आशा भोंसले नई पीढ़ी में अक्सर कैबरे और पॉप गीतों के लिए जानी जाती हैं, मगर पाँचवें दशक में उन्होंने एक से बढ़कर एक 'हिन्दुस्तानी' गीत गाए थे।
ये गीत इतने दिलकश हैं कि मानना पड़ता है कि अपने पिता दीनानाथ मंगेशकर से आशा भी गायन को खून में लेकर आईं और लता की तरह उन्होंने भी इमोशन या भाव को उसकी संभाव्य पूर्णता तक मुखर किया।
'रस'- यही एक शब्द है, जो लता और आशा के गायन की मुख्य विशेषता के बारे में इस्तेमाल किया जा सकता है। लता की तरह आशा को सुनना भी शब्दों के अर्थ समझने के आगे उस भाव-रस में बहना है, जिसे पैदा करने के लिए मंगेशकर-घराना माना जाता रहा है। जहां तक मेलडी का सवाल है, आशा, लता से पीछे नहीं हैं, बल्कि कहीं-कहीं तो दर्द और मादकता को गाने में आशा बुरी तरह चौंका जाती हैं और हमें कायल बना जाती हैं।
प्रस्तुत गीत को उन्होंने सैंतालीस साल पहले गाया था। संगीत दिया था रवि ने और रवि क्योंकि अरसे तक हेमंतकुमार की आर्केस्ट्रा टीम में काम करते रहे, यह गीत, अपनी धुन, संगीत, मिजाज और फील में, हेमंतकुमार का गीत होने का भ्रम देता है।
इस गीत पर उत्तरप्रदेश की लोकधुन का असर है। इसे सुनते वक्त बनारस, उसके घाट, अमराइयाँ और वहाँ की नवयौवनाएं याद आती हैं। हम जन्मों पीछे लौटने लगते हैं। मजेदार बात यह है कि इस गीत को लिखा भी संगीतकार रवि ने ही था। परदे पर इसे (संभवतः) गीता बाली गाती हैं। गीत की धुन इतनी प्यारी है कि जी होता है, इस गीत को सुनते ही जाओ, सुनते ही जाओ।
सन् 55 का साल था, उसी साल 'आजाद' फिल्म भी रिलीज हुई थी। 'आजाद' में सी. रामचंद्र का संगीत था और 'अलबेली' के गानों का म्युजिक रवि ने स्कोर किया था। 'आजाद' के 'पी के दरस को तरस रही अंखियाँ' (लता) और 'अलबेली' के इस गीत 'तुमसे लागी बलम मोरी अंखियाँ' (आशा) की धुनें करीब-करीब एक जैसी हैं। फिर भी रवि और आशा का वर्सन ज्यादा कर्णप्रिय है।
इसमें ढोलक और तबले की खूबसूरत अदायगी आशा के गायन में चार चाँद लगा देती है। अगर आप थके हुए हैं और इतवार की ढलती रात में अपने प्यारे गाँव की याद सता रही है, तो इस नगमे को सुन लीजिए।
गाँव की नीम, हवा, खेत, दिवंगत काका-मौसा और बचपन का प्रेम याद आ जाएगा और आप पल भर को शहर की गलफांसी से दूर हो जाएँगे। धन्यवाद दें, इन्दौर के सुमन चौरसिया को, कि गुजरे इतिहास को उन्होंने अपनी रेकॉर्ड-लायब्रेरी में इतने ममत्व से बचा रखा है।
पढ़िए, गीत- (पहले मेंडोलिन का मधुर टुकड़ा)
तुम संग लागी बलम मोरी अंखियाँ- 2 लागी मोरी अंखियाँ, बलम तोसे अंखियाँ तुम संग लागी...
तुझे कैसे बताऊँ बलम, तेरी हूं मैं तेरी कसम- तुझे कैसे बताऊँ बलम कोई जाने ना सजन मोरे मनवा की बतियाँ, तुम संग लागी बलम... 2
लागी मोरी अंखियाँ... तुम संग लागी...
तेरे गीतों ने जादू किया, सुन-सुनके मेरा डोले जिया- तेरे गीतों ने जादू किया मोहे निंदिया न आए पिया सारी-सारी रतियां तुम संग लागी... 2
लागी मोरी अंखियाँ... तुम संग लागी बलम मोरी अंखियाँ।
खास बात यह है कि आशा इस गीत को बड़े 'ईज' के साथ गाती हैं, जैसे अपने बालों के लच्छों के साथ खेल रही हैं। आवाज में कसावट और बेस भी भरपूर है। इम्प्रेशन यह बनता है कि कोई गुजरिया, जो अपने प्रेमी तथा स्वयं के बारे में पूरी तरह आश्वस्त है, बड़े आराम से, मीठे स्वर में, अपनी मधुर टीस गा रही है।
इतना थमा हुआ और बहता हुआ स्वर है आशा का यहाँ, कि मेलडी साथ में मीठी कसक भी लाती है और हम 'किसी की' गोद में लेटे-लेटे पराए हो जाते हैं। काश! हम भी किसी से बिछड़ जाएँ और कोई हमारे लिए ऐसा गा जाए! मगर यह सिनेमा में रचे गए हसीन झूठ का असर है।
गीत खत्म होते-होते यह वेदना सताने लगती है कि सब कुछ तो ठीक! मगर उन बीते दिनों को किस जाल में फंसाकर अपनी हथेली पर वापस ले आया जाए! कोई राह नजर नहीं आती।