लता:सुर-गाथा को राष्ट्रीय पुरस्कार स्वर्ण कमल 2016

राष्ट्रीय फिल्म समारोह निदेशालय (सूचना प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार) द्वारा ‘स्वर्ण कमल’ 2017 पुरस्कार वाणी प्रकाशन को बतौर पुस्तक के प्रकाशक व लेखक यतीन्द्र मिश्र को देने की घोषणा की गई है। यह पुरस्कार वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित संगीत क्षेत्र की महत्त्वपूर्ण पुस्तक ‘लता:सुर-गाथा’ के लिए दिया जा रहा है। इस प्रतिष्ठित पुरस्कार में सम्मानचिह्न स्वर्ण कमल तथा 75000/- रुपए की राशि प्रकाशक व लेखक को अलग-अलग प्रदान की जाती है। 03 मई 2017 को नई  दिल्ली के 'विज्ञान भवन' में शाम 5:00 बजे 64वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी के कर-कमलों द्वारा यह पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। दूरदर्शन के राष्ट्रीय केन्द्र से इस समारोह का जीवंत प्रसारण भी किया जाएगा जिसे आप सपरिवार घर बैठे देख सकते हैं।

‘लता:सुर-गाथा’ पुस्तक भारत-रत्न लता मंगेशकर और युवा संगीत व सिनेमा अध्येता यतीन्द्र मिश्र के बीच छह वर्षों तक चले लंबे संवाद के अंशों पर आधारित है। लता जी के आत्मीय सहयोग से निर्मित उनके सुरों की यह गाथा उनके प्रशंसकों को समर्पित है। उनकी जीवंत यात्रा का दस्तावेज, जिसमें लता मंगेशकर का अद्भुत संगीत-संसार उजागर हुआ है।
 
पुरस्कार की पूर्व संध्या पर अरुण माहेश्वरी ने बताया कि यह पुरस्कार बतौर प्रकाशक हमारी जिम्मेदारी और भी बढ़ाता है कि हम देश, समाज व पाठकों को और भी श्रेष्ठ साहित्य प्रस्तुत करें। साथ ही उन्होंने बीते दो स्वर्ण कमल पुरस्कारों का स्मरण करते हुए बताया कि इससे पूर्व 'ऋतु आए ऋतु जाए' पुस्तक व संगीत सम्राट के.एल. सहगल की जीवनी को पुरस्कार मिले थे जो कि अपने आप में कीर्तिमान थे। अब 'लता:सुर-गाथा' को सम्मान मिलना है। यह हिन्दी भाषा, हिन्दीलेखन व पाठकों का सम्मान है जो कि महामहिम राष्ट्रपति द्वारा दिया जा रहा है, और वाणी प्रकाशन सदैव हिंदी दुनिया का आभारी रहेगा। 
 
यतीन्द्र मिश्र हिन्दी कवि, संपादक और संगीत अध्येता हैं। उनके तीन कविता-संग्रह, शास्त्रीय गायिका गिरिजा देवी, नृत्यांगना सोनल मानसिंह एवं शहनाई उस्ताद बिस्मिल्ला खां पर हिन्दी में प्रामाणिक पुस्तकें भी वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हैं। प्रदर्शनकारी कलाओं पर निबंधों की एक किताब ‘विस्मय का बखान’ तथा कन्नड़ शैव कवयित्री अक्क महादेवी के वचनों का हिन्दी में पुनर्लेखन ‘भैरवी’ नाम से प्रकाशित हुआ है। फिल्म निर्देशक एवं गीतकार गुलजार की कविताओं एवं गीतों के चयन क्रमशः ‘यार जुलाहे’ तथा ‘मीलों से दिन’ नाम से संपादित हैं। ‘गिरिजा’ का अंग्रेजी, ‘यार जुलाहे’ का उर्दू तथा अयोध्या शृंखला कविताओं का जर्मन अनुवाद प्रकाशित हुआ है। उन्हें रजा पुरस्कार, भारत भूषण अग्रवाल स्मृति पुरस्कार, भारतीय भाषा परिषद् युवा पुरस्कार, हेमंत स्मृति कविता सम्मान, महाराणा मेवाड़ सम्मान सहित भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की कनिष्ठ शोधवृत्ति एवं सराय, नई दिल्ली की स्वतंत्र शोधवृत्ति मिली हैं। साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों हेतु भारत के प्रमुख नगरों समेत अमेरिका, इंग्लैण्ड, मॉरीशस एवं आबु धाबी की यात्राएं की हैं। अयोध्या में रहते हैं तथा समन्वय व सौहार्द के लिए विमला देवी फाउंडेशन न्यास के माध्यम से सांस्कृतिक गतिविधियां संचालित करते हैं।

वाणी प्रकाशन 54 वर्षों से 32 विधाओं से भी अधिक में, बेहतरीन हिन्दी साहित्य का प्रकाशन कर रहा है। इसने प्रिंट,इलेक्ट्रॉनिक और ऑडियो प्रारूप में 6,000 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित की हैं। वाणी प्रकाशन ने देश के 3,00,000 से भी अधिक गांव, 2,800 कस्बे, 54 मुख्य नगर और 12 मुख्य ऑनलाइन बुक स्टोर में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है। वाणी प्रकाशन भारत की प्रमुख पुस्तकालय प्रणालियों, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, ब्रिटेन और मध्य पूर्व, से भी जुड़ा हुआ है। वाणी प्रकाशन की सूची में, साहित्य अकादमी से पुरस्कृत 32 पुस्तकें और लेखक, हिन्दी में अनूदित 9 नोबेल पुरस्कार विजेता और 24 अन्य प्रमुख पुरस्कृत लेखक और पुस्तकें शामिल हैं। संस्था को क्रमानुसार नेशनल लाइब्रेरी, स्वीडन, इण्डोनेशियन लिटरेरी क्लब और रशियन सेंटर ऑफ आर्ट कल्चर तथा पोलिश सरकार द्वारा इंडो-स्वीडिश, रशियन और पोलिश लिटरेरी सांस्कृतिक विनिमय विकसित करने का गौरव प्राप्त है। वाणी प्रकाशन ने 2008 में भारतीय प्रकाशकों के संघ द्वारा प्रतिष्ठित ‘गण्यमान्य प्रकाशक पुरस्कार’ भी प्राप्त किया है। लंदन में भारतीय उच्चायुक्त द्वारा 25 मार्च 2017 को वातायन सम्मान तथा 28 मार्च 2017 को वाणी प्रकाशन के प्रबंध निदेशक व वाणी फ़ाउंडेशन के चेयरमैन अरुण माहेश्वरी को ऑक्सफोर्ड बिजनेस कॉलेज, ऑक्सफोर्ड में एक्सीलेंस अवार्ड से नवाजा गया। प्रकाशन की दुनिया में पहली बार हिन्दी प्रकाशन को इन दो पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। हिन्दी प्रकाशन के इतिहास में यह अभूतपूर्व घटना मानी जा रही है और राष्ट्रीय फिल्मनिदेशलय द्वारा हिन्दी की पुस्तक पर यह पुरस्कार 12 वर्षों बाद दिया गया है।

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