला, चिकना और मजबूत बनाता है।
ये तो केवल कुछ ही उदाहरण हैं। योग के ऐसे न जाने कितने जैव-रासायनिक प्रभावों से परदा उठना बाकी है अभी...
मनुष्य को प्राचीन शास्त्रों द्वारा दिया गया एक नायाब तोहफ़ा है योग। अब ये हमारे विवेक पर निर्भर करता है कि हम इस विधा का कब, कैसे और कितना उपयोग करते हैं... जीवन में सेटल होने, जिम्मेदारियाँ निभाने, घर और बाहर की समस्याओं को सुलझाने और अपने लक्ष्यों को हासिल करने की धुन में कहीं हम अपने शरीर को इतना अनदेखा न कर दें कि जब तक इस पर नज़र पड़े तब तक न ऊर्जा बची हो, न शक्ति और न ही जीवन... जब तक हमें अपनी अतिव्यस्ततम दिनचर्या में से अपने शरीर को कुछ मिनट देने का ख़्याल आए तब तक कहीं ऐसा न हो कि शरीर के पास हमारे लिए ही समय न बचा हो... बच्चनजी ने ठीक ही कहा था-
‘कहाँ गया वह स्वर्गिक साकी, कहाँ गई सुरभित हाला, कहाँ गया स्वप्निल मदिरालय, कहाँ गया स्वर्णिम प्याला! पीने वालों ने मदिरा का मूल्य, हाय, कब पहचाना? फ़ूट चुका जब मधु का प्याला, टूट चुकी जब मधुशाला।’