नाक की पगड़ी
कई सदियों से नाक और सिर में यह तकरार थी तगड़ी !
कहती थी नाक, जब मुझ से है इज़्ज़त,
चाहे वो नाक कटना हो,
नाक नीची होना, या हो फिर,नाकों चने चबाना !!
क्यों फिर सर को ही है केवल,
दिन तेरा भी एक दिन आएगा !
सिर की पगड़ी भूलके इंसान,
बस तुझको ही ढकता जाएगा !!
फला विधाता का वरदान,
देखो नाक की बदली शान !
अब नाक की टोपी सर्वोपरि है,
बिन इसके खतरे में जान !!
इस युग में नाक तू सबसे ऊपर,
तुझ से जीवन के आयाम !
भांति भांति के आवरण (मास्क) तेरे,
सुबह शाम के प्राणायाम !!
इस पगड़ी-टोपी के झंझट में,