देश-विदेश से आ रही है वेबदुनिया के लिए शुभकामनाएं

वेबदुनिया के 18 वर्ष पूर्ण होने पर देश-विदेश में फैले प्रशंसक-पाठकों की शुभकामनाएं हमें निरंतर मिल रही है। प्रस्तुत है वेबदुनिया के चाहने वाले जाने माने हस्ताक्षरों के शुभकामना संदेश  :  
 
डॉ. कविता वाचक्नवी,साहित्यकार, ह्यूस्टन, टैक्सास:वेबदुनिया अपनी तरुणाई की वय तक आने से पूर्व ही गुणवत्तापूर्ण सामग्री का प्रस्तुतीकरण करने में अग्रणी पोर्टल के रूप में ख्यात हो गया था और गम्भीर अध्येताओं के मध्य अपना अग्रणी स्थान सुरक्षित कर लिया था। समय-समय पर इस से जुड़ना मेरे लिए सुख का विषय रहा। 'वेबदुनिया' परिवार को इसकी 18 वर्ष की इस महत्वपूर्ण यात्रा के पड़ाव पर अपनी शुभेच्छाएं देते हुए मुझे हर्ष और गर्व की अनुभूति हो रही है। कामना है, यह  हिन्दी के शुद्ध भाषायी स्वरूप की महत्ता का मान बनाए रखते हुए पाठकों की पठनीयता और गम्भीर विषयों में अभिरुचि जागृत करने का वाहक बनेगा।  समस्त वेबदुनिया परिवार को बधाई और अभिनन्दन।
 
 
बब्बन कुमार सिंह, (आउटसोर्सिंग एडिटर, /वेबदुनिया 2001-2002) :कैसे भूलें तुम्हें वेबदुनिया, जिसने पहले-पहले आभासी दुनिया से परिचय कराया। 18वीं वर्षगांठ की बहुत-बहुत बधाई!!! 
 
इस सदी के आरंभिक साल थे। भोपाल से इंदौर आया ही था पर जिस भरोसे इंदौर शिफ्ट किया वह कुछ महीनों में ही टूट गया था। उसी बेरोजगारी के क्षणों में वेबदुनिया के तत्कालीन प्रधान संपादक (अब स्वर्गीय) रवीन्द्र शाह का बुलावा आया था। संपर्क सूत्र थे उनके गुरु शीतला मिश्र जी जिनसे किसी कार्यक्रम में अचानक मुलाकात हुई थी और उन्होंने पहली ही मुलाकात में मुझे वेबदुनिया जैसी साइट में काम करने के लिए योग्य मान लिया था।  
 
कदाचित 2001 के अक्टूबर महीने में काम शुरू किया और लगभग एक साल यहां रहा। कहने को दिल्ली की रिपोर्टिंग के दिनों के बाद मेनस्ट्रीम की पत्रकारिता में वापसी हुई थी पर जिम्मेदारी मिली बाहर की कई वेबसाइटों के संपादकीय उत्तरदायित्व का। अब सोचता हूं तो आश्चर्य होता है कि रवींद्र जी ने कैसे ऐसी महती जिम्मेदारी बाहर से शहर में नए-नए आए एक अपरिचित व्यक्ति को सौपीं? रवीन्द्र जी आज इस दुनिया में नहीं हैं पर एक लीडर के तौर पर योग्य सहयोगियों को पहचानने की उनकी अद्भुत क्षमता भूलाए न भूलती। याद नहीं आता कि एक साल के कार्यकाल में कभी उन्होंने किसी कार्य में दखल दिया हो या किसी काम के लिए कभी क्लास ली हो। 
 
टाइम्स ऑफ़ इंडिया की साइट के अलावा उस समय के शायद ही किसी साइट ने तबतक आम बजट को लाइव किया था। ऐसे किसी भी नए काम की योजना निर्माण और कार्य निष्पादन में रवीन्द्र जी का जबर्दस्त सहयोग रहता था। ऊर्जा से लबरेज युवाओं की हमारी छोटी मगर उत्तरदायित्व के प्रति जागरूक टीम ने इस काम को बखूबी अंजाम दिया था। इस काम में हमारे मुख्य साइट के अनेक सहयोगियों का सहयोग आज भी याद आता है। 
 
टीम छोटी थी पर काम की आज़ादी और अधिकांश सहयोगियों के सहयोग ने हिन्दी की पहली साइट को बेहतर बनाने और स्वयं को भी निखारने का बेहतर अवसर दिया। उस दौर में आभासी दुनिया में काम करने वाले अधिकांश सहयोगी अखबार की दुनिया से आए थे और उनके लिए यहां काम करना पहला अनुभव ही था और हम सभी ने आपसी सहयोग और जज्बे से इस काम को सीखा। 
 
उस दौर के कई सहयोगी आज भी मीडिया में महत्वपूर्ण जगहों पर काम कर रहे हैं।  उनमें से एक आकांक्षा पारे आज भी याद आती हैं जो आज अपने साहित्यिक लेखन के कारण गाहे-बगाहे चर्चा में रहती हैं। अभी तो वेबदुनिया तुम्हारा बहुत-बहुत आभार जिसने डिजिटल दुनिया में दाखिल होने का पथ दिया! तुम शतायु हो, शतायु हो, शतायु हो!!! 
 
आरिफा एविस, वेबदुनिया ब्लॉगर: हिन्दी वेबदुनिया को हमारी तरफ से अपने सफर के 18 वर्ष पूरे होने पर बहुत-बहुत शुभकामनाएं। आज के इस दौर में जहां कई तरह के अंतर्विरोध देखने को मिले हैं जैसे नए पुराने के बीच अंतर्विरोध और अक्सर नए लोगों को छपास की श्रेणी में डाल दिया जाता है। दूसरा अखबारों में पर्याप्त स्थान ना होने के कारण नए लोगों को वरीयता नहीं दी जाती है। ऐसे में न्यूज़ पोर्टल हिन्दी वेबदुनिया ने नए रचनाकारों को स्थान देकर उनको प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसके लिए हिन्दी वेबदुनिया और उसकी टीम बधाई के पात्र हैं। मैं बस यही संदेश देना चाहती हूं कि इसके माध्यम से बहुत से नए रचनाकारों को देश दुनिया में अपना हुनर दिखाने का मौका मिला है और भविष्य में भी मौका मिलता रहेगा इसी उम्मीद के साथ उन्हें बधाई। 
 
पुष्पा परजिया, तंजानिया, वेबदुनिया स्वतंत्र लेखक : मैं कविता के रूप में वेबदुनिया के लिए शुभकामनाएं प्रेषित कर रही हूं। 
 
 एक  नजारा नज़र  आया  
जीने का सहारा  नज़र  आया  
एक  भरा पूरा आशियां नज़र  आया 
 खिल उठी दोस्तों की दोस्ती 
एक सुन्दर सा कारवां नज़र  आया 
खिल गई सारी कलियाँ 
जब एक सच्चा बागबां नज़र आया 
राहें मिल गई  जीने की जब 
एक सुन्दर सा सुखों का सागर नज़र आया 
मिली वेबदुनिया हमें, सारा जहां अपने ही पास नजर आया 
सज गए वीराने अब तो क्यूंकि एक 
भरा पूरा सा यहां परिवार नज़र आया
बदल गए हैं लम्हे खुशियों में अब 
दुखों का कारवां दूर होता नज़र आया 
 
वास्तव में वेबदुनिया उभरते हुए लेखकों के लिए एक बेमिसाल साइट है। यहां लिखकर और प्रकाशित होकर लेखक स्वयं को धन्य महसूस करते हैं। समस्त टीम बड़ी सहयोगी स्वभाव की हैं। बड़े स्नेह से हर मेल का जवाब मिलता है। मुझे इतना बेहतर मंच प्रदान करने के लिए मैं वेबदुनिया की अत्यंत आभारी हूं।  
      
मालती देसाई, अमेरिका, वेबदुनिया स्वतंत्र लेखक :वेबदुनिया को 18 वर्ष की कामयाब सफर के लिए हार्दिक अभिनंदन एवं शुभकामनाएं। विश्व के प्रथम प्रसिद्ध हिन्दी पटल के रूप में आने वाले हर दिन , हर साल यूं ही कामयाबी बढ़ती रहेगी। व्यक्तिगत रूप से जब से फीचर संपादक लाड़ली चि. स्मृति आदित्य जी से पहचान हुई है तब से वेबदुनिया के लिए लिखने में और अधिक आनंद मिल रहा है। यहां अमेरिका में बैठे भी वेबदुनिया की विविध क्षेत्रों की जानकारी प्राप्त हो रही है। वेबदुनिया से एक ऐसा नाता जुड़ गया है जिसके लिए हमेशा ऋणी रहेंगे। वेबदुनिया यानी दूरियां हो गई है नजदीकियां .... 

 रोहित कुमार 'हैप्पी', न्यूजीलैंड : वेबदुनिया से मैं शुरुआती दिनों से जुड़ा रहा हूं। आपका कार्य सरहनीय है। विश्वास है, वेबदुनिया इसी प्रकार हिन्दी सेवा में कर्मरत रहेगी व हिन्दी की ध्वज-पताका को यूंही थामे रहेगी। शुभकामनाएं... 

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