यही कारण है कि श्रुति के जरिए जितनी रामकथा का प्रवेश जनजातियों में हुआ, वह सिलसिलेवार नहीं बल्कि उन्हें वे ही स्वत्व या प्रसंग महत्त्वपूर्ण लगे, जो उनकी जातीय स्मृतियों के सबसे करीब पड़ते थे। उन्हें ही अपने संस्कारों से जोड़कर रामकथा की बुनावट की गई लगती है।
यही कारण है कि कई जनजातियों में नायक के रूप में 'राम' को प्रतिष्ठा नहीं दी गई, उनकी जगह 'लक्ष्मण' को उनकी रामायण का महानायक माना गया। ...लक्ष्मण का चरित्र जनजातियों के नैसर्गिक स्वभाव, जंगल-जीवन की अवधारणाओं के बहुत नजदीक बैठता है।
राम और सीता : वनवास के समय राम बहुत-सी कोल, भील, निषाद आदि जनजातियों के संपर्क में आते हैं। भीलनी शबरी तो मतंग ऋषि के संपर्क में 'राम की भक्त' ही बन जाती है जिसे राम ने स्वयं 'नवधा भक्ति' का उपदेश दिया था।
शबरी 'राम' और 'रामकथा' के जनजातियों विस्तार में सबसे महत्वपूर्ण कड़ी मानी जा सकती है। भील, सहरिया आज भी 'शबरी को अपना पूर्वज मानते हें। ...वानर, हनुमान, बाली, सुग्रीव, जटायु, जामवंत आदि वनवासी जातियां रही होंगी जिन्हें राम ने संगठित कर अपनी सेना बनाई थी।
लेखक- वसंत निरगुणे
माहिष्मति (वर्तमान महेश्वर) में सन् 1941 में जन्म, जनजाति और लोक-संस्कृति, कला और भाषा-साहित्य के अध्येता। अनेक सम्मानों से विभूषित।