तुम्हारे हुस्न के आडा बाजार में फंसकर,
इश्क के यशवंत सागर में डूब जाता था,
तुम लगती हो जैसे कचोरी लाल बाल्टी की,
राजवाड़े की रेवड़ी सा मुंह हुआ जाता है
तेरी सूरत के गेन्देश्वर मंदिर को देखकर,
मेरा मन भी मेघदूत सा मचल जाता है
चहकती हो तुम चिड़ियाघर की शाम सी,
मेरा प्यार यहाँ मल्टीप्लेक्स सा हुआ जाता है
तेरी पतली कमर है जैसे गलियाँ सुखलिया की,
उस पर मेरा दिल रानीपुरा के जाम सा रुक जाता है
मन है खूबसूरत तुम्हारा चिकना खजूरी बाजार सा,
और ये आशिक रिजनल पार्क में टहल जाता है।