डॉ. धर्मवीर भारती : हिन्दी साहित्य में ताजगी की बहार
‘गुनाहों का देवता’, ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’ और ‘अंधायुग’ जैसी पुस्तकों के साथ हिन्दी साहित्य में ताजगी की बहार लाने वाले लोकप्रिय लेखक डॉ. धर्मवीर भारती मुफलिसी के दौर में किताबी खजाने ढूँढते रहते थे।
उनकी पत्नी पुष्पा भारती के अनुसार 'डॉ. भारती कितना पढ़ते थे, इसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। उन्होंने काफी कम उम्र में बहुत कुछ पढ़ लिया था। उनकी आदत स्कूल से सीधे पुस्तकालय जाने की थी। डॉ. भारती का बचपन गरीबी में बीता था। मुफलिसी इतनी थी कि वह किसी पुस्तकालय का सदस्य नहीं बन सकते थे। लेकिन उनकी लगन देखकर इलाहाबाद के एक लाइब्रेरियन ने उन्हें अपने विश्वास पर पुस्तकें पाँच दिन के लिए देना शुरू कर दीं। इसके बाद तो उन्हें जैसे किताबी खजाना ही मिल गया।'
डॉ. भारती किस लेखक से प्रभावित थे
पहले-पहल तो उन्होंने अंग्रेजी के नामी लेखकों के अनुवाद और फिर उनकी मूल कृतियाँ पढ़ीं लेकिन बाद में उनकी दिलचस्पी श्रीमद्भगवत गीता, उपनिषद और पुराणों में पैदा हुई। उनकी लेखनी की नींव सही मायनों में इन्हीं ग्रंथों ने डाली।'
धर्मयुग’ के साथ गुजरे लम्हे
टाइम्स ऑफ इंडिया समूह की ओर से उन्हें पत्रिका के प्रधान संपादक का पद स्वीकार करने का प्रस्ताव मिला था। लेकिन समूह के एक सदस्य ने यह शर्त रखी कि डॉ. भारती संपादक बने रहने के दौरान निजी लेखन नहीं कर सकेंगे। इस पर डॉ. भारती ने पेशकश साफ तौर पर ठुकरा दी। 'डॉ. भारती मानते थे कि किसी भी लेखक को उसके निजी रचनात्मक लेखन से दूर नहीं रखा जाना चाहिए। बाद में जब समूह की ओर से आश्वासन दिलाया गया कि उन पर कोई बंधन नहीं होगा, तब वह संपादक बनने को राजी हुए।' गौरतलब है कि डॉ. भारती 1960 से 1987 के बीच ‘धर्मयुग’ के प्रधान संपादक थे।
'डॉ. भारती ने ‘धर्मयुग’ के मामले में यह भी साफ कर दिया था कि वह यह आश्वासन नहीं दे सकते कि साहित्यिक पत्रिका में वह जो बदलाव लाएँगे, वह पाठकों को स्वीकार होगा। उन्होंने कहा कि हो सकता है कि पत्रिका की पाठक संख्या कम हो जाए। असल में ऐसा हुआ भी लेकिन बाद में पत्रिका काफी लोकप्रिय हुई।'
जीवन-यात्रा
25 दिसंबर 1926 को इलाहाबाद में जन्मे डॉ. भारती ने 1956 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पीएचडी की। बाद के वर्ष उनके साहित्यिक जीवन के सबसे रचनात्मक वर्ष रहे। वह इस दौरान ‘अभ्युदय’ और ‘संगम’ के उप-संपादक रहे। ‘धर्मयुग’ में प्रधान संपादक रहने के दौरान डॉ. भारती ने 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध की रिपोर्ताज भी की।
डॉ. भारती की पुस्तक ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’ लघुकथाओं को पाठकों के बीच रखने की एक अलहदा शैली का नमूना मानी जाती है। ‘अंधायुग’ भी डॉ. भारती की सर्वाधिक चर्चित कृतियों में से एक है। इसे इब्राहिम अल्काजी, एम के. रैना, रतन थियम और अरविंद गौर जैसे दिग्गज रंगकर्मी नाटक के रूप में पेश कर चुके हैं। इसके अलावा उन्होंने ‘मुर्दों का गाँव’, ‘स्वर्ग और पृथ्वी’, ‘चाँद और टूटे हुए लोग’ और ‘बंद गली का आखिरी मकान’ जैसी पुस्तकें भी लिखीं।
डॉ. भारती की कृति : पुष्पा भारती की पसंद
पुष्पा भारती- 'पहले मुझे ‘अंधायुग’ पसंद थी क्योंकि उसमें कुछ सवाल उठाए गए थे। लेकिन बाद में डॉ. भारती ने जब ‘कनुप्रिया’ लिखी तो वह मुझे ज्यादा पसंद आई। 'कनुप्रिया' को मैं डॉ. भारती की श्रेष्ठ कृति मानती हूँ क्योंकि इसमें जिस राधा का उल्लेख है वह मीरा की भक्तिकालीन राधा नहीं है। ‘कनुप्रिया’ की राधा आधुनिक है और उसका व्यक्तित्व इतना मजबूत है कि उसके आगे कृष्ण भी छोटे नजर आते हैं।'
'इस प्रेम कविता में राधा कृष्ण से कहती है कि तुमने मेरे प्रेम को छोड़कर विध्वंस के इतिहास का निर्माण किया। वहीं, अंतिम पंक्तियों में वह कहती है, ‘मैं दोनों बाहें खोलकर प्रतीक्षा कर रही हूँ, मुझे स्वीकार करो और इतिहास का पुनर्निर्माण करो। डॉ. भारती पद्मश्री, राजेंद्र प्रसाद शिखर सम्मान, भारत भारती सम्मान, महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से नवाजे गए थे। चार सितंबर 1997 को उनका निधन हुआ।