उनके स्वर हमारे जीने का अनुभव हैं और हम कभी इस अनुभव से अलग कैसे हो सकते हैं? कभी होंगे भी नहीं।देह के चले जाने भर से न तो उनके स्वर विलुप्त होंगे और न ही उन स्वरों की गंध के निर्झर थमेंगे।हमारी आस्था उनका सदैव अभिषेक कर उनकी अर्चना,आराधना करतीं रहेगी।
मुकुट टूटा,मूर्ति टूटी भावना फिर भी न टूटी
गांव छूटा गली छूटी ,स्नेह की थाती न छूटी
फूल झर भू चूम लेता ,सुरभि सांसें बिखर जातीं
काल सब कुछ लूटता है ,पर कभी क्या गंध लूटी?