महू अतीत एवं गौरव : महू का अपना रंग है, अपनी तासीर और कहने के लिए अपनी कई कहानियां भी

शनिवार, 22 अप्रैल 2023 (16:55 IST)
बड़े शहरों कहने के लिए कई कहानियां होती हैं, लेकिन बात अगर महू जैसे किसी छोटे टाउन की हो रही हो तो शायद यही अंदाजा लगाया जाएगा कि इस शहर के पास अपने लिए कहने के लिए क्‍या ही होगा। लेकिन सच यह है कि महू के पास कहने के लिए कई कहानियां हैं। इसके कल्‍चर से लेकर इसकी बसाहट तक। आजादी में इसके योगदान से लेकर मिलिट्री छावनी की स्‍थापना तक। आज देश में संविधान और राजनीति की बात जिसके नाम के बगैर अधूरी है ऐसे बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की जन्‍मस्‍थली भी महू ही है।

खास बात है कि इंदौर जैसे बड़े और आधुनिक शहर के नजदीक होने के बावजूद महू पर इंदौर की कोई छाप नजर नहीं आती। महू का अपना ही एक अलग रंग है, अपनी ही एक अलग तासीर है, जहां का हर बाशिंदा अपने इस छोटे से टाउन की आबोहवा, कला-संस्‍कृति और परंपरा पर गौरान्वित नजर आता है।

लेखक ओमप्रकाश ढोली ने अपने इसी शहर के अतीत और इसके गौरव को किताब के जरिए दर्ज किया है। किताब का शीर्षक है महू : अतीत एवं गौरव।

इतिहास विषय में मास्‍टर करने वाले ओमप्रकाश ढोली का खेल और पत्रकारिता से गहरा संबंध रहा है। किसी जमाने में मध्‍यप्रदेश में पत्रकारिता का पर्याय रहे नईदुनिया जैसे अखबार से भी ओमप्रकाशजी का गहरा नाता रहा है। वे खेलों से खासतौर से हॉकी से जुड़े रहे हैं।

उनकी इस किताब में न सिर्फ महू की बसाहट, बल्‍कि यहां की कला, संस्‍कृति रचनात्‍मकता, खेल, संगीत, तीज-त्‍योहार से लेकर महू के लिए विभिन्‍न संप्रदाय और समाजों के योगदान को लेकर भी कई आलेख शामिल किए गए हैं। किताब एक तरह से महू के बनने की कहानी बयां करती है, जिसमें यहां के भौगोलिक विकास और इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर डेवलेपमेंट से लेकर सांस्‍कृतिक रूझान और धार्मिक गतिविधियों के बारे में भी बखूबी और प्रभावशाली तरीके से किस्‍से और कहानियां दर्ज की गईं हैं। यहां तक की महू की सड़क और पुलों के बनने की कहानी को भी पुस्‍तक में शामिल किया गया है।

दरअसल, इंदौर के समीप होते हुए भी महू ने अपनी एक अलग पहचान बनाई है। एक टाउन के रूप में यहां का अपना एक मजा और महत्‍व है, जिसके बारे में लिखने के साथ ही इस किताब में आजादी के संग्राम में महू की भूमिका से लेकर आर्मी छावनी की स्‍थापना के बारे में विवरण किया गया है। गांधीजी की महू यात्रा का बहुत सुंदर किस्‍सा कहा गया है। यहां के छोटे-मोटे तीज-त्‍योहारों जैसे धोक पड़वा, यहां के बैंड-बाजों का महत्‍व, यहां के खेलों का देशभर में राष्‍ट्रीय स्‍तर पर योगदान और आर्य समाज से लेकर, महाराष्‍ट्रीयन समाज, पारसी समाज और महू के लिए महिला संगठनों के योगदान को बखूबी दर्ज किया गया है।

अतीत के किस्‍सों को खंगालते हुए किताब में लिखा गया है कि आज भले ही इंदौर मॉल्‍स और मल्‍टीप्‍लैक्‍स का शहर बन गया है, लेकिन किसी जमाने में इंदौर के लोग फिल्‍म देखने के लिए महू आते थे।

देश को संविधान देने वाले बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की जन्‍मस्‍थली के तौर पर भी महू की देशभर में पहचान है। कुल मिलाकर महू एक ऐसा शहर है जो विभिन्‍न परंपराओं, संस्‍कृतियों और कई समाजों के योगदान से स्‍थापित हुआ शहर है, इसी वजह से इसमें कई तरह के रंग नजर आते हैं। ओमप्रकाश ढोली के संपादन में इस किताब में कई लेख महू को लेकर संकलित किए गए हैं जो न सिर्फ पढ़ने में रोचक और दिलचस्‍च हैं, बल्‍कि इसमें दर्ज की गई महू के बारे में जानकारियां भी सहेजने लायक है। इस किताबा को महू के कई बुर्जुग और नौजवान जानकारों ने अपने आलेखों से समृद्ध किया है।

महू जैसे छोटे शहरों के बनने की कहानियों में दिलचस्‍पी रखने वालों को ओमप्रकाश ढोली के संपादन में तैयार हुई इस किताब को जरूर पढ़ना चाहिए।
Written: By Navin Rangiyal

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