हिन्दी के यशस्वी कवि कुंवर नारायण पर स्मृति सभा का आयोजन

नई दिल्ली। हिन्दी के यशस्वी कवि कुंवर नारायण पर एक स्मृति सभा का आयोजन किया गया। गत 15 नवंबर 2017 को 90 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ। आईआईसी के सीडी देशमुख सभागार में आयोजित स्मृति सभा में हिन्दी और भारतीय साहित्य जगत के महत्वपूर्ण हस्ताक्षरों ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम की शुरुआत में कुंवर नारायण को याद करते हुए गणमान्य साहित्यकारों ने अपने वक्तव्य प्रस्तुत किए। 
 
सबसे पहले वक्ता अशोक वाजपेयी ने कहा कि युवा कवियों और लेखकों से कुंवरजी का अद्भुत रिश्ता था। उनके ज्ञान के विस्तार में केवल एक समाज ही नहीं था बल्कि संपूर्ण संस्कृति और इतिहास था। भारतीय अंग्रेजी साहित्य के प्रमुख हस्ताक्षर केकीएन दारूवाला के कहा कि कुंवरजी बहुत बातों में अपवाद थे। मेरी समझ से वे पहले मानवतावादी कवि थे। उनकी कविताएं बोलती नहीं हैं, बल्कि संवाद करती हैं। 
 
मंगलेश डबराल ने उन्हें नैतिकता के बड़े कवि के रूप में याद करते हुए उनकी भाषा को प्रिज्म के जैसा कहा। असद ज़ैदी ने उनकी रुचियों के विस्तृत दायरे की चर्चा करते हुए कहा कि वे हिन्दी के एक सेकुलर कवि थे, हिन्दुस्तानी संस्कृति के सच्चे प्रतिनिधि थे। विनोद भारद्वाज ने कहा कि लखनऊ स्थित उनका घर 'विष्णु कुटी' मेरे लिए एक विश्वविद्यालय की तरह था। 
 
युवा लेखकों से उनकी अद्भुत मैत्री थी। सुधीरचन्द्र ने कुंवर नारायण के इतिहासकार रूप को याद करते हुए कहा कि यह पक्ष उन्हें हमेशा से आकर्षित करता रहा है। इसके बाद प्रो. हरीश त्रिवेदी ने यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास के प्रो. रूपर्ट स्नेल, पोलैंड की विदुषी प्रो. दानुता स्तासिक, रेनाता चेकालस्का और आगनयेशका फ्रास के शोक संदेशों का वाचन किया। 
 
उन्होंने कुंवर नारायण की एक कविता का पाठ करने के बाद लंदन में शोध कर रहे शोधार्थी और चीनी अनुवादक जिया यान का संदेश पढ़ा। पुरुषोत्तम अग्रवाल ने बताया कि कुंवरजी की कविताओं में अहिंसा तत्त्व प्रमुखता से उभरा है। 
 
उन्होंने 'प्रतिनिधि कविताएं' के संपादन का अपना अनुभव सुनाया। रेखा सेठी ने याद किया कि उनसे पहली बात जो सीखी वह थी कि 'देयर इज नो एब्सॉल्यूट'। वे हमेशा उत्सुकता और जिज्ञासा से मिलते। अंतरा देवसेन ने याद किया कि वे एक कवि या लेखक या एक अच्छे मनुष्य ही नहीं थे। उनकी परिधि में पूरी मानवता थी। गीत चतुर्वेदी ने कहा कि वे इस दौर के एक ऐसे लेखक थे, जो न यशाकांक्षी थे और न ही यशाक्रांत। 
 
कुंवर नारायण के अंतिम दिनों में उन्हें पुस्तकों, पांडुलिपियों में सहयोग देने वाले युवा शोधार्थी अमरेन्द्रनाथ त्रिपाठी, पंकज बोस, सुनील मिश्र और अभिनव प्रकाश ने भी संक्षेप में अपने आत्मीय संस्मरण सुनाए। अभिनव ने पुणे से डॉ. पद्मा पाटिल के संदेश का पाठ किया। इन वक्तव्यों के बाद सुनीता बुद्धिराज ने संक्षिप्त टिप्पणी के साथ कुमार गंधर्व के गायन की एक प्रस्तुति की।
 
इसी दौरान तस्वीरों के माध्यम से कुंवर नारायण की जीवंत झांकी प्रस्तुत की गई। इसके बाद जितेन्द्र रामप्रकाश ने उनकी कुछ कविताओं का पाठ किया। आभार ज्ञापन करते हुए पूनम त्रिवेदी ने कुंवरजी के व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन के मार्मिक संस्मरण सुनाते हुए आभार ज्ञापन किया। 
 
पूरे कार्यक्रम का संचालन ओम निश्चल ने किया। इस स्मृति सभा में दिल्ली के साहित्यिक-सांस्कृतिक समाज से जुड़े 100 से अधिक सहृदय लेखक, कवि और पाठक उपस्थित थे।
 
- संतोष कुमार

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