नर्मदा पुत्र श्री अमृतलालजी बेगड़ नहीं रहे। कल (शु्क्रवार को) यह खबर मिली तो मानस पटल पर अमृतलालजी से हुई भेंट स्मरण आ गई। मेरी उनसे पहली और आखिरी मुलाकात नदी महोत्सव के दौरान हुई थी। लगभग आधे घंटे की इस मुलाकात में उनका विनम्र स्वभाव, सरल व सादा व्यक्तित्व एवं नर्मदा के प्रति उनका समर्पण मन को मोहित कर गया।
कांताजी ने उनके इस महाभियान में सच्चे जीवनसाथी के सदृश उनका हर कदम पर साथ निभाया। वे भी अत्यंत सौम्य व सरल महिला हैं। नदी महोत्सव उन दोनों को देखकर अक्सर हंसों का जोड़ा याद आ जाता है किंतु कल उस जोड़े का एक हंस उड़ गया अनंत आकाश में या यूं कहें कि नर्मदा के अविरल प्रवाह की भांति उनके इस अनन्य साधक ने भी इस नश्वर जीवन का एक किनारा छोड़ दूसरे किनारे के लिए महाप्रयाण कर दिया।