भोत गंभीर चोट हो गई ये तो
इंदौर की बात है, कौन था पता नहीं
मैं सरकारी अस्पताल में अपने टेस्ट करवाने गया-फुरसत मिलने पर उधर मौजूद कैंन्टीन से पोहा और जलेबी खरीदी और मज़े से वहीं खड़े-खड़े खाना-पीना शुरू कर दिया-
ऐन उसी वक़्त मेरी नज़र कुर्सी पर बैठे एक छोटे बच्चे पर पड़ी जो बड़ी हसरत से मुझे ही देख रहा था, मैंने इंसानी हमदर्दी में जल्दी से उस बच्चे के लिए भी पोहा और जलेबी खरीदी जो बच्चे ने बिना ना किए ले लिए और जल्दी-जल्दी खाने लगा।
इतनी देर में उस बच्चे की मां, जो उसकी पर्ची बनवाने के लिए खिड़की पर खड़ी थी, वापस आई और बच्चे को जलेबी का आखिरी टुकड़ा खाते देखा!!!