हिन्दी दिवस पर कविता : हिन्दुस्तान के मस्तक की बिंदी...

-संजय जोशी 'सजग'
 
भाषा जब सहज बहती,
संस्कृति, प्रकृति संग चलती।
 
भाषा-सभ्यता की संपदा,
सरल रहती अभिव्यक्ति सर्वदा।
 
कम्प्यूटर के युग के दौर में,
थोपी जा रही अंग्रेजी शोर में।
 
आधुनिकता की कहते इसे जान,
छीन रहे हैं हिन्दी का रोज मान।
 
हम सब मिलकर दें सम्मान,
निज भाषा पर करें अभिमान।
 
हिन्दुस्तान के मस्तक की बिंदी
जन-जन की आत्मा बने हिन्दी।
 
हिन्दी के प्रति होंगे हम 'सजग'
राष्ट्रभाषा को मानेगा सारा जग।

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