इंदौर। भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) के पूर्व महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी का कहना है कि अपनी गौरवशाली परंपरा से भटककर हम एक अलग मार्ग पर चल पड़े, जिसके कारण विश्व गुरु भारत एक साधारण देश बन गया। अब हमारी स्मृतियां ही हमारे खोए हुए बौद्धिक, आध्यात्मिक और आर्थिक वैभव को वापस दिला सकती हैं। इसके लिए 'विचारों की घर वापसी' जरूरी है।
उन्होंने कहा कि स्मृतियां हमारी संस्कारी ताकत हैं और बौद्धिक बल भी प्रदान करती है। श्री राकेश शर्मा जैसे लेखक हमें समृद्ध करते हैं, क्योंकि वे आधुनिक समय का पाठ भी परंपरा की जमीन पर करते हैं। प्रो.द्विवेदी ने कहा कि जो अपनी स्मृतियों से टूट जाता है, वह अपना सब कुछ खो देता है।
विशेष अतिथि फगवाड़ा (पंजाब) से आए डॉ. अनिल पांडे ने कहा कि यह कृति 'स्मृति रूपेण' जड़ता में प्राण फूंकती है और संस्कृति तथा व्यावहारिकता को दृष्टि प्रदान करती है। डॉ. वसुधा गाडगिल ने कृति पर विस्तार से समीक्षात्मक विचार व्यक्त किए एवं कृति को साहित्य की धरोहर बताया। इस अवसर विशेष रूप से उपस्थित मध्यप्रदेश नीति आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. सचिन चतुर्वेदी ने भी संबोधित किया तथा अपनी शुभकामनाएं व्यक्त की।
स्वागत संबोधन समिति के प्रधानमंत्री श्री अरविंद जवलेकर ने दिया कार्यक्रम का संचालन प्रचार मंत्री हरे राम बाजपेई ने किया तथा अंत में आभार साहित्यकार से प्रभु त्रिवेदी ने व्यक्त किया। कार्यक्रम में प्रख्यात ललित निबंधकार श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय, कथाकार सूर्यकांत नागर, वरिष्ठ पत्रकार कृष्ण कुमार अष्ठाना, गोपाल माहेश्वरी, मुकेश तिवारी, अश्विन खरे, डा.पद्मा सिंह, डा.वंदना अग्निहोत्री, डॉ.पुष्पेंद्र दुबे, सदाशिव कौतुक उपस्थित रहे।